हेमवती नंदन बहुगुणा का जन्म 25 अप्रैल 1919 को उत्तराखंड के पौड़ी जिले के बुघाणी गांव में हुआ। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा पौड़ी से ही ग्रहण की और इसके बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए की डिग्री हासिल की। शिक्षा ग्रहण करने के दौरान ही बहुगुणा स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गए और बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी निभाई। स्वतंत्रता संग्राम हो या आजादी के बाद देश को विकास के पथ पर अग्रसर करने की बात, बहुगुणा हर मोर्चे पर अग्रिम पंक्ति में खड़े रहे। वह पहाड़ों के सच्चे हितैषी थे। पहाड़ की पगडंडियों से निकलकर उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में अपना नाम दर्ज कराया। उन्हें हमेशा अपनी जन्मभूमि की चिंता रही। उन्होंने अलग पर्वतीय विकास मंत्रलय बनाकर विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले पहाड़ी क्षेत्रों के विकास को एक नई दिशा दी। बहुगुणा 1980 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस में दोबारा शामिल हो गए। इसी दौरान दौरान कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की। बहुगुणा ने भी गढ़वाल से जीत दर्ज कि। लेकिन उन्हें कैबिनेट में जगह नहीं मिली। जिस वजह से छह माह के अंदर ही उन्होंने पार्टी के साथ ही लोकसभा की सदस्यता भी छोड़ दी थी।इसके बाद उन्‍होंने 1982 में इलाहाबाद की इसी सीट पर हुए उपचुनाव में भी जीत हासिल की थी। 1984 का चुनाव में राजीव गांधी ने अमिताभ बच्चन को इनके सामने खड़ा कर दिया था। बहुगुणा लोकदल से मैदान में थे। इन चुनावों में अमिताभ बच्चन ने बहुगुणा को एक लाख से ज्‍यादा वोटों से हरा दिया था। इस हार के बाद बहुगुणा ने राजनीति से संन्यास ले लिया था। राजनीति से संन्यास के बाद हेमवती नंदन बहुगुणा पर्यावरण संरक्षण के कार्यों में लग गए थे।  

हिमालय पुत्र स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा की आज जयंती है। बहुगुणा को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने अंतिम सांस तक देश और पहाड़ों के विकास की ही फिक्र की। उत्तराखंड की आधार भूमि तय करने में भी उनकी भूमिका को कभी भुलाया नहीं जा सकता। पंडित गोविंद वल्लभ पंत के बाद वह ऐसे दूसरे नेता थे, जिन्होंने पहाड़ की पगडंडियों से निकलकर राष्ट्रीय राजनीति में ख्याति प्राप्त की। स्वर्गीय बहुगुणा की कर्मभूमि भले ही इलाहाबाद रही, लेकिन उन्हें हमेशा अपनी जन्मभूमि की फिक्र रहती थी। वह हमेशा पहाड़ी राज्यों के पक्षधर रहे। यही कारण था कि उन्होंने अलग पर्वतीय विकास मंत्रालय बनाकर विषय भौगोलिक परिस्थितियों वाले पहाड़ी क्षेत्रों के विकास को एक नई दिशा दी। बहुगुणा ने गढ़वाल विकास निगम, कुमाऊँ विकास निगम की स्थापना का, तीर्थों को पर्यटन से जोड़ा, साथ ही पलायन पर प्रभावी रोक लगाने के लिए देहरादून व अल्मोड़ा में होटल मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट की स्थापना वर्ष 1975 में करवाई ताकि यहां का नौजवान पर्यटन के क्षेत्र में  स्वरोजगार बना सके,  शिक्षा के लिये गढ़वाल विश्वविद्यालय व कुमाऊँ विश्वविद्यालय की स्थापना की, देहरादून जनपद को मेरठ कमिश्नरी से गढ़वाल कमिश्नरी में शामिल करने का दूरदर्शी कदम उठाया। अनुसूचित जाति-जनजाति के आरक्षण के अतिरिक्त दूरस्थ हिमाच्छादित पर्वतीय क्षेत्रों के छात्र-छात्राओं को अलग से मेडिकल, इंजीनियरिंग व उच्च शिक्षण संस्थाओं में 5% आरक्षण की व्यवस्था प्रवेश में की।  भविष्य में टिहरी बांध से उत्पन्न होने वाली बिजली का 10% पर्वतीय क्षेत्रों को नि:शुल्क वितरण का आदेश वर्ष 1975 में जारी किया, फौज में भर्ती के लिये सीने व लम्बाई की माप में पहाड़ों के नवजवानों को छूट प्रदान केंद्र से करवायी, सीमांत तहसीलें जो चीन की सीमा से जुड़ी थी उनके लिये फौज में हाई स्कूल उत्तीर्ण तक की छूट दी। राजनीति में कुशल संगठनकर्ता की पहचान रखने वाले बहुगुणा अपने आदर्शो व जनता में पैठ रखने की अपनी क्षमता के बूते मौजूदा राजनीतिज्ञों के लिए भी प्रेरणास्रोत हैं।

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला (दून विश्वविद्यालय)