डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
टीएचडीसी तिगडम बाजी कर के हेलंग में बन रही सुरंग के मलबे को ठिकाने लगाने का प्रपंच रच कर रही है और बदनान हो रही है सरकार। इतिहास गवाह है कि बहुराष्ट्रीय कंपनिया अपने पैसे के दम पर किसी के भी हक़-हकुकों को ख़त्म करवा देती है ।उसे सिवाए अपने मुनाफ़े के किसी चीज से कोई मतलब नहीं होता। वैसे सरकार ने जाँच के आदेश तो दे दिए मगर किस-किस अधिकारी के लक्ष्मी-गणेश पूजे गए क्या यह भी सामने आ पायेगा ? या फ़िर जाँच अधिकारी भी इस मामले में बड़ी मछली साबित होंगे ।
जंगलों से घास लाना क्या ‘गुनाह’ है मेरी सरकार !
सुदूर पहाड़ की एक सीधी-साधी घसियारी की पीठ पर लदा घास का गट्ठर उतारना, राज्य सरकार के गले की फांस भी बनता जा रहा है । प्रकृति के त्योहार हरेले से एक दिन पूर्व 15 जुलाई को चमोली जिले के हैलंग इलाके में मंदोदरी देवी नाम की इस महिला के साथ हुई पुलिसिया बदसलूकी ने पूरे प्रदेश के लोगों को उद्वलित कर दिया।
गत दिवस उत्तराखंड के सीमांत जनपद चमोली जिले जो खबरें सामने आई वह विचलित करने वाली हैं। राज्य-गठन के 21 सालों बाद भी उस मातृ- शक्ति , जिनकी बदौलत यह राज्य बना, अपने हक़-हकूकों के लिए जुझती हुई नजर आयी । सोशल मिडिया के मार्फ़त निकली इस ख़बर में पहले चमोली जिले के हेंलंग की कुछ महिलाओं की सीआईएसएफ व स्थानीय पुलिस से नोक-झोंक हुई दिखती है औऱ उसके बाद उनको उठाकर नजदीकी पुलिस स्टेशन भी ले जाकर बंद कर दिया जाता है और शाम को उनको शांति भंग करने के जुर्म में चालान काटा कर छोड़ दिया जाता है। इस मामले में ग्रामीणों का कहना था कि THDC उनके पारंपरिक चारागाह को खत्म कर वहां “खेल का मैदान” बनाने का “खेल” कर रही है। जिसके नाम पर वह सुरंग से निकलने वाली मिटटी को यहाँ डंप करना चाहती है। ग्रामीण युवक ने बताया कि यहाँ खेल मैदान बनाने का यहाँ कोई औचित्य नही है। हमारी प्राथमिकता पशुओं के लिए चारापत्ती का इंतज़ाम करना है।
इस प्रकरण की पृष्ठभूमि की जानकारी के लिए बताते चलें कि उत्तराखंड के चमोली जिले में जोशीमठ शहर के पास टीएचडीसी की पीपलकोटी विष्णुगाड़ नाम की जल विद्युत परियोजना चल रही है। इसी परियोजना के लिए हैलंग नाम की एक जगह पर सुरंग का निर्माण किया जा रहा है। परियोजना को संचालित करने वाली कम्पनी के पास इस सुरंग से निकले मलवे को डंप करने के लिए जो स्थान उपलब्ध हैं, वहां मलवे का निपटारा करना खासा महंगा है। इसलिए कम्पनी सुरंग के इस मलवे को अपनी सुविधानुसार सीधे-सीधे अलकनंदा नदी में डंप करने की सोच रही है। लेकिन मलवा खुलेआम नदी के हवाले करने से होने वाले विवाद की वजह से कम्पनी ने बैकडोर का सहारा लेते हुए नदी के किनारे एक स्थान पर इस मलवे को डंप करना शुरू कर दिया जिससे भविष्य में यह मलवा बाढ़ आने पर खुद ही नदी में समा जाए।
गांव वालों का दावा है कि यह स्थान उनके मवेशियों की चारागाह का काम करता है। जिस पर उनका नेसर्गिक अधिकार है । उत्तराखंड विधानसभा चुनाव से पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में ‘मुख्यमंत्री घस्यारी कल्याण योजना’ का शुभारंभ किया गया था। ताकि इस योजना के माध्यम से पशुपालकों को पौष्टिक पशु आहार उपलब्ध करवाया जाएगा। जिससे कि दुग्ध उत्पादन में वृद्धि हो सकेगी और लोगों की कृषि और पशुपालन में रुचि बढ़े और ये लोगों के आजीविका का साधन भी बन सके… दूसरी तरफ पुलिस का कहना है शांति व्यवस्था बनाने के लिए उन्हें वाहन से थाने में लाया गया। उन्हें हिदायत देकर छोड़ दिया गया।
लेकिन सवाल तो यह है कि घास काटकर लाने से कौन सी शांति भंग हो रही थी ? गांव के लोग जंगलों से घास नहीं लाएंगे तो अपने जानवरों को खिलाएंगे क्या ? पलायन का दंश झेल रहे उत्तराखण्ड में जो लोग आज भी जंगल और जानवरों के बीच रह कर अपनी गुजर बसर कर रहे हैं, उनको परेशान करके पुलिस क्या संदेश देना चाहती है ?
अब सरकार किस पर और क्या एक्शन लेती है यह तो पता नहीं लेकिन पहाड़ियों का हक मारने के लिए बैठी इन कम्पनियों से अपने जल, जंगल, जमीन के हक़-हकूकों को बचाने की लड़ाई की शुरुवात लगभग शुरू हो चुकी है और तमाम जनता भी उनके हक़ में लामबंद होती दिख रही है वैसे भी इस लड़ाई में आम जनता को ही आगे आना होगा, क्योंकि शासक और शोषक वर्ग तो सिवाए अपने हित के कुछ नहीं सोचता।
यह लेखक के निजी विचार हैं !
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