उत्तराखंड का पहला तरणताल जिसने अनगिनत खिलाडिय़ों की नैया पार लगाई है, आज खुद के वजूद के लिए जंग लड़ रहा है। हल्द्वानी में स्व. एनडी तिवारी ने इस तरणताल को 1999 में इस मकसद से बनवाया था कि खिलाडिय़ों की प्रतिभा निखर कर आ सके और वह देश भर में इस प्रतिस्पर्धा से नाम रोशन कर सकें। कई खेल भी यहां पर हुए, लेकिन अब पानी के फिल्टरेशन की कोई व्यवस्था नहीं होने से तरणताल का पानी गंदा है। खिलाडिय़ों ने भी यहां आना छोड़ दिया है। आज यह तरणताल बदहाली के आंसू बहा रहा है। करीब एक करोड़ की लागत से यह तरणताल बनाया गया था। 1999 में शिलान्यास के बाद इसे खेल विभाग के सुपुर्द कर दिया गया था। उत्तराखंड का पहला तरणताल खस्ताहाल हो चुका है। सिस्टम की अनदेखी के कारण लगातार तीसरे साल भी यहां तैराकी शुरू नहीं हो सकी है। ऐसे में स्वीमिंग में कॅरियर बनाने का सपना देखने वाले बच्चों को प्रैक्टिस का मौका नहीं मिल पा रहा है। वर्ष 1999 में तरणताल बनकर तैयार हो गया था। इसमें खिलाडिय़ों को प्रतिभा दिखाने का मौका मिला और कई खिलाडिय़ों ने राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिभाग किया। समय के साथ सिस्टम ने तरणताल की अनदेखी करना शुरू कर दिया। सालों से खराब फिल्टर को आज तक नहीं बदला गया। पहले कोरोना संक्रमण के कारण दो सालों से तरणताल में ताला लटका रहा। अब फिल्टर खराब होने का हवाला देकर खेल विभाग ने हाथ खड़े कर दिए हैं। तरणताल बंद होने से जिले के दर्जनों खिलाडिय़ों को अपनी प्रतिभा उजागर करने का अवसर नहीं मिल पा रहा है तरणताल की लंबाई करीब 50 मीटर है। तरणताल बनने के साथ ही 25 लाख की लागत से फिल्टर प्लांट भी बना। मगर दस साल पहले प्लांट ने दम तोड़ दिया। इसकी मरम्मत के लिए कई बार प्रस्ताव भेजा जा चुका है। लेकिन यह सही नहीं हो सका। 25 खिलाड़ी तरणताल में तैराकी सीख नेशनल तक खेल चुके हैं।
विभाग के अनुसार कोविड से पहले 300 बच्चे यहां सुबह व शाम को प्रैक्टिस के लिए आते थे। खिलाडिय़ों को प्रशिक्षण देने के लिए दो ट्रेनर भी तैनात किए गए थे। ट्रेनर भी पिछले दो तीन साल से बेरोजगार हैं। भीषण गर्मी के कारण तरणताल सूख चुका है। नाम मात्र का जो पानी बचा है उसमें काई लग चुकी है। तरणताल परिसर में बड़ी-बड़ी झाडिय़ां उग चुकी हैं। आसपास के लोगों ने गेट से सामने ही कूड़ा फेंकना भी शुरू कर दिया है। जिला क्रीड़ा अधिकारी ने बताया कि तरणताल का फील्टर खराब पड़ा हुआ है। इसे सही कराने के प्रयास जारी हैं। खेल प्रतिभाओं को बढ़ाने के लिए तैराकी की वैकल्पिक व्यवस्था कराने की तैयारी है। मुख्यमंत्री ने कई बार सार्वजनिक सभाओं में कहा था कि खिलाड़ियों को जब तक सुविधाएँ नहीं मिलेंगी तब तक कैसे वे बेहतर प्रदर्शन करेंगे? इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए नई खेल नीति को लागू करने की क़वायद शुरू की गई और महज चार महीने में नई खेल नीति तैयार कर लागू भी कर दी गई। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने नई खेल नीति को लेकर कहा है कि नई खेल नीति आगामी ओलंम्पिक में उत्तराखंड के खिलाड़ियों का गोल्ड मेडल का सफर तय करेगी। मुख्यमंत्री ने बताया कि नई खेल नीति में खिलाड़ियों की फ़िट्नेस, जनरल डाइट के साथ-साथ एक्स्ट्रा न्यूट्रिएंट्स, फूड डाइट की व्यवस्था भी रखी गई है। इतना ही नहीं प्रदेश के खिलाड़ियों के लिए रोजगार के अवसर और इससे सम्बंधित सुविधाएँ देने का प्रावधान इस नई नीति में किया गया है। मुख्यमंत्री के घोषणा अनुसार प्रदेश सरकार द्वारा युवाओं में नेशनल-इंटरनेशनल लेवल की स्किल डेवलपमेंट करने हेतु आर्थिक प्रोत्साहन देने की भी व्यवस्था की गई है। युवा मुख्यमंत्री के युवाओं को हर क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए हरसंभव प्रयास में जुटे हैं। इससे पूर्व खेल अवस्थापन सुविधाओं को विकसित करने के लिए प्रदेश में स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी, हर ज़िला मुख्यालय पर “खेलो इंडिया” स्तर की सुविधा और हर ग्राम पंचायत में ओपन जिम विकसित करने की ओर प्रयास कर रहे हैं । “पहाड़ का पानी और जवानी…कभी उसके काम नहीं आते हैं।” यह कहावत उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य के खेल परिदृश्य पर सटीक बैठती है। वजह है खेल प्रतिभाओं का पलायन, रिषभ पंत जैसे प्रतिभाशाली विकेटकीपर-बल्लेबाज को अपनी खेलने की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए रुड़की छोड़ना पड़ा। इसी तरह महेंद्र सिंह धोनी भी “जवानी और पानी” की तरह उत्तराखंड के के कभी काम न आए। इसी तरह देहरादून निवासी भारतीय मिडफील्डर अनिरुद्ध थापा को भी फुटबाल खेलने की अपनी हसरत को पूरा करने के लिए उत्तराखंड से पलायन करने पड़ा था। उत्तराखंड की एकमात्र हॉकी स्टार वंदना कटारिया को भी अपना हुनर निखारने के लिए पलायन करना पड़ा।वह भारतीय महिला हॉकी टीम में एक जाना-माना नाम हैं और यह फॉरवर्ड लम्बे समय टीम के लिए गोल कर रही है। पूर्व अंतर्राष्ट्रीय फुटबालर जतिन सिंह बिष्ट को भी शीर्ष स्तर पर खेलने के लिए पलायन करना पड़ा। लिहाजा, राज्य के कई ऐसे पूर्व एवं वर्तमान प्रतिभाशाली खिलाड़ी हैं, जिन्हें पलायन करने को मजबूर होना पड़ा। राज्य के नीति-निर्माताओं को राज्य की परिस्थिति के हिसाब से खेल नीति बनाने की जरूरत है। उन्हें ऐसे खेल और खिलाड़ियों को बढ़ावा देने की जरूरत है, जो राज्य की परिस्थितयों के हिसाब से फिट बैठते हो। जैसे कि, एथलेटिक्स, बॉक्सिंग, पर्वतारोहण, तैराकी इत्यादि। अगर, नीति-निर्माता ऐसे खेलों को बढ़ावा दें, तो इन खेलों में राज्य के प्रतिशाली खिलाड़ी देश का नाम राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रौशन कर सके। इस राज्य की भौगोलिक परिस्थितियां कुछ खेलों के लिहाज से एकदम माकूल है, जैसे कि पर्वतारोहण, एथलेटिक्स, तैराकी इत्यादि। पर्वतारोहण में, बच्छेंद्रीपाल को माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाली पहली महिला माउंटेनियर का गौरव हासिल है, जबकि लवराज धर्मशक्तु तो रिकॉर्ड सात बार दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह कर चुके हैं। इसके अलावा यह भी देखना होगा कि राज्य की खेल प्रतिभाओं का पलायन न हो और इसके लिए उनको भरपूर मौके देने की जरूरत है।
हरीश चन्द्र अन्डोल (दून विश्वविद्यालय)