देहरादून,सीएसआईआर भारतीय पेट्रोलियम संस्थान देहरादून में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस समारोह के उपलक्ष्य में एक लाइव कार्यक्रम ‘सीधी बात’ का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में पद्म विभूषण डॉ. अनिल काकोडकर, अध्यक्ष, राजीव गांधी विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी आयोग, पूर्व अध्यक्ष, परमाणु ऊर्जा आयोग ने जलवायु संकट -प्रबंधन पर अपने विचार व्यक्त किए। यह कार्यक्रम फेसबुक पर भी लाइव दिखाया गया।
इस कार्यक्रम के प्रारंभ में संस्थान के निदेशक डॉ. अंजन रे ने राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस की पृष्ठभूमि एवं महत्व पर प्रकाश डाला तथा पद्म विभूषण डॉ. अनिल काकोडकर का अभिनन्दन करते हुए इस लाइव कार्यक्रम से जुड़े अन्य गणमान्य अतिथियों-संस्थान की अनुसंधान परिषद के अध्यक्ष डॉ. आर के मल्होत्रा तथा सदस्य डॉ. प्रदीप सिंह, निदेशक, सीएसआईआर -केंद्रीय खनन एवं ईंधन अनुसंधान संस्थान, धनबाद, तथा डॉ. एस कन्नन, निदेशक, सीएसआईआर-केंद्रीय नमक व समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान, भावनगर और डॉ. वी के तिवारी, निदेशक, सीएसआईआर दृएन जी आर आई, हैदराबाद तथा डॉ. एम ओ गर्ग, पूर्व निदेशक, आईआईपी का भी इस कार्यक्रम में स्वागत किया। मैं, जलवायु संकट-प्रबंधन की बात करता हूँ. सभी देश इस जलवायु संकट को लेकर अत्यधिक गंभीर हैं. इसीलिए आज राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस पर मैंने जलवायु संकट-प्रबंधन विषय चुना है क्योंकि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के उपरांत अब हमारी प्राथमिकता ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना है. और इसके लिए हमें किफायती हरित ऊर्जा की ओर अग्रसर होना है, जिससे कि हम तापमान तथा कार्बन उत्सर्जन में कमी संबंधी वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें तथा कम लागत में अधिक ऊर्जा का उत्पादन भी सुनिश्चित कर सकें।
उन्होने बताया कि भारत में ऊर्जा का मुख्य स्रोत कोयला, तेल तथा जल ऊर्जा है। उन्होने ने बताया कि विकसित देशों की तरह यदि हम भारत के मानव विकास सूचकांक को 0.95 पर ले जाना चाहते हैं तो हमें भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को और सशक्त बनाना होगा। चूंकि भारत में कोयला ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण और अपरिहार्य स्रोत है, इसलिए हमें कार्बन संग्रहण प्रौद्योगिकियों की आवश्यकता है। जर्मनी और जापान में अपनाई गई विधियों को भारत में सीधे कार्यान्वित नहीं किया जा सकता है। भारत में ऊर्जा की मांग जर्मनी की तुलना में 08 गुना अधिक है और हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इतनी ऊर्जा सुरक्षा के बावजूद जापान में फुकुशिमा दुर्घटना हुई। प्रत्येक राष्ट्र को अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं और परिस्थितियों कोध्यान में रखकर अपनी ऊर्जा नीति बनानी चाहिए। इसलिए आज यह आवश्यक है कि हम भारतीय ऊर्जा की मांग के लिए भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं तथा द पारिस्थितिकीय परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखकर भारतीय अर्थात स्वदेशी प्रौद्योगिकीय समाधान ढूँढे। उन्होने वैज्ञानिकों को देशीय आवश्यकताओं के लिए श्स्वदेशी संकल्पना- स्वदेशी प्रौद्योगिकी तथा स्वदेशी समाधानश् का मंत्र दिया। उन्होने कहा हमें इस श्भारतीय और भारतीयों के लिएश् मंत्र के साथ कार्य करना चाहिए तथा प्रत्येक भारतीय के जीवन स्तर के विकास की इस यात्रा में हमारे युवाओं, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं को शामिल करना चाहिए।
प्रश्नोत्तर सत्र में एक प्रश्न के उत्तर में डॉ. काकोडकर ने बताया कि भारत के पास कोल गैसीफिकेशन तथा कृषि अवशिष्टध्बायोमास से 2ळ एथानॉल उत्पादन के सक्षम विकल्प हैं। उन्होने कहा यदि आर्थिक रूप से उपयुक्त हो तो बायोमास से पेट्रोरसायन के निर्माण का विकल्प भी है। डॉ. अंजन रे ने कोल गैसीफिकेशन के लिए सौर ऊर्जा के प्रयोग का प्रस्ताव रखा, इससे, इस प्रक्रम से होने वाले कार्बन उत्सर्जन में कमी होगी। डॉ. अंजन रे ने डॉ. काकोडकर का आभार व्यक्त किया। उन्हांेने इस कार्यक्रम में सम्मिलित अन्य सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया तथा साथ ही दिनांक 05 जून, 2020 विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर आयोजित किए जाने वाले चतुर्थ सेफ्को 2020 आभासी कार्यक्रम के लिए सभी को आमंत्रित भी किया। अमर कुमार जैन, मुख्य वैज्ञानिक तथा संस्थान के सभी प्रभाग प्रमुखों, वैज्ञानिकों, अधिकारियों कर्मचारियों ने वेबएक्स फेसबुक के माध्यम से इस कार्यक्रम में भाग लिया। डॉ. डीसी पांडेय प्रमुख, पीईडी, सूर्यदेव कुमार, डॉ. प्रणव दास, डॉ. विपुल सरकार, शोमेश्वर पांडे, नेहा ने इस कार्यक्रम के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
https://jansamvadonline.com/in-context/loss-of-billions-due-to-corona-seminar-season-completely-destroyed/