दिल्ली में रह रहे प्रवासी उत्तराखंडी विनोद बछेती कई वर्षों से दिल्ली रह कर पहाड़ी बोली भाषा को बचने की कोशिश कर रहें हैं। इसी कड़ी में उन्होंने पुनः एक पत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत गृह मंत्री अमित शाह व् राष्ट्रिय अध्यक्ष जेपी नड्डा को लिखा।

देहरादून/ दिल्ली 19 अप्रैल : गढ़ राजाओं और चंद शासनकाल में कभी राजभाषा रही गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी बोली को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने को लेकर एक बार फिर जोर पकडने लगा है। इन भाषाओं की पर्याप्त साहित्यिक पृष्ठभूमि होने के बावजूद इसे अब तक संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल नहीं किया जा सका है ऐसा कहना है मयूर विहार भाजपा जिलाध्यअक्ष विनोद बछेती का। गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी बोली को संविधान की आठवीं अनुसूची में जगह मिले इस बाबत एक ज्ञापन उत्तराखंड के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ मिलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी के राष्ट्रीनय अध्युक्ष जेपी नडडा को भेजा है।

साथ ही उनसे उत्तराखंड के एक प्रतिनिधिमंडल ने मिलने की गुहार लगाई है। विनोद बछेती ने कहा कि मैथिली, बोडो और कोकणी से कहीं अधिक लोग गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी बोलते हैं। 1560 से 1790 तक सभी शासकीय कार्य गढ़वाली एवं कुमाऊंनी बोली में ही होते थे। ताम्रपत्रों, शिलालेखों एवं सरकारी दस्तावेजों में इसके अभिलेखीय प्रमाण मौजूद हैं। इसके बावजूद गढ़वाली, कुमाऊंनी बोली को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया सका है।

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