देहरादून , 3 फरवरी को उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी को 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण को लेकर विधान सभा में एक बैठक का आयोजन किया गया।
शाम 5 बजे विधानसभा में शुरू हुई बैठक की अध्यक्षता कर रहे कमेटी के अध्यक्ष कबीना मंत्री सुबोध उनियाल ने आमंत्रित सभी अधिकारियों का स्वागत करते हुए वार्तालाप प्रारंभ करने को कहा। जिस पर कमेटी के सदस्य काबिना मंत्री सौरभ बहुगुणा ने सर्व प्रथम कार्मिक विभाग से पूरे प्रकरण को समझाने को कहा गया। जिसके बाद अपर सचिव कार्मिक ललित मोहन रयाल द्वारा 2004 से चले सभी सभी घटनाक्रम को कमेटी के सम्मुख रखा। इसके बाद आरक्षण दिए जाने के संदर्भ में आ रही अड़चनों पर चर्चा शुरु की गई।


चर्चा शुरू करते हुए कार्मिक सचिव शैलेश बगोली ने 2013 को हटाए गए 3 कर्मियों की पुर्ननियुक्ति के बारे में अपने विचार रखे और विधि विभाग द्वारा उसमें आने वाली अड़चन को रखा। अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने कहा कि वास्तव में इन लोगों के साथ बहुत गलत हुआ है अतः इसमें सुधार करना चहिए वह कैसे होगा यह विधि विभाग तय करे। कबिना मंत्री सौरभ बहुगुणा ने अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी की बात का समर्थन करते हुए कहा कि पहले उस अधिकारी के खिलाफ़ कार्यवाही होनी चाहिए जिसके कारण यह गलती हुई। इस पर अपर मुख्य सचिव द्वारा बताया गया कि उक्त अधिकारी अब सेवानिवृत्त हो चुके है।
वार्ता चल ही रही थी कि आंदोलनकारियों का पक्ष रखने वहां मौजूद क्रांति कुकरेती ,अम्बुज शर्मा व प्रवीण पुरोहित ने हाथ उठा कर अपनी बात रखने की अनुमति मांगी, जिस पर कमेटी के अध्यक्ष सुबोध उनियाल ने अनुमति देते हुए कहा कि जिन लोगों के सन्दर्भ में यह बैठक बुलाई गई है उनका पक्ष जानना भी जरूरी है।
इस पर क्रांति कुकरेती व अम्बुज शर्मा ने कहा कि हम लोगों ने 42 दिन का अनशन सभी आंदोलनकारियों व उनके आश्रितों के लिए 10% क्षैतिज आरक्षण की मांग को लेकर किया था, जिसे माननीय मुख़्यमंत्री द्वारा दिए गए आश्वासन के बाद तोड़ा गया था । आज पुरे प्रदेश के आंदोलनकारियों की नजरे इस बैठक पर है और यहाँ चर्चा सिर्फ तीन लोगों की पुर्ननियुक्ति पर हो रही है। जिसका समर्थन करते हुए कमेटी केअध्यक्ष सुबोध उनियाल ने चर्चा को सभी आंदोलनकारियों के लिऐ आरक्षण लागू करने की दिशा में बढ़ाने को कहा।
इस पर अपर मुख्य सचिव ने कहा कि सरकार चाहे तो नोटिफिकेशन के माध्यम से रास्ता खोल सकती है और बाद में केबिनेट में बिल लाकर एक्ट बना सकती है। जिस पर कार्मिक सचिव ने आपत्ति दर्ज करते हुए कहा कि पहले नोटिफिकेशन लाना गलत हो सकता है। इस पर विधि सचिव द्वारा 12 दिसंबर 2018 के माननीय उच्च न्यायालय का आदेश व उच्चतम न्यायालय से हुए नोटिस का हवाला देते हुए दोनों ही संभावनाओं को खारिज कर दिया।
इस पर कबीना मंत्री सौरभ बहुगुणा ने सवाल किया कि अगर सरकार जनहित में कोई कानून बनाना चाहती है तो क्या न्यायालय उसमें रोक लगाने का कार्य करेगा ? आखिर विधायिका किस लिए बनी हैं । उन्होंने इसी प्रकरण में 19 अक्टूबर 2016 को माननीय उच्च न्यायलय के न्यायाधीश सुधांशु धुलिया व यू.सी. ध्यानी के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने भी माना कहा था कि सरकार चाहे तो एक्ट लाकर क्षैतिज आरक्षण का लाभ दे सकती है, उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि किसी भी समस्या हल करने का सिर्फ एक ही तरीका होता है और उलझाने के सैकड़ों। अब यह आप लोगों पर निर्भर है कि आप कौन सी दिशा चुनते हैं।
इसके बाद आंदोलनकारियों के प्रतिनिधि मंडल को बैठक से विदा लेने को कहा। उसके लगभग 45 मिनट बाद बैठक समाप्त हो गई, किंतु काबिना मंत्री सुबोध उनियाल व कार्मिक सचिव शैलेश बगोली ने 30 मिनट तक अकेले में चर्चा करी।
सभी आंदोलनकारियों को फिर से उम्मीद जगी है कि शायद आगामी दिनों में कैबिनेट के माध्यम इस बिल को सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है।

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