वर्ष 1982 में नंदा देवी क्षेत्र के 630.33 वर्ग किमी क्षेत्र को राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया। 12 जनवरी 1987 को नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क अस्तित्व में आया और वर्ष 1992 में इसे विश्व धरोहर के रूप में पहचान मिली। वर्ष 2004 में इसे यूनेस्को के वर्ल्‍ड नेटवर्क ऑफ बायोस्फीयर रिजर्व में सम्मिलित किया गया। यह पार्क फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान के साथ मिलकर नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व बनता है, जिसका कुल क्षेत्रफल 2236.74 वर्ग किमी है और इसके चारों ओर 5148.57 वर्ग किमी का बफर जोन है। नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क इन दिनों पर्यटकों से गुलजार है। अब तक लगभग 12 हजार पर्यटक पार्क की सैर कर चुके हैं। यहां के ट्रैकिग रूट व बुग्याल (मखमली घास के मैदान) पर्यटकों को खूब भा रहे हैं। लेकिन, पर्यटकों की आमद बढ़ने से साफ-सुथरे जंगल व बुग्यालों में प्लास्टिक कचरे के खतरे भी सामने आ रहे हैं। प्लास्टिक जैविक रूप से अपघटित नहीं होता है. प्लास्टिक के घटक खंडित होकर पर्यावरण में जहरीले रसायनों जैसे पैथलेट्स और बिसफिनोल ए को छोड़ना शुरू कर देते हैं. यह रसायन शरीर का संतुलन बिगाड़ते हैं और बांझपन, एलर्जी और कैंसर का खतरा उत्पन्न कर देते हैं। प्लास्टिक को जलाना तो और भी ज्यादा खतरनाक है क्योंकि जलाने पर और भी खतरनाक गैसों को छोड़ना शुरू कर देता है। सीपीवीसी, निओप्रिन, सीपीई प्लास्टिक इस तरह के प्लास्टिक हैं, जिन्हें जलाने पर ये डाइआक्सिन गैस छोड़ते हैं. ये गैस बेहद घातक है और कई गंभीर बिमारियों को जन्म देती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यदि डाइआक्सिन एक बार मानव शरीर या पर्यावरण में घुल जाये तो यह वहां पर चट्टान की तरह इकट्ठी हो जाती है और फिर हमेशा के लिये वहीं बनी रहती है.हमें अकसर ही ऐसी तस्वीरें देखने को मिल जाती है जिसमें दिखाया जाता है कि किस तरह प्लास्टिक समुद्र को अपनी गिरफ्त में ले रहा है और मासूम समुद्री जीव इनमें फँस कर अपनी जान गंवा रहे हैं.यह हालत सिर्फ महासागरों की ही नहीं है. धरती की स्थिति तो और भी खतरनाक है. एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले दशक में उत्पादित प्लास्टिक की मात्रा इससे पहले की सारी हदों को पार कर चुकी है।

एक और सर्वेक्षण के अनुसार इंडानेशिया, थाइलेंड और वियतनाम जैसे एशियाई मुल्कों को प्लास्टिक प्रदूषण में सबसे अधिक योगदान है. भारत भी इसमें कोई कम पीछे नहीं है। भारत में प्रतिदिन 15000 टन से अधिक प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है. जिसमें से 6000 टन से अधिक कचरा ढंग से संग्रहित न किये जाने के कारण फैल जाता है। राजधानी दिल्ली की स्थिति तो और भी खराब है. दिल्ली देश का सबसे अधिक प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करने वाला शहर है। हाल ही में प्लास्टिक पर वैश्विक रिपोर्ट जारी हुई है जिसके अनुसार प्लास्टिक की उपस्थिति पर्यावरण में प्रदूषण को स्थाई बना रही है। धरती से दूरस्थ इलाकों जैसे आर्कटिक और पैसिफिक आइलेंड में भी प्लास्टिक की अधिकता बढ़ी है. समुद्रों से भी हर साल 80 लाख टन प्लास्टिक निकाला जा रहा है। 2050 तक यह आंकड़ा चार गुना बढ़ जाने का अनुमान है। अफ़सोस इस बात का है कि प्लास्टिक के दुष्परिणामों के समझने के बावजूद भी दिन-ब-दिन प्लास्टिक का इस्तेमाल बढ़ रहा है। 2013 में एक अमेरिकन प्रति वर्ष लगभग 109-किलोग्राम प्लास्टिक का इस्तेमाल कर रहा था। चीन में यह दर 45 किलोग्राम थी और भारत में स्थिति काफी बेहतर थी। यहां यह दर 9.7 किग्रा ही थी पर पिछले कुछ वर्षों में प्लास्टिक के इस्तेमाल में सालाना 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क इन दिनों पर्यटकों से गुलजार है। अब तक लगभग 12 हजार पर्यटक पार्क की सैर को पहुंच चुके हैं। यहां के ट्रैकिग रूट व बुग्याल (मखमली घास के मैदान) पर्यटकों को खूब भा रहे हैं। लेकिन, पर्यटकों की आमद बढ़ने से साफ-सुथरे जंगल व बुग्यालों में प्लास्टिक कचरे के खतरे भी सामने आ रहे हैं। पर्यटकों की ओर से पानी की खाली बोतलें व प्लास्टिक कचरा ट्रैकिग रूट व पड़ावों पर फेंका जा रहा है। हालांकि, वन विभाग सहित स्थानीय लोग समय-समय पर पार्क में सफाई अभियान चलाकर कचरे को सुरक्षित स्थानों पर लाते रहे हैं।नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क के बफर जोन में स्थित क्वारीपास पर्यटकों का सबसे पसंदीदा ट्रैक है। इस ट्रैक पर पर्यटक जोशीमठ-औली से ताली गैलगाड़ और क्वारीपास फुलारा होते हुए ढाक तुगासी गांव वापस आते हैं। 27 किमी लंबे इस ट्रैक की खासियत यह है कि इसमें चार बुग्याल गौरसों, उनील, चित्रखाना व क्वारी पड़ते हैं। हर पर्यटक करीब से इनकी सुंदरता को निहारना चाहता है। इस ट्रैक पर गढ़वाल हिमालय के हिमशिखरों का 360 डिग्री पैनोरमिक व्यू पर्यटकों को देखने को मिलता है। यानी यहां से 14 से अधिक हिमशिखर एक साथ देखे जा सकते हैं।पर्यटकों को यहां जाने के लिए नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क प्रशासन से अनुमति लेनी पड़ती है। शर्त यह है कि पर्यटक साथ ले जाई गई वस्तुओं के कचरे को वापस लाएंगे। इसके लिए प्रति पर्यटक 60 रुपये ईको शुल्क लिया जाता है। लेकिन, पर्यटकों की ओर से अनुमति शर्तों की अनदेखी किए जाने से यहां प्लास्टिक कचरा बिखरे होने की शिकायतें आम हैं। बुग्यालों में कैंपिग पर रोक है। बावजूद इसके बुग्यालों को पिकनिक स्पाट बनाए जाने से वहां फैल रहा प्लास्टिक कचरा समस्या बनता जा रहा है।

स्थानीय लोग बताते हैं कि पर्यटक प्रकृति पर्यटन का परमिट लेकर यहां जाते हैं और फिर नियम-कायदों को पूरी तरह दरकिनार कर देते हैं।इस ट्रैकिग रूट पर गुलिग, खुलारा व ताली में कैंपिग के लिए जगह निश्चित है, लेकिन पर्यटक जहां-तहां टेंट गाड़ दे रहे हैं। इससे पार्क प्रशासन भी अनभिज्ञ है। बताया गया कि पहले तो पर्यटकों के जाने के बाद यहां अस्थायी कैंप लगते थे, लेकिन अब फुलारा ताली क्षेत्र में बाकायदा स्थायी कैंप लगाए गए हैं। पर्यटकों को परमिट नियमों के अनुसार साथ ले जाए गए प्लास्टिक को वापस लाना होता है। औली व गौरसों में दो डस्टबीन लगाए गए हैं। पर्यटकों को कूड़ेदान में ही कूड़ा डालना चाहिए। क्वारीपास में प्लास्टिक कचरे को लेकर शिकायतें हैं, इसलिए भविष्य में वहां भी कूड़ादान लगाने की योजना है। प्लास्टिक इंसानों की ही नहीं पर्वतों की सेहत भी बिगाड़ रहा है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पर्यावरण के अनुकूल तरीके से प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए पहली बार प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 अधिसूचित किए थे। नियमों के तहत 50 माइक्रोन से कम के प्लास्टिक कैरी बैग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। कई राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों ने चिन्हित एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। इसके अलावा मंत्रालय ने प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियमए 2016 में संशोधन के लिए मार्च 2021 में डिस्पोजेबल प्लास्टिक कटलरी जैसी 12 एकल उपयोग प्लास्टिक वस्तुओं को प्रतिबंधित करने के संबंध में एक अधिसूचना जारी की गई है।पर्यटकों और ट्रेकरों के छोड़े गए प्लास्टिक कचरे से जैव विविधता को खतरा होने के कारण पहाड़ों की खूबसूरती पर भी दाग लग रहा है।

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला (दून विश्वविद्यालय )

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