विभागीय मिलीभगत: धड़ल्ले से काटे जा रहें हैं हरे वृक्ष
हरिद्वार, पर्यावरण से पृथ्वी व पृथ्वीवासियों का गहरा नाता है। इस रिश्ते की डोर को सबसे मजबूती से जिसने बांधे रखा है वे हैं हरे -भरे पेड़ पौधें। लेकिन दरख्तों की बेहिसाब कटाई और कंक्रीट के जंगलों के बीच आज अगर हम छांव को तरसते हैं तो हैरानी नहीं होनी चाहिए क्योंकि इन हालातों के लिए जिम्मेदार भी कोई और नहीं आप और हम ही हैं। बीते दिनों प्रदेश में पेड़ लगाने का अभियान छेड़ने वाली सरकार भी हरियाली को लेकर चिंतित दिखाई पड़ रही थी। लेकिन बावजूद इसके हरे फलदार पेड़ काटने और कटवाने वालों पर सख्त कार्रवाई धरातल पर होती कहीं नजर नहीं आ रही हैं। इसी के चलते विभागीय मिलीभगत से हरे-भरे वृक्षों का कटान का सिलसिला जारी हैं।
दक्ष नगरी के साथ-साथ कनखल आम, अमरूद, लीची सहित फलों व सब्जियों के बागों की नगरी के नाम से भी जाना जाता था। लेकिन समय की करवट ने बागों को कंक्रीट के जंगलों में बदल दिया। दूर-दूर तक फैली हरियाली को भूमाफियाओं ने कंक्रीट मेे तब्दील कर दिया। अभी जो शेष बचे बाग हैं। उन पर कनखल  बागों के लिए  ताजा मामला जगजीतपुर कनखल क्षेत्र से जुड़ा हुआ हैं जहां आम के बाग में विभागीय मिलीभगत के चलते आधा दर्जन से अधिक हरे-भरे पेड़ो पर आरियां चला कर जमींदोज कर दिया गया। शेष बचे बागों पर पर भी भूमाफिया की गिद्ध दृष्टि गड़ी हुई हैं। सूत्र बताते हैं कि बाग स्वामी ने संबंधित विभाग से पेड़ पातन की अनुमति ली हुई हैं। वहीं पेड़ पातन के लिए जिम्मेदार विभाग पेड़ों को रोगग्रस्त व पुराने बताकर सालों से बाग में खड़े हरे-भरे पेड़ों के कटान की अनुमति दे रहा हैं। जबकि सरकार पेड़ बचाने के दावे कर रही हैं। निजी संस्थाओं की हरे -भरे बागों को बचाने की मुहिम भी सालों पहले ही मंद पड़ गई। बाकी रही सही कसर सेटिंग के तहत सेटिंग से पूरी कर दी गई। महकमे की पड़ताल करें तो साफ होता है कि उसके पास सरकारी आदेश को जमीन पर उतारने के लिए कोई नीति और नीयत नहीं है। यही वजह है कि जब वन महकमे के हुक्मरानों से पेड़-पौधे लगाने के बाबत बातचीत की जाती है तब उनके दावे इतने बढ़-चढ़कर होते हैं कि उस पर सहसा विश्वास कर पाना आसान नहीं होता। मसलनए वन महकमे का दावा है कि सूबे के सभी जिलों में वृक्षारोपण का लक्ष्य न केवल हासिल किया गया है बल्कि अधिकांश जिलों में तो लक्ष्य से आगे जाकर वृक्षारोपण किया गया। लेकिन इसी महकमे के पास इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि बीते पांच-दस सालों में सूबे में कितने पेड़ काटे गए हैं? उत्तराखंड में साल दर साल वृक्षारोपण की योजनाएं बनती रहती हैं। तमाम स्वैच्छिक संगठनों समेत वन महकमा योजनाएं बनाते रहते हैं। तथापि कहीं वृक्षारोपण का प्रभाव दिखने को नहीं मिलता।