मेजर जनरल बी.सी.खण्डूड़ी

यदि तोर डाक शुने केऊ न आसे तबे एकला चलो रे।
तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे
फिर चल अकेला चल अकेला चल अकेला चल अकेला रे
ओ तू चल अकेला चल अकेला चल अकेला चल अकेला रे

             भगवत गीता के कर्मयोग और गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर की उक्त
रचना को अगर वर्तमान में देखना हो तो उत्तराखंड की पौड़ी लोकसभा में देखा जा सकता है।  
          पौड़ी गढ़वाल लोकसभा सीट पर पूरे देश की नज़र आकर टिक गई है क्योंकि यहाँ भाजपा नेता ओर ईमानदार पूर्व मुख्यमंत्री जरनल खंडूड़ी जो कि स्थानीय सांसद भी है पौड़ी से जी हां वी सी खंडूरी के बेटे मनीष खंडूरी कांग्रेस के टिकट पर गढ़वाल की सीट से मैदान मे है अभी कुछ दिन पहले ही राहुल की रैली में उन्होंने कांग्रेस का हाथ थामा था भाजपा ने भी गढ़वाल से अपने आम कार्यकर्ता तीरथ सिंह रावत पर भरोसा जताया।
आपको बता दे इस सीट पर अब तक भाजपा और कांग्रेस दोनों का ही कब्जा रहा है। ओर इस बार मुकाबला काफी दिलचस्प होने के आसार है।
गढ़वाल की राजनीतिक पृष्ठभूमि
आजादी के बाद 1952 से 1977 तक इस सीट पर लगातार कांग्रेस का कब्जा रहा। 1952 से 1971 तक हुए चार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के भक्त दर्शन यहां से चुनाव जीतते रहे। 1971 में जब पांचवीं लोकसभा के लिए चुनाव हुए तो कांग्रेस के प्रताप सिंह नेगी ने चुनाव जीता। 1977 में इंदिरा गांधी के खिलाफ लहर के दौरान कांग्रेस को यहां हार का मुंह देखना पड़ा और जनता पार्टी के जगन्नाथ शर्मा चुनाव जीते।
वही 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में यूपी के पूर्व सीएम हेमवती नंदन बहुगुणा को जीत मिली। 1984 और 89 में चंद्र मोहन सिंह नेगी चुनाव जीते। 1991 में जब देश में मंदिर आंदोलन का जोर था तो इस दौरान यहां से भाजपा ने बाजी मारी और भुवन चंद्र खंडूरी चुनाव जीते। हालांकि, 1996 में हुए चुनाव में इस सीट पर सतपाल महाराज को जीत मिली।
इसके बाद इस सीट पर लंबे समय तक भाजपा का दबदबा कायम रहा। पौड़ी सीट पर 1998, 1999 और 2004 में भाजपा के बीसी खंडूरी जीतते रहे। 2007 में हुए उपचुनाव में भाजपा के तेज पाल सिंह रावत चुनाव जीते। 2009 में इस सीट पर कांग्रेस के सतपाल महाराज ने जीत हासिल की।
आपको बता दे कि अभी पौड़ी लोकसभा सीट के 14 विधानसभाओ में से 13 विधायक भाजपा के है
पौड़ी गढ़वाल लोकसभा सीट के तहत विधानसभा की 14 सीटेंहैं। ये 14 सीटें उत्तराखंड के पांच जिलों चमोली, गढ़वाल, नैनीताल, रुद्रप्रयाग और टिहरी गढ़वाल में फैलीहैं। इससीट के तहत आने वाली विधानसभा सीटों में बदरीनाथ, कर्णप्रयाग, थराली, राम नगर, चौबट्टाखाल, कोटद्वार, लैंस डाउन, पौड़ी, श्रीनगर, यमकेश्वर, केदारनाथ, रुद्रप्रयाग, देव प्रयाग और नरेंद्रनगर शामिल है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 14 में से 13 सीटें जीतीं। सिर्फ केदारनाथ विधानसभा सीट पर कांग्रेस का कब्जा है।
आपको बता दे कि
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर 12,69,083 मतदाता थे। पुरुष मतदाताओं की संख्या 6 लाख 52 हजार 891 थी, जबकि महिला वोटर्स का आंकड़ा 6 लाख 16 हजार 192 था। यहां मतदान का प्रतिशत 53.74 रहा था। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 2017 के विधानसभा चुनाव में में यहां मतदाताओं की संख्या बढ़कर लगभग 14 लाख हो गई।
2011 की जनगणना पर गौर करें तो यहां की आबादी 16 लाख 81 हजार 825 है। भौगोलिक कारणों की वजह से यहां पर शहरीकरण की रफ्तार काफी धीमी है। इस इलाके की 83.64 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में रहती है, जबकि 16.36 प्रतिशत आबादी का निवास शहरों में है। यहां पर अनुसूचित जाति के लोगों की संख्या 18.76 फीसदी है, जबकि अनुसूचित जनजाति की आबादी 1.13 प्रतिशत है.
ओर पौड़ी लोकसभा सीट पर पूर्व सैनिकों का अपना वर्चस्व है जो यहां से जीत हार की समीकरण बनाता है .

 

साल         जीते पार्टी
1952 – 1957 भक्त दर्शन कांग्रेस
1957 – 1962 भक्त दर्शन कांग्रेस
1962 – 1967 भक्त दर्शन कांग्रेस
1967 – 1971 भक्त दर्शन कांग्रेस
1971 – 1977 प्रताप सिंह नेगी कांग्रेस
1977 – 1980 जगन्नाथ शर्मा जनता पार्टी
1980 – 1984 हेमवती नंदन बहुगुणा जनता पार्टी सेक्युलर
1984 – 1989 चंद्र मोहन सिंह नेगी कांग्रेस
1989 – 1991 चंद्र मोहन सिंह नेगी जनता दल
1991 – 1996 भुवन चंद्र खंडूरी भाजपा
1996 – 1998 सतपाल महाराज कांग्रेस
1998 – 1999 भुवन चंद्र खंडूरी भाजपा
1999 – 2004 भुवन चंद्र खंडूरी भाजपा
2004 – 2007 भुवन चंद्र खंडूरी भाजपा
2007 – 2009 (उपचुनाव) तेज पाल सिंह रावत भाजपा
2009 – 2014 सतपाल महाराज कांग्रेस
2014 – अबतक भुवन चंद्र खंडूरी भाजपा

बहरहाल  उत्तराखंड का ये पहला चुनाव होने जा रहा है जहां एक पिता अपने बेटे के लिए चाह कर भी वोट नही माग पा रहा है और ना उनके प्रचार में शामिल हो पा रहा है यहा तक कि एक बहन भी अपने भाई के लिए कुछ नही कर पा रही है।कारण साफ है ।सारा खेल विचार धारा का है ।कांग्रेस के मनीष खडूडी के पिता जरनल खंडूड़ी  भाजपा के नेता है ओर उनकी बहन वर्तमान मे भाजपा की विधायक है ।ऐसे मे एक पिता और एक बहन चुनाव मे सिर्फ आशीष के सिवा कुछ नही मनीष को दे पा रहे है।
जबकी वो दौर भी था जब मनीष खंडूड़ी अपने पिता के चुनाव मे जी तोड़ मेहनत करते थे उन्हें जिताने मै महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे ओर यही नही बहन ऋतू के चुनाव मे भी काम करते थे पर आज समय की चाल देखो मनीष खंडूड़ी अलग थलग है – सिर्फ पिता के आशीष ओर शुभ कामनाओ के साथ ।

यही नही जनरल  के सबसे करीबी तीरथ रावत खुद पौड़ी लोकसभा सीट से भाजपा के चेहरे है ऐसे मे सयोग देखिए मनीष खंडूड़ी का अपना  पूरा परिवार तथा विजय बहुगुणा परिवार सब भाजपा में है इसलिते अपनी मुश्किल ओर कठिन डगर ।चुनोतियो भरे रास्ते को जब मनीष खंडूड़ी ने खुद ही जब चुना होगा तो उन्हें मालूम था कि इस पौड़ी की पथरीली राजनीति मे उनको अकेले ही चलना पड़ेगा,अपनो का तो सिर्फ नाम और आशीष ही मिलेगा।
मनीष खडूडी कहते भी है जनसभाओं मे  पिता का आशीष उनके साथ है ओर वे तब से दुःखी है जब उनके पिता को रक्षा समिति के अध्य्क्ष पद से भाजपा ने हटा दिया था ।तब उन्होंने अपने पिता जर्नल खडूडी की आंखों में दूसरी बार आँसू देखे थे।
बहरहाल मनीष अपने मुद्दों के साथ पौड़ी लोकसभा सीट की जनता के बीच है तो भाजपा के तीरथ सिंह रावत
मोदी के नाम  ओर त्रिवेन्द्र सरकार के 2 साल के कामकाज के साथ  मैदान मे हैं, अब  देखना ये होगा कि पौड़ी लोकसभा सीट की जनता क्या पिता की विरासत को पुत्र को सौपेगी या फिर अब खंडूड़ी नहीं जरूरी  समझकर तीरथ सिंह रावत को सांसद बनाकर संसद तक  पहुँचाएगी ये तो 23 मई का दिन ही बताएगा।