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वैसे तो इंसान मरते दम तक कुछ न कुछ अनुभव लेता रहता है, मगर लिखने -पड़ने-सिखने की कोई उम्र नहीं होती अगर इच्छा हो तो कहीं से भी शुरुवात की जा सकती है और ऐसा कर दिखाया है झारखंड के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने | वह आजकल सुर्ख़ियों में हैं , वजह बना है उनका इंटरमीडिएट में एडमिशन लेना | वे सिर्फ मैट्रिक (दसवीं) पास थे | यह परीक्षा भी उन्होंने 28 साल की उम्र में पास की थी | अगर उनकी पढ़ाई ठीक चली, तो वे 55 साल की उम्र में इंटर (बारहवीं) की परीक्षा पास करेंगे | बचपन की ग़रीबी और बाद के सालों में झारखंड आंदोलन में सक्रियता के कारण उनकी पढ़ाई बीच में ही रुक गई थी | अब अपनी पढ़ाई को फिर से शुरू करने को लेकर वे काफी उत्साहित |

शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो फोटो सोर्स-बीबीसी

उन्होंने पहले विषय के बतौर राजनीति शास्त्र का चुनाव किया है | उनका मानना है कि पॉलिटिक्स (राजनीति) करने वाले व्यक्ति को पालिटिकल साइंस (राजनीति शास्त्र) तो पढ़ना ही चाहिए | उन्होंने बीबीसी को दिये इंटरव्यू में बताया कि, “परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. पांच भाई-बहनों वाले परिवार में सबको सिस्टमेटिक तरीके से पढ़ा पाना मेरे पिताजी के लिए संभव नहीं था. प्राइमरी स्कूल में पढ़ाई शुरू तो की लेकिन मैट्रिक पास करने से पहले ही रुक गई. तब तक झारखंड आंदोलन की शुरुआत हो चुकी थी| मेरे ऊपर विनोद बिहारी महतो और गुरुजी (शिबू सोरेन) का बड़ा प्रभाव पड़ा, तो मैं झारखंड आंदोलन में शामिल हो गया. अलग राज्य की लड़ाई लड़ने में कभी यहां, कभी वहां रातें गुजारीं. इसी दौरान वक्त निकाल कर पढ़ाई भी की और सन-1995 में मैट्रिक पास कर गया. फिर पढ़ाई रुक गई.”

जगरनाथ महतो ने कहा, “जब शिक्षा मंत्री पद की शपथ ले रहा था, तभी कुछ व्हाइट कालर लोगों ने मेरी शैक्षणिक योग्यता को लेकर छींटाकशी की. वे अंग्रजी बोलने वाले लोग थे. उन्हें यह नहीं पता था कि लोकतंत्र में मंत्री बनने के लिए जनता का निर्वाचित प्रतिनिधि होना जरुरी है. इसके लिए संविधान ने कोई शैक्षणिक योग्यता तय नहीं की है. तभी मुझे लगा कि इन्हें जवाब देना चाहिए और मैंने आगे की पढ़ाई पूरी करने का निर्णय लिया |”

उन्होंने यह भी कहा, “ग़रीबी के कारण मेरी पढ़ाई बीच में रुकी थी. अब ऐसा और किसी के साथ नहीं हो, इललिए हमारी सरकार ने हर पंचायत के एक स्कूल को लीडर (माडल) स्कूल बनाने का निर्णय लिया है. इन स्कूलों में अंग्रेजी की भी पढ़ाई करायी जाएगी, ताकि ग़रीबों के बच्चे भी महंगे प्राईवेट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की तरह अंग्रेजी बोल सकें |”

 

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