देहरादून, 21अगस्त : पिछले 25 दिनों से ठेकेदारों द्वारा चलाया जा रहा काम रोको आन्दोलन आज समाप्त हो गया। असल में प्रदेश के सिविल कार्यों से जुड़े समस्त विभागों के ठेकेदार, खनन विभाग द्वारा 28 जून को निकाले उस आदेश जिसमें उनके द्वारा इस्तेमाल की गई खनन सामग्री पर उसकी कुल कीमत से 5 गुना उत्तराखंड राॅयलटी ली जाने का तुगलकी फरमान जारी हो रखा था। जिसके ख़िलाफ़ लगभग पूरे प्रदेश के ठेकेदार काम रोको आन्दोलन शुरू कर दिया। आन्दोलन के शुरुवाती दौर में उन लोगों ने अपनी पीड़ा स्थानीय विधयाकों को समझाई और उन सभी ने उनकी जायज मांग से इत्तिफाक रखते हुए उनके समर्थन में पत्र भी लिखे मगर तब भी हासिल पाई जीरो ही रहा। अंततः आज उनकी गुहार ऊपर वाले की कृपा से हल भी हो गई और वह लोग भी अपनी इस ऐतिहासिक जीत से प्रफ्फुलित नज़र आये जो कि स्वभाविक भी था। लेकिन ये हड़ताल अपने पीछे कुछ सवाल भी छोड़ गई जिस पर विचार करना भी जरुरी है ।

हमारी लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में हड़तालों का भी अपना महत्व है जब भी हम सरकार के किसी फैसले से असहमत होते हैं और उसे गैरवाजिब मानते हैं तो पहले उस बात को सम्बंधित पटल पर रखते हैं और जब वहां भी न सुनी जाये तो अनशन /सत्याग्रह जैसे तरीकों का सहारा लेतें हैं। जैसा कि यहाँ भी हुआ। इस हड़ताल का मुख्य कारण था 28 जून को खनन विभाग के सचिव पंकज पांडे का वह तुगलकी आदेश जिसमे ठेकेदारों से 5 गुना राॅयलटी वसूलने की बात कही गई थी। यहाँ पर गौर करने वाली बात यह है कि उक्त आदेश में खनन सचिव प्रदेश में हो रही खनन की चोरी को रोकने के लिए इस आदेश को निकलने की बात करते है और नकेल सिविल कार्य से जुड़े विभागों पर डाली जा रही थी, मानों सारी चोरी उन्हीं के द्वारा अंजाम दी जा रही हो। जबकि उस फरमान के ख़िलाफ़ सूबे के लगभग सभी विधयाकों ने एक सुर में उसका विरोध दर्ज किया था।

इस हड़ताल से सर्वाधिक प्रभावित विभाग लो.नि.वि. जिसके मंत्री सतपाल महाराज हैं उन्होंने भी इस मुद्दे के समाधान में कोई रचनात्मक पहल करते नजर नहीं आये । अब आखिर में बात करते हैं सूबे के मुखिया धामी जी की जिनके पास खनन विभाग है वह इस मुद्दे पर खामोश क्यों रहे ? जबकि सारा मामला उन्हीं के यहाँ से शुरू हुआ था। अगर उनके खनन सचिव को चोरी रोकने और जुर्माना लगाने का इतना ही शौक है तो नदियों के उन तटों पर खनन विभाग के आदमी बेठाओ जहाँ से निकासी होती है और उन पुलिस थानों/चौकियों पर पेनाल्टी लगाओ जहाँ से ले-दे कर माल निकल रहा है । ठेकेदार तो जो भी माल इस्तेमाल करता है उसका पक्का बिल माय जीएसटी और विभागीय 25% पेनाल्टी पहले से ही दे रहा है ! उस पर ये जुल्म क्यों ?

अब 25 दिन के बाद खनन सचिव सामने आ कर बताते हैं कि भई ! यह गलतफमी के कारण हुआ है हमारी मंशा यह नहीं थी सारी व्यवस्थाये पूर्व की भांति ही रहेंगी तो सवाल ये उठता है कि जब सूबे के मुखिया के यहाँ से पैदा हुई गलतफमी दूर करने के लिए पूरे प्रदेश के ठेकेदारों को 25 हड़ताल करनी पड़ी हो तो दूसरे विभागों का क्या हाल होगा कहना मुश्किल है।

मा0 मुख्यमंत्री जी आप भली भांति जानते हैं कि उत्तराखंड आपदाओं का प्रदेश है कौन सी आपदा कहाँ प्रकट हो जाये, कहा नहीं जा सकता। बाकी बरसात में तो इसका कहर कई गुना बढ़ जाता है। देहरादून के हाल देख कर पूरे सूबे की स्थिति समझी जा सकती है । आज जो ये ग़लतफ़हमी दूर करने की बात सचिव महोदय ने की है उसके पीछे 19 अगस्त को सरखेत में आयी वह आसमानी आपदा है जिसके बाद बाँदल नदी ने अपने रौद्र रूप के दर्शन कराते हुए सौंग नदी के अपने तटों को नेस्तनाबूत करते हुए रायपुर -थानों के पुल अलग कर दिया। 20 अगस्त को इस आपदा के नुकसान का आंकलन हुआ जिसमें कुल रु 132 करोड़ की बात सामने आयी। इसमें केवल लो.नि.वि. के हिस्से रु 87.4 का बजट आया। ऐसे में विभाग की हड़ताल को ख़तम किये बिना गाड़ी आगे नहीं बाद सकती थी गोया 21 अगस्त ठेकेदारों की जीत का दिन साबित हुआ। अब आप हार-जीत का सेहरा जिसके भी सर पर भी बांधे, मगर 25 दिन चली हड़ताल और उसके चलते हुए नुकसान की जिम्मेदारी भी तो तय होनी चाहिये ! ख़बर तो ये भी है कि सचिवालय में हुई बैठक के बाद भी कुछ सवाल साफ़ नहीं हो पाए जिसके चलते ठेकेदार कल्याण समिति में असमंजस की स्थिति बनी हुए थी।

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