चमोली, चमोली का सीमांत गांव घेस जिसके बारे में कभी कहते थे कि घेस के बाद नहीं है देश के लोग वैज्ञानिक तरीके से खेती कर लोगों को वापस लौटने का संदेश दे रहे हैं। घेस के साथ ही बलाण, पिनाऊं और हिमनी के ग्रामीण मटर की वैज्ञानिक तरीके से खेती कर लाखों रुपये कामकर लोगों को सकारात्मक संदेश दे रहे हैं। घेस चमोली जिले में देवाल ब्लाक का आखिरी गांव है । घेस पहाड़ियों से घिरा और लगभग 5600 फिट की ऊंचाई पर स्थित खूबसूरत पहाडी गांव है। यहां पर परम्परागत रूप से जैविक पद्धति से ही पहाड़ के अन्य गांवों की तरह खेती होती है। उच्च हिमालयी गांव होने से पहले यहां पर भी आलू , चैलाई , ओगल, फाफर की ही खेती होती थी। पर गांव के काश्तकारों ने परम्परागत खेती के साथ साथ नये बदलाव की भी जरूरत समझी और नकदी फसल के अंतर्गत मटर की खेती शुरू की। गांव के पप्पू भाई की पहल पर गांव में मटर की खेती शुद्ध जैविक तरीके से उत्पादित की गयी। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने भी गत वर्ष गांव में जाकर गांव वालों की इस पहल को सराहा और ग्रामीणों द्वारा पहाड़ी सीढ़ी नुमा खेतों में उगाई गई मटर की फसल को देखा और एक फली तोड़कर काश्तकारों के इस प्रयास की सराहना की ।
घेस में सेब उत्पादन के प्रति जागरूकता बनी है। क्षेत्रवासी अर्जुन सिंह बिष्ट जो गांव, ग्रामीण और शासन के बीच खेती उत्पादन और ई लर्निंग के लिये सेतु का काम कर रहे हैं बताते हैं 70 हेक्टेयर में तीन वर्ष पूर्व सेब की खेती का काम ग्रामीणों ने शुरू किया। सेब के पेड़ों पर अब फ्लोटिंग भी होने लगी है। जड़ी बूटी का भी गांव बन सकता है। पिंडर घाटी के गांव में हरपाल नेगी अपनी संस्था और साथियों के साथ जड़ी बूटी की खेती के अभियान में जुटे हैं। इस गांव के खेतों मे उन्होंने ने कुटकी कूट की खेती के लिये ग्रामीणों को प्रोत्साहित किया। घेस गांव में मटर की खेती का प्रयोग खूब सफल हो रहा है। पप्पू भाई कहते हैं कि गांव के लोगों द्वारा उगाई जैविक पद्धति से तैयार मटर हल्द्वानी की मंडी से होते हुये लखनऊ और अन्य शहरों में हाथों हाथ बिकती है। अर्जुन सिंह बिष्ट कहते हैं कि मटर की खेती में खूब फायदा हुआ। इस बार बरसात अधिक होने से मटर की खेती कुछ कम हुयी। पर काश्तकारों को उनकी मेहनत और उसका लाभकारी मूल्य तो मिला ही। घेस के ग्रामीणों ने जो नजीर पेश की है। वह पहाड़ के गांवो से पलायन रोकने में हल्की ही सही मगर एक नई रोशनी तो दे ही रही है। गांव के काश्तकार अब अपने उच्च हिमालयी खेतों में गुलाब की खेती की ओर भी उन्मुख हो रहे हैं। महिलाओं को इस ओर प्रभावित किया जा रहा है।