शनिवार को सोशल मिडिया में उत्तराखंड न्यूज़ २४ के चन्द्रशेखर करगेतीके माध्यम से ख़बर मिली थी कि पोखरी, जिला चमोली के प्रमोद, अंकित, रोशन, विमल आदि कुछ युवा लॉकडाउन के चलते गुजरात के बलसाड़ में हैँ और वापस आना चाहते हैँ। मुझे ध्यान आया कि उत्तराखंड की कुछ बसें गुजरात से आये साथियों को छोड़ने अहमदाबाद जा रहीं हैँ तो मैंने उन साथियों से उनकी लोकेशन और अहमदाबाद से दूरी पूछी तो पता चला कि वह लोग अहमदाबाद से तक़रीबन 350 किमी दूर हैँ, चूंकि उन बसों ने अगले दिन रविवार को पहुंच कर वापसी होना हैँ। अब बलसाड़ के साथियों को अहमदाबाद कैसे पहुंचाया जाये ताकि वो उन बसों में बैठ कर वापस आ सकें तभी सूरत से भाई गीतेश नेगी का फोन आता है और वह हर तरह की सहायता का अस्श्वासन देते हुए उन लोगों को अहमदाबाद तक छुड़वाने की बात भी कर लेते हैँ।
अब बारी आती है सोशल मिडिया में चल रही उस अख़बार की कटिंग जिसमें कि रोडवेज का एक नंबर दिया गया था कि कोई उत्तराखंडी अगर वापस आना चाह रहा हो तो, इस नंबर पर संपर्क कर सकता हैँ। ख़ैर मेरा नंबर तो नहीं लगा और गीतेश भाई का ये कहना कि जब तक अहमदाबाद पहुंचने वाली बसों में बैठने की गारंटी नहीं हो जाती, इन लोगों को यहाँ से निकलना गलत है.. बात सही भी थी अभी तो ये लोग अपने ठीये पर हैँ बीच रास्ते से कहाँ जायेंगें। फ़िर हम दोनों ही अपने अपने स्तर से उन बसों के ड्राइवर /कंडक्ट के फोन नंबर ढूंढ़ने लगे। जब तक हमें नंबर मिलता तब तक पता चला कि वह बसें वहां से वापस निकल चुकी हैँ, इस बात का मेरे से ज्यादा अफ़सोस गीतेश भाई को था कि समय से जानकारी मिल जाती तो वह अपने कुछ अप्रवासी भाइयों को घर भिजवा सकते थे। ख़ैर उन्होंने मेरे से बलसाड़ के साथियों कि हर तरह से (तन , मन धन ) मदद करने का आश्वासन देकर तथा भविष्य में किसी भी तरह की जरुरत पर साथ खड़े होने की बात कह कर फ़ोन काट दिया। इधर मेरे दिमाग़ में उथल पुथल चल रही थी कि जब हमारी बसें हमारे पैसे के पेट्रोल पर दूसरों को घर छोड़ने जा सकतीं हैँ तो वह उन जगहों से हमारे लोगों को क्यों नहीं ला सकती थीं कि तभी भाई दीपक फर्स्वाण की फेसबुक वाल पर नज़र पड़ गईं और मैं सर पकड़ कर बैठ गया अब उसमें क्या था आप खुद ही पड़ लें और लगे कि ये सब गलत है तो दूसरों को भी कुकर्मों के बारे में जरूर बतायें…..
….. लॉकडाउन में उत्तराखण्ड सरकार का दोहरा चरित्र साफ नजर आया है । एक तरफ सरकार ने गुजरात के तकरीबन डेढ़ हजार लोगों को अहमदाबाद पहुंचाने के लिये पूरी ताकत झोंक दी लेकिन दूसरी ओर गुजरात में फंसे उत्तराखण्ड के लोगों की कोई सुध नहीं ली । एक धार्मिक आयोजन के लिये हरिद्वार पहुंचे गुजारात के यात्रियों को उनके घर पहुंचाने के लिये सरकार ने गुपगुप तरीके से बीआईपी व्यवस्था कराई । राज्य के बसों के बेड़े से लग्जीरियस बसों को सेनोटाइज कर यात्रियों को उनसे अहमदाबाद पहुंचा । बताया जा रहा है कि इसकी पूरी जानकारी विभाग के मंत्री यशपाल आर्य तक को नहीं दी गई । सरकार ने यह तत्परता इसलिये दिखाई क्योंकि जिस व्यक्ति के आयोजन में शामिल होने ये लोग हरिद्वार आये थे वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करीबी बताये जा रहे हैं । दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि जो 45 बसें गुजरात गईं वो बसे वहां से खाली उत्तराखण्ड लौटीं । उत्तराखण्ड परिवहन का लोगों देखकर कुछ लोग उनमें चढ़े तो उन्हें हरियाणा बार्डर पर रात के अंधेरे में बीच रास्ते में उतार दिया गया ।
सवाल यह नहीं है कि गुजरात के यात्रियों को वीआईपी अंदाज में उत्तराखण्ड सरकार ने अहमदाबाद सुरक्षित पहुंचाया, सवाल यह है कि गुजरात के लोगों को घर पहुंचाने में दिखाई उतनी तत्परता वहां फंसे उत्तराखण्ड के लोगों को सकुशल घर लाने में क्यों नहीं दिखाई गई । जबकि हालात यह है कि गुजरात में भी उत्तराखण्ड के हजारों लोग भुखमरी की स्थिति में हैं जो वहां से विभिन्न माध्यमों से मदद की गुहार लगा रहे हैं । ऐसा नहीं है कि सरकार को इसकी जानकारी नहीं है, सरकार चाहती तो जिन बसों से यात्रियों को गुजरात पहुंचाया गया उन्हीं बसों से उत्तराखण्डियों को घर लाया जा सकता था । विडम्बना देखिये कि इस तरीके की योजना बनना तो दूर उत्तराखण्ड की डिपो की बसें देखकर जो 52 यात्री उनमें चढ़े भी, जब हरियाणा पुलिस उन्हें रास्ते में बस से उतार रही थी तो बसों के ड्राइवर-कंडक्टरों के दूरभाष पर आग्रह करने पर भी उत्तराखण्ड परिहव विभाग के उच्च अधिकारियों ने उनकी मद्द से इंकार कर दिया । नतीजा यह हुआ कि हमारे राज्य के वो 52 लोग आज भी भूखे प्यासे पैदल घर की ओर आ रहे है।
अब यह सवाल उठ रहा है कि सरकार प्रवासी यूके को लेकर इतनी संवेदनहीन क्यों है। तमाम मौकों पर उत्तराखण्ड सरकार द्वारा प्रवासियों से राज्य के विाकस में सहयोग की अपील की जाती रही है ।
रिवर्स पलायन की बातें करते हुये मुख्यमंत्री आवो अबपण घौर जैसे स्लोगन देते रहे हैं । इस तरीके के स्लोगन ऐसे में बेमानी साबित होते हैं । यहां काबिलेगौर है कि जिन लग्जीरियस बसों को गुजरातियों को छोड़ने अहमदाबाद भेजा गया उनके सेनेटाइजेशन से लेकर ईंधन का पूरा खर्च त्रिवेन्द्र सरकार ने उठाया । उनके चालक और परिचालकों ने भूखे पेट सरकार के इस गुप्त मिशन को अंजाम दिया।
इस बारे में परिवहन मंत्री यशपाल आर्य से बात की तो उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि ‘अधिकारियों ने इस प्रकरण की जानकारी मुझे नहीं दी । खुद मुझे गुजरात में फंसे कई उत्तराखण्डी भाईयों के फोन आये थे । मुझे पता होता तो वहां फंसे लोग इन बसों से वापस अपने घर आते । मैं इस सम्बंध में विभाग के अधिकारियों से जवाबतलब करूंगा’ ।
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The double character of the Uttarakhand government is visible in the lockdown. On the one hand, the government gave full strength to bring about one and a half thousand people of Gujarat to Ahmedabad, but on the other hand the people of Uttarakhand trapped in Gujarat did not take any care.The government secretly made a BIP arrangement to bring the travelers of Gujrat to their homes for a religious event.The passengers of the state buses flew down to Ahmedabad by cenotizing the luxury buses. It is being told that full information about this was not given to the minister of the department, Yashpal Arya. The government showed this readiness because the people who had come to Haridwar to attend the event are said to be close to Prime Minister Narendra Modi.It is unfortunate that the 45 buses that went to Gujarat returned to Uttarakhand from there. Seeing the people of Uttarakhand transport, some people climbed into them, then they were removed in the middle of the night on the Haryana border.It is not a question of whether the Uttarakhand government has taken the passengers of Gujarat to Ahmedabad safely in a VIP style, the question is why the readiness to bring the people of Gujarat home was not shown in bringing the people of Uttarakhand safely home.Whereas the situation is that even in Gujarat, thousands of people of Uttarakhand are in a state of starvation who are seeking help from there through various mediums. It is not that the government is not aware of this, if the government wanted, the buses with which passengers were transported to Gujarat could bring Uttarakhandis home.See the irony that even if 52 passengers boarded the depot buses of Uttarakhand while planning this method, when the Haryana Police was unloading them from the bus on the way, then the Uttarakhand Parivar Department on the request of the drivers-conductors of the buses High officials of the KP refused to help him. As a result, 52 of those people of our state are still coming towards the hungry thirsty house.Now the question is arising as to why the government is so insensitive about the migrant UK. On all occasions, the #uttarakhand_government has been appealing to migrants to cooperate in the development of the state.Talking about reverse migration, the Chief Minister has been giving slogans like Aava Abpanan Ghaur. Slogans of this method prove to be meaningless in such a situation. It is here that the luxury buses which were sent to Ahmedabad leaving Gujaratis.From his sanitation to the full expenditure of fuel, the Trivandra Government borne it. Their drivers and operators carried out this secret mission of the hungry stomach government.Talking to Transport Minister Yashpal Arya about this, he said clearly that the officials did not inform me about this case. I myself had received calls from many Uttarakhandi brothers stuck in Gujarat. I would have known that people trapped there would have come back home from these buses. I will answer the department officials in this regard ‘.
साभार : दीपक फर्स्वाण