डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला ( दून विश्वविद्यालय )

भारत देश में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अधीन इस समस्या से जुड़े सभी कार्य यहीं से संचालित होते है। 1992 से ही पूरी दुनिया में इस दिन एक थीम लेकर काम किया जाता हैं।इस वर्ष दिव्यांग व्यक्तियों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस 2022 का विषय है विश्व दिव्यांग दिवस विशेषये भी किसी से कम नहीं, आत्मनिर्भर बनने के लिए थोड़े से सहयोग की अपेक्षा दुनिया भर में विकलांग या दिव्यांग जनों के अक्षमता से जुड़े मुद्दों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने तथा उनके उचित आर्थिक व सामाजिक विकास के लिए प्रयास करने के उद्देश्य से हर साल 3 दिसंबर को दुनिया भर में विश्व विकलांग दिवस या विश्व दिव्यांग दिवस मनाया जाता है. विश्व दिव्यांग ये भी किसी से कम नहीं, आत्मनिर्भर बनने के लिए थोड़े से सहयोग की अपेक्षादुनिया भर में विकलांग या दिव्यांग जनों के अक्षमता से जुड़े मुद्दों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने तथा उनके उचित आर्थिक व सामाजिक विकास के लिए प्रयास करने के उद्देश्य से हर साल 3 दिसंबर को दुनिया भर में विश्व विकलांग दिवस या विश्व दिव्यांग दिवस मनाया जाता है.दिव्यांगता किसी सफलता में बाधा नहीं है। जरूरत है तो बस सही दिशा और संसाधन की राष्ट्रीय दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान देहरादून के प्रोजेक्ट के तहत भारत सरकार से दृष्टि दिव्यांग आवासीय विद्यालय को सहयोग मिलता था।

राष्ट्रीय दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान

कोविड के दौरान बजट में कमी का हवाला देते हुए संस्थान ने बजट देने से मना कर दिया।कोविड के बाद राष्ट्रीय दिव्यांगजन सशक्तिकरण भारत सरकार के पोर्टल पर आवेदन करने के लिए कहा गया। परंतु इस पोर्टल में छात्रों की संख्या से लेकर अन्य मानक पहाड़ों के अनुरूप नहीं हैं। जबकि राष्ट्रीय दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान देहरादून चाहे तो उन्हें पहले की तरह अनुदान मिल सकता है। उत्तरकाशी से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नौगांव ब्लाक के तुनाल्का में वर्ष 2007 से विजया जोशी दृष्टि दिव्यांग आवासीय विद्यालय संचालित करती आ रही है। जिससे सरकार से सहयोग मिलता था। 2020 में सरकार से सहयोग मिलना बंद हुआ। विजया जोशी किसी तरह से उधार लेकर दृष्टि दिव्यांग बच्चों की पढ़ाई और रहने खाने की व्यवस्था कर रही है। यह विद्यालय आठवीं तक है और उत्तराखं बोर्ड से मान्यता प्राप्त है। स्कूल में छह शिक्षक हैं। वर्तमान में इस विद्यालय में 50 दृष्टि दिव्यांग बच्चे अध्ययनरत हैं। जिनमें 26 छात्र और 24 छात्राएं शामिल हैं। गढ़वाल विश्वविद्यालय की छात्रा नेत्र दिव्यांग वंशिका मलिक ने संगीत विषय में स्वर्ण पदक प्राप्त किया।

इसके विपरीत उत्तरकाशी जिले के नौगांव ब्लाक के तुनाल्का में स्थित विजया पब्लिक दृष्टि दिव्यांग आवासीय विद्यालय आर्थिक संकट से गुजर रहा है। विद्यालय के 50 नेत्र दिव्यांग छात्र स्कूल को अनुदान की मांग को लेकर बड़कोट तहसील परिसर में आठ दिन से धरने पर बैठे हैं। अभी तक सरकारी सिस्टम की दृष्टि इन पर नहीं गई है। वर्ष 2007 से 2020 तक इस विद्यालय को राष्ट्रीय दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान देहरादून के प्रोजेक्ट पर भारत सरकार का सहयोग मिला है। नई गाइड लाइन के तहत कागजी मानकों को पूरा करने में कुछ तकनीकी दिक्कत है। विद्यालय प्रबंधन और भारत सरकार के बीच वार्ता चल रही है। जिसका समाधान निकलने की उम्मीद है। दिव्यांग बच्चे को अपने परिवार से बहुत ज्यादा लगाव और प्यार होता है, संयुक्त राष्ट्र संघ की एक मान्यता प्राप्त मानव अधिकार संधि है,जिसके अंतर्गत दिव्यांग व्यक्तियों के आत्म-सम्मान और अधिकार की रक्षा करने के उद्देश्य समाहित हैं। इस कन्वेंशन के तहत दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों को बढ़ावा देने, रक्षा, और मानव अधिकारों द्वारा सुनिश्चित करने और उन्हें जीवन का पूरा आनंद लेने में मदद करता है और कानून के तहत पूर्ण समानता का आनंद लेने के लिए सक्षम बनाता है।

इस कन्वेंशन के बाद से मानव अधिकारों के साथ समाज के पूर्ण और संपूर्ण सदस्यों के रूप में उन्हें (दिव्यांग) देख-रेख की दिशा में दान, चिकित्सा उपचार और सामाजिक सुरक्षा की वस्तुओं के रूप में दिव्यांग व्यक्तियों को देखने के सन्दर्भ में वैश्विक आंदोलन में तेजी आई है। यह कन्वेंशन इस दुनिया में मानव अधिकार से जुडी पहली संधि थी, और इसके अंतर्गत दिव्यांग व्यक्तियों के सतत और सौहार्दपूर्ण विकास पर पूरा ध्यान दिया गया है। क्योंकि बाकी दुनिया में वे लगभग उपेक्षित रहते हैं। ऐेसे में सबसे बड़ी जिम्मेदारी परिवार की है। उन्हें अपेक्षाओं को परे रखना चाहिए। दिव्यांगों को एक बोझ नहीं, बल्कि जिम्मेदारी की तरह समझना चाहिए।दिव्यांग बच्चों का हमें बिना किसी भेदभाव से ख्याल रखने की आज महती आवश्यकता है।कई बार जिम्मेदारी से बचने को लोग अपनों को सिर्फ इसलिए छोड़ देते हैं, क्योंकि वे दिव्यांग हैं या उनके साथ जानवरों जैसा व्यवहार करते हैं। जबकि उन्हें कहीं ज्यादा देखभाल की जरूरत है। परिवार ही उन्हें छोड़ देगा, तो रिश्तों का मतलब क्या है? रिश्ते तो निस्वार्थ होते हैं विद्यालय स्तर पर इन विशेष बच्चों के साथ रहकर अनुभव किया यदि हम इन्हें स्नेह देंगें तो ये हमें कहीं अधिक प्यार देतें हैं। अतः वर्तमान परिप्रेक्ष्य के लिहाज से मेरा यही मानना है कि दिव्यांग व्यक्तियों के प्रति नफरत नहीं स्नेह का भाव रखें। दिव्यांग को भरपूर प्यार दें और उन्हें आत्म निर्भर व स्वावलंबी बनाने का प्रयास करें, ताकि वह अपने को बोझ नहीं समझेदिव्यांगता शारीरिक और मानसिक होने से ज़्यादा हमारी सोच में है, जो हम इन्हें हीन और अपने से कमतर आँकतें है। ज़रूरत है तो ऐसी सोच बदलने की।