1917 मे सोवियत संघ मे मजदूर वर्ग के नेतृत्व मे हुई क्रान्ति ने विश्व सहित भारत के आजादी के आन्दोलन मे संर्घषरत आन्दोलनकारियों को प्रभावित किया ।कुछ भारतीय क्रान्तिकारी काफी कठिनाइयों को पार करते हुए सोवियत संध के क्रांतिकारियों को मिलने पहुंचे तथा उन क्रान्तिकारियों की पहल पर 17अक्टूबर1920 को कम्युनिस्ट पार्टी ( वामपंथ ) की स्थापना हुई, जिसका मुख्य मकसद माक्सवाद़, लेनिनवाद की व्यवहारिक समझ को विकसित करना था ।
अपनी स्थापना के समय से ही वामपंथियों ने हमारे देश के राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन को प्रभावित करना शुरू कर दिया था ।1921 के अहमदाबाद के अधिवेशन मे अंग्रेजो से पूर्ण स्वराज की मांग के रूप मे परलक्षित हुई । किन्तु गांधीजी ने इस मांग को ठुकरा दिया । 1922 में गया सम्मेलन मे कम्युनिस्ट पार्टी ने राष्ट्रीय आन्दोलन के लक्ष्य के कार्यक्रम को वितरित किया । वामपंथियों के बढते प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए ब्रिटिश शासन वामपंथियों के खिलाफ तरह-तरह से दमनात्मक कार्यवाही कर रहा था ।इतिहास मे इसे कानपुर, मेरठ षढयन्त्र आदि के नाम से जाना जाता है ।इससे पूर्व भी 1915 मे गदर पार्टी के लोगों को अंग्रेजो ने लाहौर षढयन्त्र केस के तहत फँसाया गया । इन तमाम केसो मे सैकड़ों की संख्या मे क्रान्तिकारियों को मौत के घाट उतारा गया ।
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मेरठ षढयन्त्र केस जो 20 मार्च 1929 को शुरू हुआ इस केस मे कम्युनिस्ट पार्टी के 31 शीर्ष नेताओं को कठोर सजाऐ दी गई ।सजा काटने के बाद पार्टी के इन नेताओं ने 1934 से जनता के बीच खुलकर काम करना शुरू कर दिया । इस प्रकार धीरे धीरे अखिल भारतीय केन्द्र विकसित होने लगा ।यह सिलसिला लगातार जारी रहा ।इस प्रकार आजादी के आन्दोलन मे तीन विचारधाराओं ने काम करना शुरू किया पहले जो काग्रेस के नेतृत्व मे मुख्यधारा थी ।जिसका मुख्य लक्ष्य था धर्म निरपेक्ष ,गणराज्य वाला देश, दूसरे कम्युनिस्ट थे जो पहली मुख्य विचार से सहमत तो थे किन्तु वे इससे एक कदम आगे चाहते थे कि पूजीपतियों से मुक्त टिकाऊ व्यवस्था।इसप्रकार कम्युनिस्ट राजनीतिक आजादी के साथ साथ आगे सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक मुक्ति मिले जो कि समाजवादी व्यवस्था के तहत ही सम्भव था । इसके लिए कम्युनिस्ट आज भी देश की जनता के मध्य सत़त संघर्ष कर रहे हैं ।इसके साथ ही तीसरा विचार था जो स्वतंत्रता को मजहबी आधार पर देख रहा था ।इनमें मुस्लिम लीग जो मुस्लिम राष्ट्र व संघ हिन्दू राष्ट्र की कल्पना कर रहा था । आज भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संध आधुनिक राष्ट्र को एक धोर अहष्णुणता,फासीवादी, हिंदू राष्ट्र की कल्पना को साकार करने मे लगा हुआ है ।स्पष्ट है किआज की राजनीतिक स्थिति को देखते हुए ऐ विचारधारात्मक टकराव भविष्य मे और भी अधिक तेज होगा ।
आजादी के आन्दोलन मे वामपंथ की भूमिकाः
कम्युनिस्ट पार्टा के कारण ही आजादी के आन्दोलन मे सबको साथ लेने की परम्परा की नीव पडी । पार्टी द्वारा चलाये गए आन्दोलनों व संघषों के कारण बहुत सारे मुद्दे राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रमुख हिस्से बने । जिनमें भूमि संघर्ष व भूमि सुधार के आन्दोलन आदि प्रमुख थे । वामपंथियों के नेतृत्व मे केरल, बंगाल, महाराष्ट्र, असम आदि क्षेत्रों तथा दलित, आदिवासी ,महिलाओं, समाज सुधार के लिए चलाऐ गये संघर्षो की परम्परा उल्लेखनीय है ।तेलंगाना का सशस्त्र विद्रोह इतिहास के पन्नों मे पर स्वर्णाक्षरो मे दर्ज है ।जहाँ किसानों ने वामपंथियों के नेतृत्व मे सशस्त्र आन्दोलन कर सामन्तशाही का खात्मा किया इस प्रकार वामपंथियों ने भारी कुर्बानी देकर करोड़ों लोगों को सामन्ती दासता से मुक्त कर भारत के मुक्ति संघर्ष से जोडने का कार्य किया । ठीक इसके विपरीत काग्रेंस ने भारत मे शोषक वर्ग को ही अपना साझेदार बनाया । इसी प्रकार वामपंथियों ने भाषावार पुर्नगठन के लिए लोकप्रिय संघर्षों का नेतृत्व किया । यदि आज भारत का राजनीतिक स्वरूप जनतांत्रिक, वैज्ञानिक, विविधता मे एकता का नजर आता है तो उसका श्रेय कम्युनिस्ट को ही जाता है ।
वामपंथियों ने धर्मनिरपेक्षता के प्रति अपनी बचनबद्धता का निर्रवहन बडी ही ईमानदारी से किया ।वामपंथ का स्पष्ट मत था कि साम्प्रदायिक विभाजन की काट साम्राज्यवाद और शोषक वर्ग के खिलाफ सभी जातियों व धर्म से जुड़े मेहनतकश वर्ग की एकता से ही सम्भव है ………..
साभार – अनन्त आकाश