आज जब कई लोग फर्जी तरीको से खुद को राज्य आन्दोलनकारी साबित करने के कुत्सित प्रयास मे लगे हुए हैं ऐसे में मानवाधिकार एवं सामाजिक संगठन द्वारा राज्य निर्माण के 21 वर्ष पूर्ण होने की पूर्व संध्या पर 1994 में शुरू हुए राज्य आन्दोलन के उन प्रमुख सूत्रधारों की तलाश कर उन्हें सम्मनित किया गया। सनद रहे कि राज्य आन्दोलन की शुरुवात अप्रेल 1994 में तत्कालीन उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा शिक्षण सस्थानों में थोपे गए 33% ओबीसी आरक्षण के ख़िलाफ़ हुई थी। इस आरक्षण के विरोध में देहरादून के डीएवी व डीबीएस कॉलेज के तत्कालीन छात्र-नेताओं ने सयुंक्त रूप से बैठक कर इस मुद्दे के खिलाफ आम लोगों को लाम बंद करना शुरू किया। उसके बाद 2 सितम्बर 1994 छात्र संघर्ष समिति द्वारा आयोजित पौड़ी की उस ऐतिहासिक रैली के बाद इस आन्दोलन ने पृथक राज्य की मांग के रूप में करवट ले ली।

इस कार्यक्रम का आयोजन मानवाधिकार संगठन द्वारा विजय पार्क स्थिति अपने राष्ट्रीय कार्यालय में किया गया। बेहद कम में आयोजित इस इस कार्यक्रम में राज्य आन्दोलन के शुरुवाती योधाओं से लेकर रामपुर तिराहा कांड के चश्मदीदों तक का चयन कर संगठन द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कैंट विधायक हरबंस कपूर इस अवसर पर राज्य आन्दोलन में शहीद हुए उन सभी शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि इस आन्दोलन के शामिल उन तमाम आंदोलनकारियों का सम्मान करता हूं जिन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए इसमें अपना योगदान दिया।इस अवसर पर उन्होंने आन्दोलन के कुछ संस्मरणों को भी साझा किया

1994 में डीएवी कॉलेज व छात्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष रहे वीरेन्द्र पोखरियाल (पप्पू) राज्य आन्दोलन की तमाम तारीखों को सिलसिले-वार रख कर बताया कि वह किस तरह सबसे पहले व सबसे ज्यादा बार जेल गए । अपने बरेली जेल के किस्से को याद करते हुए उन्होंने बताया कि जेल पहुँचने के बाद अगली सुबह तत्कालीन विधायक हरबंस कपूर हम लोगों के लिए फल लेकर जेल पहुँच गए जिससे हम सभी साथियों का मनोबल बढ़ गया। उसके बाद उन्होंने तत्कालीन मुलायम सरकार द्वारा उनको आन्दोलन से हट जाने के प्रलोभन व धमकियों को भी साझा किया ।शहर में फैले बेतरतीब ट्रेफिक जाम के चलते देरी से पहुंचे आन्दोलनकारी पूनम नौटियाल ने आन्दोलन में घटित कुछ मजेदार किस्सों से माहौल को खुशनुमा करते हुए बतया कि किस तरह उनके नाम के कारण उनको महिला समझ लिया जाता था ।

1994 के आन्दोलन सूत्रधार व रक्त दान में अपना कीर्तिमान बना चुके अनिल वर्मा ने बताया कि किस तरह वह सरकारी मुलाजिम होने के बावजूद आन्दोलन में शिरकत करते रहे. उन्होंने आन्दोलन की तमाम महत्वपूर्ण तारीखों और उसमें शामिल लोगों के योगदान को भी साझा किया ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे संगठन के चेयरमैन सचिन जैन ने राज्य के उन सभी शहीदों का स्मरण करते हुए कहा कि उन लोगों के बलिदान के कारण वर्षों से चली आ रही पृथक उत्तराखंड की मांग अंतत: 09 नवंबर 2000 के रूप में इतिहास के पन्नों दर्ज हो गई और उत्तराखण्ड को सत्ताइसवें राज्य के रूप में भारत गणराज्य में शामिल किया गया। वर्ष 2000 से 2006 तक इसे उत्तरांचल के नाम से पुकारा जाता था, लेकिन जनवरी 2007 में जन-भावनाओं का सम्मान करते हुए इसका आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया । उन्होंने बताया की बेहद कम समय में निर्धारित हुए इस कार्यक्रम को जल्द ही विस्तार से आयोजित किया जायेगा उनके पास आन्दोलन की नींव रहे और भी आन्दोलनकारियों के नाम हैं जिनसे संपर्क न हो पाने के कारण उनका सम्मान नहीं हो पाया जिन्हें वह अगले कार्यक्रम में आमंत्रित किया जायेगा ।


सम्मानित होने वाले प्रमुख राज्य आन्दोलनकारी

  1. अनिल वर्मा – सूत्रधार, पूर्व छात्रसंघ उपाध्यक्ष एवं मुख्य सलाहकार, डीएवी कॉलेज।
  2. विरेन्द्र पोखरियाल – अध्यक्ष सहकारी बाजार, पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष, डीएवी कॉलेज।
  3. विजय प्रताप सिंह मल्ल – पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष डीएवी कॉलेज
  4. अब्बल सिंह नेगी – पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष, डी०बी०एस० कालेज
  5. पूनम नौटियाल – पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष डी०बी०एस० कालेज।
  6. संदीप पटवाल – पूर्व छात्रनेता डी ए वी कालेज तथा तीन बार पूर्व पार्षद।
  7. अम्बुज शर्मा – वरिष्ठ पत्रकार,पूर्व छात्र नेता डी.ए.वी (पी.जी) कालेज।
  8. सुरेश नेगी – राज्य वरिष्ठ आंदोलनकारी। रामपुर तिराहा कांड का प्रत्यक्षदर्शी व घायलों के मददगार।
  9. वेदानन्द कोठारी – वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी।
  10. सुमित राज थापा – वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी।

इस अवसर पर संगठन के प्रदेश अध्यक्ष श्रीमती मधु जैन राजकुमार तिवारी प्रदेश उपाध्यक्ष लच्छू गुप्ता, कुलदीप, विधायक जी विशंभर नाथ बजाज, रेखा निगम, अमित अरोड़ा, सुमित बसक, सुदेशना बसक, पंडित सुभाष चंद्र, सतपति, विवेक जैन, हरीश कटारिया जितेंद्र डंडोना आदि लोग उपस्थित रहे ।

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