उत्तराखंड में सरकारी अस्पतालों के हाल-बेहाल है। सभी 13 जिला मुख्यालयों तथा विभिन्न विकासखंडों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तो बने हुए हैं, परंतु उनमें स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं और चिकित्सकों तथा अन्य स्टाफ की भारी कमी है। मैदानी जिलों देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंह नगर के सरकारी अस्पतालों में ही चिकित्सकों की भारी कमी है। सूबे के पहाड़ी जिलों उत्तरकाशी, चमोली, टिहरी गढ़वाल, पौड़ी गढ़वाल, रुद्रप्रयाग, अल्मोड़ा, चंपावत, नैनीताल, पिथौरागढ़ और बागेश्वर में सरकारी अस्पतालों की तो हालत और भी ज्यादा खस्ता है। सरकारी अस्पतालों में कही एक्सरे की मशीन खराब है तो कहीं पैथोलॉजी लैब में सामान पूरा नहीं है। राज्य गठन के बाद प्रदेश के पर्वतीय इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं को दुरुस्त करना सभी सरकारों के लिए चुनौती बनी हुई है। इसके लिए प्रयास तो हुए लेकिन मजबूत इच्छाशक्ति के अभाव में कोई भी सरकार चिकित्सकों को पहाड़ चढ़ाने में सफल नहीं हो पाई है।

प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाएं पर्वतीय क्षेत्रों में पटरी से उतरी हुई हैं। इसका सबसे बड़ा कारण स्वास्थ्य विभाग में चिकित्सकों की कमी होना है। प्रदेश सरकार ने चिकित्सकों की कमी को दूर करने के तमाम दावे किए मगर अभी तक पहाड़ में लोग नौकरी करने से घबराते हैं। यहां पोस्टिंग पाने के साथ ही कर्मचारी यहां से निकलने के लिए तरह-तरह के जुगाड़ लगाने लगते हैं। ऐसा ही हाल चिकित्सकों का भी है। ऐसे सरकारी कर्मचारियों के लिए वरिष्ठ सर्जन डा. एएसएन राव किसी प्रेरणा से कम नहीं हैं। चिकित्सकों की कमी और देवभूमि के लोगों की सेवा करने का जज्बा उन्हें यहां खींच लाया। आज वह मेडिकल कालेज में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

छह प्रधानमंत्रियों को अपनी सेवाएं दे चुके वरिष्ठ सर्जन चिकित्सक डा. एएसएन राव सेवानिवृत्ति के बाद मेडिकल कालेज अल्मोड़ा में अपनी सेवा दे रहे हैं। वह 1994 से 2019 तक प्रधानमंत्री कार्यालय में वीवीआइपी मेडिकल यूनिट में तैनात थे। पूर्व पीएम नरसिम्हा राव से लेकर वर्तमान पीएम नरेंद्र मोदी तक को वह स्वास्थ्य परामर्श से लाभ दे चुके हैं। उन्होंने 23 वर्ष तक दिल्ली के सफदरजंग व 15 वर्षों तक राम मनोहर लोहिया अस्पताल में सेवा दी। राम मनोहर लोहिया अस्पताल में सबसे पहले दूरबीन विधि से मोटापे की सर्जरी डा. राव ने ही शुरू की थी।

सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने देवभूमि में अपनी सेवाएं देने का मन बनाया। उन्होंने कहा कि इससे पुण्यकाम कुछ नहीं हो सकता है वह देवभूमि में है। यहां चिकित्सकों की भी कमी है। इसलिए उन्होंने यहां आने का मन बनाया। जब तक वह सक्रिय होकर कार्य कर सकते है वह काम करेंगे। यहां स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है। जिससे काम करने में दिक्कत हो रही है। सरकार को इसके लिए कुछ करना होगा। छोटे-मोटे इलाज के लिए मरीजों को रेफर करने की आदत बदलनी होगी। डा. राव मूलरूप से आंध्रप्रदेश के है। उन्होंने उड़ीसा के ब्रहमपुर मेडिकल कालेज से एमबीबीएस किया। इसके बाद उन्होंने 40 वर्षों तक विभिन्न अस्पतालों में नौकरी की। एक साल पहले 2021 में वह उत्तराखंड आ गए। पहले उन्होंने हिमालयन मेडिकल कालेज में काम किया। इसके बाद वह अल्मोड़ा मेडिकल कालेज आ गए।

लम्बे संघर्षों और बलिदानों के बाद उत्तराखंड राज्य का निर्माण हुआ है। राज्य आंदोलन के संघर्ष में महिलाओं की प्रमुख भूमिका रही है। राज्य आंदोलन की बुनियाद में प्रदेश की महिलाओं के कष्ट भी प्रमुख थे। लेकिन इसके बावजूद राज्य बनने के बीस वर्ष बाद भी महिलाओं को प्रसव के लिये अपनी जान से समझौता करना पड़ रहा है, यह बेहद शर्मनाक स्थिति है। किसी भी राज्य की दशा और दिशा को बदलने तथा वहां के नागरिकों के लिए बुनियादी सुविधाओं को उपलब्ध करवाने के लिए दो दशक का समय काफी होता है। लेकिन उत्तराखंड में इसकी कमी राज्य से लेकर पंचायत स्तर तक की उदासीनता दर्शाता है। यह उदासीनता पहाड़ की बेटियों के जीवन को खतरे में डाल रही है। जब उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का हिस्सा था, तब चिकित्सकों की पहली तैनाती पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती थी। 21 साल में पर्वतीय क्षेत्रों के लिए एक ठोस चिकित्सा नीति तक नहीं बनी है। सूबे में 50 फीसद चिकित्सकों की कमी है। पहाड़ पर डॉक्टरों की कमी का रोना रो रही सरकार खुद ही उन्हें पहाड़ पर जाने से रोक रही है पहाड़ से ही पहाड़ के बाशिंदों का पलायन, दुर्गम से दूरी बनाकर सुगम में की हर संभव जुगाड़बाजी जैसी खबरों के बीच जब यह पता लगता है कि दो मैदानी लोगों ने पहाड़ की सेवा में खुद को ‘पहाड़ी’ बना लिया तो उनके जज्बे की सराहना किए बिना नहीं रह सकते।

समाज में चिकित्सकों को भगवान का दर्जा प्राप्त है। लेकिन देवभूमि उत्तराखंड की विडंबना यह है यह भगवान पहाड़ से हर संभव दूरी बनाने का जतन करता है। पहाड़ में पलायन का कारण स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार ही रहा है। शिक्षा के नाम पर सरकार ने कुछ कॉलेज तो शुरु करा दिये मगर स्वास्थ्य के मामले में अब डाक्टरों की लापरवाही का खमियाजा आज भी पहाड़ के मरीज भुगत रहे हैं, वह मामूली से इलाज के लिए मैदानी क्षेत्रों का रुख कर रहे हैं ।जल्दी ही डॉक्टरों की संख्या नहीं बढ़ी तो पहाड़ से पलायन तेज हो जाएगा । ऐसे में डा. राव किसी प्रेरणा से कम नहीं हैं।

ये लेखक केनिजी विचार हैं .

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला (दून-विश्वविद्यालय)

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