तमिलनाडु के महाबलीपुरम् में एक विशालकाय पत्थर डेढ़ सहस्राब्दि से पड़ा हुआ है जिसे स्थानीय भाषा में वन्न-इरी-कल अर्थात आकाश से गिरा पत्थर कहा जाता है।


आश्चर्यजनक पहलू ये है कि 5 मीटर ऊँचा और 4 मीटर चौड़ा ये विशालकाय पत्थर लगभग 2000 कुंटल भार वाला है और यह मात्र 4 फुट के आधार पर एक तीव्र ढलान पर 45 अंश के कोण पर टिका है और देखने में ये प्रतीत होता है कि यह अब लुढ़का..अब लुढ़का।
पाहि बार में इसे देख कर ऐसा लगता है कि यदि दो चार लोग मिलकर हल्का सा धक्का भी दें तो ढलान के एकदम मुहाने पर होने से ये लुढ़क कर नीचे खड्ड में चला जायेगा।
किंतु यह सिर्फ आँखों का भ्रम है,इस पत्थर को दो चार लोग तो दूर कई हाथी और भूकम्प सुनामी तक हिला नहीं सकते।
इसे लुढ़काने की दो असफल कोशिशें हो चुकी हैं जो कि इतिहास में दर्ज हैं।
पहली बार सातवीं सदी में पह्लव राजा नरसिम्हन ने इसे खिसकाने की भरपूर कोशिश की थी और दूसरी बार सन 1908 में एक अंग्रेज अफसर आर्थर हैवलॉक ने 7 हाथियों से धक्का दिलवाया था,हाथी थक कर चूर हो गए ये पत्थर न खिसका तो न खिसका।
लोगों की मान्यता है कि ये भगवान श्रीकृष्ण के मक्खन खाने वाले पात्र का एक टुकड़ा है,जोकि वास्तव में टूटा हुआ प्रतीत होता है मानो किसी ने आधा टुकड़ा तोड़कर के यहाँ पर रख दिया हो।
वैज्ञानिकों ने इस रहस्यमयी पत्थर के सदियों से टिके होने के पीछे के कारण खोजने की बहुत कोशिश की,अनेक तर्क दिए कि यहाँ पर कम गुरुत्व बल और अधिक चुम्बकीय शक्ति के कारण ये टिका है लेकिन जब वैज्ञानिकों से ये पूछा गया कि इस पर 7 हाथियों के द्वारा हजारों किलोग्राम/प्रति सेकेंड का बाह्य बल लगाया गया तब भी ये टस से मस न हुआ,क्यों? विज्ञान के पास इसका उत्तर नहीं है।
यह पत्थर भगवान श्रीकृष्ण के प्रति लोगों की आस्था का केंद्र है,एक अद्भुत चीज है, रहस्य है और भौतिक विज्ञान के ज्ञात नियमो को धता बताने वाला है।