प्रथम पुण्य तिथि पर नमन
स्वनाम धन्य, प्रख्यात जन सेवी, सौम्य व्यक्तित्व के स्वामी व नगरपालिका देहरादून के अध्यक्ष रहे स्वर्गीय श्री दीनानाथ सलूजा सच्चे अर्थों में एक निष्काम कर्मयोगी थे। उनका पूरा जीवन समाज के लिए समर्पित था। उनकी एक बड़ी विशेषता यह थी कि वह सब के मित्र थे और इस कारण लोग उन्हें अजातशत्रु मानते थे।
जन्म ,शिक्षा व कार्य
दीनानाथ सलूजा का जन्म 25 दिसंबर 1938 को डेरा गाजी खान पाकिस्तान में हुआ था। उनके पिता गिरधारी लाल सलूजा और माता श्रीमती कौशल्या देवी के संस्कारों के साथ बड़े हुए श्री दीनानाथ सलूजा का को समाज सेवा के प्रति रुझान छात्र जीवन में प्रकट होने लगा था। सुविधाहीन छात्रों व अन्य लोगों की मदद करना उनका स्वभाव बन गया था। परिवार में दूसरा बड़ा पुत्र होने के नाते वह अपने पिता द्वारा 1937 में स्थापित नेशनल न्यूज़ एजेंसी जो देहरादून के समाचार पत्रों व पत्रिकाओं के वितरण की सबसे बड़ी एजेंसी थी के कार्यों में सहयोग करने के साथ ही शिक्षा पर भी उनका पूरा ध्यान देते रहे।
उन्होंने डीएवी (पीजी) कॉलेज देहरादून से एम.कॉम. किया। कॉलेज में जहां वे जरूरतमंद छात्रों की मदद करते रहते थे। वह कॉलेज की विभिन्न गतिविधियों में भी भाग लेते और कार्यक्रम आयोजन में भी सहयोग करते हैं। इसी के चलते उनका छात्रों से व्यापक परिचय हुआ। जिनमें कई साथी बाद में उनके अंतरंग मित्र भी बन गए। इनमें से कई के साथ उनकी मित्रता जीवन भर चली।
सामाजिक जीवन
पढ़ाई पूरी करने के बाद वे व्यवसाय के साथ सामाजिक जीवन में भी सक्रिय हो गए। सामाजिक जीवन में उनका योगदान बहुआयामी था। उन्होंने साहित्य ,संस्कृति , शिक्षा , खेल, पत्रकारिता, सेवा सहित विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य किए। यदि साहित्य की बात की जाए तो हिंदी साहित्य समिति के अध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल हमेशा याद किया जाएगा। उनके नेतृत्व में समिति द्वारा कई अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिनमें देश के प्रख्यात कवि शामिल हुए इन सम्मेलनों में भारी संख्या में श्रोता उमड़ते । उन्होंने राष्ट्रीय कवियों के साथ स्थानीय कवियों को भी प्रोत्साहित करते हुए मंच उपलब्ध कराया। उनके समय प्रसिद्ध गीतकार गोपालदास ‘नीरज’ का सम्मान किया गया। उन्होंने हिंदी साहित्य समिति के लिए परेड मैदान में हिंदी भवन के लिए नगर पालिका से स्थान उपलब्ध कराया। श्री सलूजा ने नए लेखकों को भी प्रोत्साहित किया और उन्हें पुस्तक प्रकाशन में भी सहयोग किया। वह मुशायरा में भी रुचि रखते थे, इसीलिए मुशायरा में शामिल होने के साथ उनके लिए सहयोग भी देते थे। श्री सलूजा ने संस्कृति संरक्षण वह उसके विकास के लिए भी योगदान दिया कई संस्कृतिक संस्थाओं से संबंध रखने के अलावा में सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन में योगदान भी करते, उन्होंने कई कलाकारों को प्रोत्साहित करते हुए सहयोग भी किया। इसके आलावा वह गांधी शताब्दी नेत्र चिकित्सालय ट्रस्ट के सदस्य भी रहे । उन्होंने अन्य कार्यों के अलावा चिकित्सालय में एक कक्ष का निर्माण भी कराया। वह लायंस क्लब शिवालिक के अध्यक्ष भी रहे। उनके कार्यकाल में क्लब ने नई ऊंचाइयों को छुआ। क्लब के माध्यम से भी उन्होंने अनेकों सेवा कार्य किए।
शिक्षा के प्रति उनका विशेष अनुराग था। इस हेतु उन्होंने कई कार्य किए। वह गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर के सदस्य भी निर्वाचित हुए और इस रूप में उनकी भूमिका सराहनीय रही। श्री सलूजा नारी शिल्प मंदिर इंटर कॉलेज के ट्रस्टी भी थे और स्कूल के लिए उन्होंने कई काम किए। खेल जगत से भी श्री सलूजा का निकट का रिश्ता था। वे देहरादून डिस्टिक स्पोर्ट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे और उनके नेतृत्व में देहरादून में फुटबॉल सहित विभिन्न खेलों के राष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंट भी हुए। वे देहरादून चैस एसोसिएशन के संस्थापक अध्यक्ष थे। उनके कार्यकाल में देहरादून में उत्तर प्रदेश स्तर के चैस टूर्नामेंट भी हुए।
पत्रकारों को सम्मान व् राजनितिक जीवन
आज का मिडिया जगत भले ही श्री सलूजा को बिसरा चूका हो मगर पत्रकारों के लिए उनके मन में जो स्नेह व् सम्मान था उसका प्रतीक आज भी उत्तरांचल प्रैस क्लब के रूप में हमारे सामने है। उन्हीं के प्रयासों की बदौलत पत्रकारों को वर्ष 1993 में नगर पालिका बोर्ड ने परेड मैदान में मौजूद सरकारी गोदाम व उसके आसपास की भूमि को प्रेस क्लब के लिए उपलब्ध करवाया गया जिसके बाद 01 जनवरी 1994 में उत्तरांचल प्रैस क्लब ( तत्कालीन नाम : दून प्रैस क्लब ) वजूद में आया। उ दून प्रैस क्लब की स्थापना के बाद उन्होंने अन्य प्रेस संस्थाओं को भी सहयोग दिया।
आज के समय में जब लोग चुनाव लड़ने के लिए तमाम राष्ट्रीय राजनितिक दलों का टिकट पाने के लिए अपने ज़मीर तक बेच देते हैं. ऐसे में उनका निर्दलीय तौर पर नगरपालिका देहरादून का अध्यक्ष (1989 – 1994) चुना जाना उनके बेमिसाल व्यक्तित्व को दर्शाने के लिए काफ़ी है। वह कभी भी किसी राजनीतिक दल के सदस्य नहीं रहे, लेकिन उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि लोगों ने पार्टी लाइन से हटकर उन्हें विजई बनाया। इससे हमें यह भी पता चलता है कि उस समय इस शहर की जनता कितनी स्वाबलंबी और समझदार थी। पालिका अध्यक्ष रहते हुए कई जनसेवा की, जिसमे प्रमुख रूप से पटेल पार्क देहरादून में सरदार पटेल की प्रतिमा व घंटाघर चौक पर बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा उनके द्वारा स्थापित कराई गई।
नौटंकीबाजी से परहेज़
आज जब लोग शमशान घाट जाकर चिता के साथ सेल्फ़ी लेकर अपने योगदान का ढोल पीट रहें है ऐसे में उनके व्यक्तित्व की एक विशेषता यह भी महसूस की जा सकती है कि उन्होंने कभी भी अपने सेवा-कार्यों का प्रचार नहीं किया। उन्होंने न जाने कितने लोगों की मदद की, लेकिन कभी भी, किसी से इसका उल्लेख नहीं किया। समाज सेवा के कार्य में उन्हें अपने परिवार का पूरा सहयोग मिलता था। उनकी पत्नी श्रीमती कृष्णा सलूजा जीवन पर्यंत पति के कार्यों में सहभागी रही। उनके छोटे भाई विजय सलूजा, भाभी इंदु सलूजा उनके कार्य में हाथ बटाने के साथ उनके स्वास्थ्य का भी ध्यान रखते थे। दोनों भाइयों ने 1991 में देहरादून क्लासिफाइड नाम से साप्ताहिक समाचार पत्र शुरू किया जो तुरंत ही लोकप्रिय हो गया। उनके भतीजे ऋषि सलूजा व उनकी पत्नी नंदिनी हमेशा उनके कार्य में सहयोग के साथ उनका पूरा ख्याल रखते थे। यह दोनों बच्चे बहुत सेवाभावी हैं अपनी ताऊजी दीनानाथ जी को हमेशा बड़े पापा कहकर बुलाते रहे हैं। उनकी पुत्रियां श्रीमती अनुराधा कटारिया व श्रीमती रश्मि छाबड़ा और भतीजी पूजा मेहरा के लिए उनके मार्ग-दर्शक वह संरक्षक थे।
श्री सलूजा राधास्वामी (दयालबाग) मत के अनुभवी अनुयाई थे पर वे सभी धर्मों का सम्मान करते थे। उन्होंने कभी दलगत राजनीति में भाग नहीं लिया। उनकी कथनी और करनी में कभी कोई अंतर नहीं रहा अहंकार उन्हें कभी छू तक नहीं पाया। यही कारण था कि सभी वर्गों के लोगों में उनके अंतरंग मित्र थे और समस्त शहर में उनका नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। आज भले ही सलूजा जी हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके अविस्मरणीय योगदान, व्यक्तित्व व कृतित्व सदैव इस शहर की स्मृतियों में जीवित रहेगा। उनके द्वारा दिखाया गया मार्ग हमेशा हमारे लिए प्रेरणा स्रोत का कार्य करेगा।
साभार आर. के. गुप्ता