लोकसभा चुनाव को देखते उत्तराखंड बीजेपी में नेताओं की घर वापसी का दौर जारी है। बागियों के लिए पार्टी ने दरवाजे खोल दिए हैं। पिछले कई दिनों से बागियों की घर वापसी हो रही है।कोटद्वार के पूर्व भाजपा नेता धीरेंद्र चौहान आज भाजपा में शामिल हो गए। धीरेंद्र चौहान का उत्तरांखड के पूर्व सीएम बीसी खंडूड़ी के परिवार से खास नाता है। पूर्व में धीरेंद्र चौहान कोटद्वार के जिलाध्यक्ष रहे हैं। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और बीजेपी के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष नरेश बंसल की मौजूदगी में धीरेंद्र चौहान बीजेपी में शामिल हुए।
देहरादून, लोकसभा चुनाव जैसे जैसे नजदीक आ रहे है वैसे वैसे भाजपा में कई नेताओं के घर वापसी का सिलसिला जारी है। आज भाजपा ने हाल ही में पार्टी प्रत्याशी लैंसडौन विधायक दिलीप रावत की पत्नी के खिलाफ अपनी पत्नी को नगर निगम के चुनावी मैदान में उतारने वाले पूर्व जिला अध्यक्ष धीरेंद्र चौहान की घर वापसी करा ली है। पार्टी ने उनको छह साल के लिए निष्कासित कर दिया था। लेकिन उनकी घर वापसी तीन माह में ही हो गई। हैरानी की बात यह है कि इसको लेकर विधायक दिलीप रावत को पूछा तक नहीं गया। इससे दिलीप खासे नाराज हैं। उन्होंने कहा कि अगर पार्टी ने इस पर विचार नहीं किया तो, वे काम नहीं करेंगे। दिलीप रावत की लैंसडौन क्षेत्र में अच्छी पकड़ मानी जाती थी, हालांकि अब लैंसडौन और कोटद्वार दोनों ही जगह उनकी राजनीति समाप्त होती नजर आ रही है इसका उदाहरण नगर निगम चुनाव में अच्छे से दिख चुका है।
भाजपा घर वापसी के चक्कर में कुछ भी करने को तैयार है। इसी कड़ी में आज कोटद्वार में नगर निगम चुनाव में पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव में अपनी पत्नी को उतारने वाले पूर्व विधायक को वापस पार्टी में शामिल कर लिया। इसको लेकर लैंसडौन विधायक दिलीप रावत ने कहा कि इस पर उनको कड़ी आपत्ति है। उनसे इसके बारे में कोई बात तक नहीं की गई। उन्होंने आरोप लगाया कि जिस व्यक्ति ने पार्टी प्रत्याशी को हराने के लिए पूरा जोर लगा दिया, उसको पार्टी में शामिल करने को लेकर पार्टी क्या संदेश देना चाहती है। धीरेंद्र चौहान को बीसी खंडूड़ी परिवार का करीबी माना जाता है। यह भी चर्चा थी कि धीरेंद्र चौहान कांग्रेस का दामन थामेंगे, लेकिन कांग्रेस के बड़े नेता के अड़ंगा लगाने के बाद उनकी कांग्रेस में ज्वाइनिंग टल गई।
धीरेंद्र चौहान को लेकर यह चर्चा भी आम रही कि उनको निगम चुनाव में कोटद्वार विधायक और वन मंत्री हरक सिंह रावत का भी पूरा समर्थन था। हालांकि इस बात के कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिले, लेकिन यह चर्चा पूरे चुनाव के दौरान आम रही। इस बात को तब बल मिला था, जब हरक सिंह रावत ने पार्टी प्रत्याशी के लिए वोट मांगने के बजाय खुद को कोटद्वार से दूर रामनगर में ज्यादा सक्रिय रखा था। इस को लेकर भी विधायक दिलीप रावत खासे नाराज हैं।
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पूर्व जिलाध्यक्ष की पार्टी में वापसी के वक्त दिलीप रावत रिखणीखाल क्षेत्र में पार्टी प्रत्याशी तीरथ सिंह रावत के लिए वोट कैंपेन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि उनको इस बात की भनक भी नहीं थी कि ऐसा होने वाला है। उन्होंने सवाल खड़ा करते हुए कहा कि जिन लोगों ने उनको चुनाव लड़वाया। वही लोग अब पार्टी में वापसी कराकर श्रेय लेना चाह रहे हैं। यह पूरी तरह गलत है। इसका पार्टी फोरम पर कड़ा विरोध करेंगे। भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ धोखा है और मनोबल तोड़ने वाला फैसला है। वही निकाय चुनाव के हारने का कारण चर्चा में ये भी रहा कि दलीप रावत ने न तो लैंसडौन में कोई खास काम किया न कोटद्वार में वो आम जनता के बीच सक्रिय रहे और उन्होंने अपनी हार का ठीकरा खुद की जगह धीरेंद्र चौहान पर फोड़ दिया था।
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पूर्व जिलाध्यक्ष की पार्टी में वापसी के वक्त दिलीप रावत रिखणीखाल क्षेत्र में पार्टी प्रत्याशी तीरथ सिंह रावत के लिए वोट कैंपेन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि उनको इस बात की भनक भी नहीं थी कि ऐसा होने वाला है। उन्होंने सवाल खड़ा करते हुए कहा कि जिन लोगों ने उनको चुनाव लड़वाया। वही लोग अब पार्टी में वापसी कराकर श्रेय लेना चाह रहे हैं। यह पूरी तरह गलत है। इसका पार्टी फोरम पर कड़ा विरोध करेंगे। भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ धोखा है और मनोबल तोड़ने वाला फैसला है। वही निकाय चुनाव के हारने का कारण चर्चा में ये भी रहा कि दलीप रावत ने न तो लैंसडौन में कोई खास काम किया न कोटद्वार में वो आम जनता के बीच सक्रिय रहे और उन्होंने अपनी हार का ठीकरा खुद की जगह धीरेंद्र चौहान पर फोड़ दिया था।