बहुत पुराना समय का बात है, जिसको अंग्रेजी में Once upon a time भी बोलता है और अक्सर हर पुराने किस्से और कहानी को इसी स्टाईल से बयान किया जाता है ?
अभी हम जैसे मिलियन, बिलियन और ट्रिलियन डॉलर की या अरब –खरब की बात करते हैं , वैसे ही इस किस्से की काल –गणना का सही समय पता न होने के कारण ये शायद हजारों –लाखों साल पुराना किस्सा रहा होगा ?
हालांकि हमारी काल –गणना में तो शंख, महाशंख, नील और पदम्  और न जाने कहाँ-कहाँ तक है और आप इन संख्याओं या गिनती से , किसी घटना का वर्ष नहीं तो कम से कम, गेहूं ,जौ, तिल, चावल आदि के दाने तो नाप ही सकते हैं ? और दोस्तों ये किस्सा कोई जुमला नहीं है और ना ही मै फेंक रहा हूँ—— माँ कसम ?
ये “ देवासुर संग्राम ” अर्थात देवता + असुरों के झगड़ों का  किस्सा है ? ये लोग उस समय धरती ,स्वर्ग और पाताल पर बारी –बारी से शासन किया करते थे ? जैसे कि अभी आप कहते हो कि, कांग्रेस ने 60 साल और बीजेपी ने 10 साल राज किया है ?
पर उस ज़माने में लोकतंत्र नहीं था कि, सत्ता या शासन या सरकार का निर्णय चुनाव या वोट से होता ? उस समय सत्ता का निर्णय संग्राम या फाईट से होता था ? जब बहुत बड़ा फाईट को महासंग्राम बोलते थे जैसे कि आप वर्ल्ड –वार समझ लो ? यदि दो देश के बीच हुआ तो सिंपल –वार ,जैसे –इंडो –पाक और  यदि महागठबंधन के आधार पर, ब्रिटेन +फ़्रांस + अमेरिका तो फिर   वर्ल्ड –वार ?
मेरे को अभी ये ठीक से याद नहीं आ रहा है कि, देवासुर –संग्राम, समुंदर मंथन के पहले हुआ था या बाद में ? पर जैसे हम धरती में खनन करते हैं , वैसे ही वो लोग समुंदर – मंथन करते थे ? लेकिन देवता हों या असुर, उन में भूमाफिया या खनन/ मंथन माफिया नहीं होते थे, ये उन लोगों का बहुत बड़ा प्लस –प्वाइंट था ?
अभी हम लोग क्या करता है कि, समुंदर के अंदर क्या है, इसका पता लगाने के लिए गोताखोर या पंडुबी भेजता है और मुंगा/ कोरल का चट्टान का और मच्छी का फोटो खींचता है ?
पर देवता और असुर लोग बहुत सयाना था ? उनको सोनार और रडार के बिना भी ये मालुम था कि, समुंदर का अंदर बहुत माल है, बोले तो चौदह रतन ? क्या पता उनका भी कोई इन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट रहा होगा ?
उनका सी.बी.आईने उनको बताया कि , समुंदर का भीतर ऐरावत हाथी ,घोडा, कौस्तुभ-मणि, हलाहल नाम का एक जहरीला लिक्विड केमिकल और एक अमृत नाम का एक बड़ा पावरफुल ड्रिंक है ?
एक बार ले लो और फिर जीवनभर का छुट्टी ? एलोविरा –जूस, लौकी –जूस, नीम का काढ़ा या किसी अन्य दवा का कोई जरुरत नहीं ? वैसे तो डाबर और वैद्यनाथ भी कई आसव और भसम बनाते हैं पर वो 100 साल भी पियो फिर भी आप अमर नहीं हो सकते हो ? जबकि अमृत ऐसा पवित्र द्रव था कि, एक –दो बूँद ही पियो और काम हो जाए ?
फिर मेरी समझ में ये नहीं आया कि, देवताओं को अश्विन –कुमारों या धनवंतरीजी का जरुरत क्यों पड़ा ? जैसे कि, बाबा रामदेव एक तरफ ये कहता है कि, योग भगाए रोग और दूसरी तरफ दुनिया भर की दवाई भी बनाता है ?
ये शायद उन लोगों के लिए होगा, जो योग करने में हिचकिचाता हो ? अब तुम योग के साथ ॐ या ओम नहीं बोलोगे तो उसका पूरा फायदा किधर से मिलेगा, खासकर दूसरा धरम के लोग को ? जो योग को एक्सर-साईज और आसनों को व्यायाम मानता है ?
तो क्या अमृत के साथ-साथ बीच –बीच में कोई अन्य सप्लीमेंट भी लेना जरुरी था जैसे कि हम प्रोटीन के साथ विटामिन और खनिज उर्फ़ मिनरल भी लेते हैं ?
आप सोचोगे कि, आज मै ये सब गड़े मुर्दे क्यों उखाड़ रहा हूँ ? क्योंकि सोशियल मीडिया पर आजकल अस्थि –कलश का बड़ा चर्चा हो रहा है ? एक बोल रहा है, ये हमारा है, हमारा जो मर्जी ,हम वो करें उनका, तुमको क्यों खुजली हो रहा है ?
परसों मेरे साथ इस विषय पर एक मजेदार घटना हुआ, एक लेडी, सड़क पर, मेरे पीछे आ रही थी, मुझे उसका नाम सचमुच में मालुम नहीं था और न मुझे ये पता था कि, वो अटलजी और मोदीजी का फैन है, माँ कसम ?
तो रात दिन, कलश की चर्चा होती देखकर ,मुझे अचानक एक पुराना गाना याद आया, जो हम जैसे “ साठा ” लोगों के बचपन और लड़कपन में बजता था , तो मै धीरे –धीरे ,उसे गुनगुनाते हुए चल रहा था ? “ ज्योति कलश छलके ——-” . एक ही लाईन याद थी तो मै बार –बार, उसे ही रिपीट किये जा रहा था, जैसे किसी ग्रामोफोन की सुई अटक गई हो ?
उसे लगा कि, मैं अस्थि –कलश का मजाक उड़ा रहा हूँ ? और बाद में पता चला कि, उसका नाम ज्योति है ? तो उसने पुकार, “ ओ अंकल, आपको क्या प्रोब्लम है अस्थियों से ”? और कलश –यात्रा से ? मैंने कहा कोई तकलीफ नहीं और मैंने कहा कि, मै तो अटलजी का फैन हूँ और उसे अपना मोबाईल और कुछ पोस्ट भी दिखाई ,तब जाकर कहीं वो मानी ?
उधर ही सड़क पर मेरी साइड में एक अस्थि –विशेषज्ञ का क्लीनिक भी था तो मै उस शब्द पर बार -बार  मनन करने लगा क्योंकि बात अगर संभल नहीं पाती तो मेरी भी एक दो अस्थि आज जरूर टूट जाती ?
तो गुरु, देवासुर संग्राम में जब देवता लोग असुर –मुक्त भारत के चक्कर में लड़ते –लड़ते हैरान और परेशान हो गया तो उन्हें एक बाबा ने सलाह दी कि , देखो ये तुम्हारा ऐटम –बम और सुतली –बम किसी काम नहीं आएगा ?
तुम को अगर  जितना है तो ऐसा करो कि दधीचि ऋषि के पास ऋषिकेश जाओ, उनका हड्डी मांगकर लाओ और उससे वज्र बनाओ और फिर सर्जिकल स्ट्राइक करो और फिर देखो, असुर  क्या उनका बाप भी मरेगा ?
अब प्रोब्लम ये था कि, दधीचि ऋषि के पास, भेजा किसे जाय ? देवराज इंद्र ने कई देवताओं को पूछा पर कोई तैयार नहीं ? कोई बोला ,मुझे बच्चे का एडमीशन कराना है तो कोई बोला मेरा घर में गेस्ट आनेवाला है ? आखिर में ब्रह्माजी बोले, भुला इंद्र तुम्ही चले जाओ भुला, शाबाश . इंद्र बोले, सर क्या बात करते हो, मैं देवताओं का राजा ?
ब्रह्माजी जानते थे कि, उनकी बात से इंद्र के ईगो को ठेस पहुंची है तो उन्होंने थोड़ा चतुराई से काम लेते हुए कहा, मुझे नहीं लगता कि, स्वर्ग में तुम से जादा इफीसियंट/ कार्य –कुशल कोई अन्य देवता है ? तुम भविष्य में  राजा सगर के पुरखों का कैसा बैंड बजाओगेा  ऋषि के आश्रम में चुपके से अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा बाँधकर ? सो “ यू मस्ट गो, ओन्ली यु कैन डू ईट ?”
अपनी तारीफ सुनकर इंद्र भी इमोशनल हो गया और महर्षि दधीचि के आश्रम की ओर चल दिये . दिन का समय था और ऋषि भी खा –पीकर आराम कर रहे थे . इंद्र ने झोपड़ी के घासफूस-बांस के दरवाजे पर थाप मारकर आवाज दी, “ ओ जी मुनिजी, हेलो, है कोई अंदर ?
कौन है भाई, आ जाओ, दरवाजा खुला है और ऋषि अपनी धोती व्यवस्थित करने लगे ? इंद्र ने अंदर झांककर देखा और संस्कृत में गुड –आफ्टरनून या नमस्ते जैसा कुछ कहा . मुनीजी ने पूछा ,कहो, कैसे आना हुआ और सब राजीख़ुशी ?
इंद्र ने कहा, सर आपका कोपरेशन चाहिए था और थोड़ी मदद भी ? ऋषि बोले क्या चाहिए ? उनको लगा कोई आशिर्वाद वगेरा मांग रहा होगा या मंत्र ज्ञान आदि क्योंकि देवराज किसी कलयुगी पड़ोसी की तरह, आटा, दाल, चावल, टमाटर इत्यादि तो मांगेगा नहीं ?
इंद्र भी बड़ा हिचकिचा रहा था, शब्द जैसे गले में अटक रहे थे ? ऋषि ताड़ गए कि, कुछ तो गड़बड़ है ? फिर भी बोले, कहो ,कहो संकोच मत करो ? इंद्र बोले, सर आपकी अस्थियाँ चाहिए थी ? पहले तो ऋषि को कुछ समझ नहीं आया और इंद्र ने जब रिपीट किया तो ऋषि सर पकड़कर कर जमीन पर बैठ गए और उनके मुँह से बस इतना ही निकला , हे भगवान ?
फिर भी वो बोले, हमारी हड्डी का क्या करोगे तुम ? राक्षस लोग तो हड्डी –मटन का शौक़ीन थे ही पर तुम लोग को क्या हुआ, चलो सोमरस तक तो फिर भी ठीक था ?
सर ऐसा नहीं है, जैसा आप समझ रहे हैं ? हम आपका अस्थि को प्योरीफाई करके उससे वज्र बनाएंगे और राक्षस लोग का नाश करेंगे . ऋषि को विश्वास ही नहीं हुआ कि, उनका हड्डी बिना कैल्शियम खाए भी इतना मजबूत है ?
वो तो कर्ण से भी बड़े दानी थे, वे बोले ईधर ही मारके हड्डी ले जाओगे या उधर ले जाकर मारोगे और हड्डी कैसे निकालोगे ,खाल खींचकर ? और बेटा तुम्हें तो स्वर्ग मिल जाएगा और मुझे क्या मिलेगा , बाबाजी का —-?
खैर दधीची ने अपना हड्डी दे दिया और देवताओं ने भी उस का वज्र बनाकर असुरों की हिरोशिमा और नागासाकी पर गिरा दिया और भौत सारा राक्षस लोग मर भी गया फिर भी भारत असुर मुक्त न हो सका वर्ना  बाद में रावण के पास इतना बड़ा राक्षस का सेना किधर से आता ?
इतिहास में आजतक सिर्फ एक ही राक्षस अच्छा हुआ और उसका नाम था बलि, सुनते हैं वो किधर केरल का तरफ रहता था और उसका स्टेट कैपिटल शायद महाबलिपुरम था ? ये गुड टेरोरिस्ट और बैड टेरोरिज्म का बात जो भी किया होगा उसके दिमाग में  राजा बलि  का आइडिया जरूर रहा होगा ?
अभी रक्षा बंधन का त्यौहार आ रहा है तो ब्राह्मण राखी बांधते हुए बोलेगा , “ येन बांध्यो बलि राजा ” पर बलि के सर पर तो भगवान विष्णु ने पैर रखकर पाताल भेजा था फिर उसको राखी कौन बांधा होगा, आई डोंट नो ? सुनते हैं वो दीपावली में भी धरती का राउंड पर आता है ?
तो देवता लोग ऐसा ही करता था, अपना फायदे के लिए चुनाव से पहले कुछ भी ऐसा ट्रिक करता था कि, वो ऐन टाईम पर जीत जाता था , वो सहानुभूति का लहर पैदा करता था, भले ही वो धांधली नहीं करता था ?
राक्षस लोग भी ये नहीं बोलता था कि, ई.वी.एम. ख़राब है ? बस वो येनकेन प्रकरेंण जीत नहीं सकता था ? वो दधीचि की अस्थि पर बबाल भी नहीं मचा सका वो चुनाव में अस्थि-कलश यात्रा से लाभ नहीं उठा सका ?
ईधर इनके पास पिछली बार राम थे, 15 लाख थे तो इस बार हिंदुत्व, नोटबंदी और कलश है ? ज्योति कलश जब झलकेगा तो वोटों से झोली भर देगा और महासंग्राम में अटलजी की पुण्याई का लाभ जरूर देगा, ऐसा विरोधियों को भय  है  ?
वैसे इनका भी जबाबी सफाई ये  है कि, वो लोग भी अपने दो नेता का तीन दिन बाद अंतिम –संस्कार करके  अतीत में खूब सहानुभूति और वोट बटोर चुके हैं तो फिर हम “ why not ” ?
बंदे में है दम तो फिर वन्देमातरम ?

 

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