प्रज्ञेश्वर महादेव मंदिर में रुद्राभिषेक करते हुए।
                      शिवाभिषेक कर राष्ट्रोत्थान के लिए हुई सामूहिक प्रार्थना
हरिद्वार, देवसंस्कृति विश्वविद्यालय परिसर में स्थित प्रज्ञेश्वर महादेव मंदिर में अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुखद्वय डॉ. प्रणव पण्ड्या एवं शैलदीदी ने शिवाभिषेक कर कल्याणकारी चिंतन एवं राष्ट्र की विकास हेतु प्रार्थना की। अमेरिका, कनाडा, दुबई सहित विभिन्न देशों से आये अतिथियों एवं गायत्री परिवार के हजारों शिवभक्तों के प्रतिनिधि के रूप में प्रमुखद्वय ने रुद्राष्टकम्, महाकालाष्टकम, पुरुष सूक्त व अन्य वैदिक कर्मकांड के साथ पूजन किया।
गीता के ज्ञान योग से अभिभूत हुए देसंविवि विद्यार्थी
इस धरती में पवित्रतम है ज्ञानः डॉ. पण्ड्या- देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि इस धरती में ज्ञान सबसे अधिक पवित्र है। ज्ञान वह है जो आचरण में जिया जाता है। ज्ञान से ही मनुष्य अन्य प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ है। वे देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के मृज्युंजय सभागार में आयोजित गीतामृत की विशेष सभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि सद्ज्ञान से अहंकार को गलाया जा सकता है और ज्ञान (विवेक)से अनेक समस्याओं का निराकरण किया जा सकता है। सभ्यता एवं मनुष्य जीवन का बोध ज्ञान की देन है। संस्कारों को विकसित करने का काम ज्ञान से ही होता है। भारतीय संस्कृति में ज्ञान को जीवन का सर्वोत्कृष्ट माना गया है। गीता से संबंधित कई पुस्तकों के लेखक कुलाधिपति ने डॉ. पण्ड्या ने कहा कि ज्ञान से ही मनुष्य की बौद्धिक क्षमता, भावनात्मक स्थिरता एवं आध्यात्मिक विकास होता है। इस अवसर पर देसंविवि के अभिभावक डॉ पण्ड्या ने विद्यार्थियों के विविध शंकाओं का समाधान भी किया। इससे पूर्व कुलाधिपति डॉ. पण्ड्या ने ‘जिसने जीते हृदय वही, होता विश्व विजेता…’ गीत को बांसुरी, सितार आदि वाद्ययंत्रों के साथ गाकर उपस्थित साधकों को गीता का मर्म समझाया। इस दौरान कुलपति श्री शरद पारधी, प्रति कुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या, कुलसचिव बलदाऊ देवांगन सहित समस्त विभागाध्यक्ष, प्रोफेसर्स, विद्यार्थीगण एवं शांतिकुंज के अनेक कार्यकर्त्तागण उपस्थित रहे।
          इस मौके पर देवसंस्कृति विवि के कुलाधिपति डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि शिव की साधना के नाम पर ही लोग अशिव आचरण करने लगते हैं। उन्होंने कहा कि इस अवसर पर सामूहिक पर्वायोजन के माध्यम से फैली हुई भ्रांतियों का निवारण करते हुए शिव की गरिमा के अनुरूप उसके स्वरूप पर जन आस्थाएँ स्थापित की जानी चाहिए, ताकि व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से पुण्य अर्जन और समाज कल्याण की दिशा में आगे बढ़ा जा सके। देसंविवि की कुलसंरक्षिका शैलदीदी ने महाशिवरात्रि पर्व को अपने अंदर एक महाकाल जगाने का महापर्व बताया। उन्होंने कहा कि जिस तरह त्रिकालदर्शी महादेव ने दूसरों के हित के लिए विषपान किया, उसी तरह गायत्री परिवार के जनक पूज्य आचार्यश्री ने समाज के नवनिर्माण के लिए अनेक तरह के जहर को पीते हुए युग निर्माण की दिशा में सार्थक कदम बढ़ाया है।
पुरुष सुक्त के साथ रुद्राभिषेक का वैदिक कर्मकाण्ड पं शिवप्रसाद मिश्रा एवं उनकी टीम ने किया। संगीत विभाग के भाइयों ने सुमधुर शिव आराधना से सम्पूर्ण परिसर को मंत्रमुग्ध कर दिया, तो वहीं सितार, शंख व डमरू की झंकार ने लोगों के अंदर के तार को झूमने के लिए उल्लसित किया। उधर शांतिकुंज स्थित शिवालय में भी विभिन्न राज्यों से आये शिवभक्तों ने अभिषेक किया तथा अपने अंदर की एक बुराई छोड़ने एवं शिवत्व की ओर बढ़ने के लिए एक अच्छाई ग्रहण करने का संकल्प लिया।