7 फरवरी को जोशीमठ क्षेत्र में आई आपदा के संदर्भ मेंभाकपा(माले) लगातार जिन सवालों को उठा रहा है,उन कमियों लेकर उनके द्वारा चमोली जिले के मुख्यालय गोपेश्वर में प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया गया। जिसमें उनके द्वारा प्रभावित क्षेत्रों में घूमने के बाद वहाँ दिखी कमियों को सिलसिले वार तरीक़े से प्रस्तुत किया।
1. जोशीमठ में 7 फरवरी को हुई जल प्रलय के बाद चला खोज अभियान पूरी तरह से विफल अभियान रहा है. खोज अभियान में लगी विभिन्न एजेंसियों में तालमेल का पूरी तरह अभाव नजर आया,जिसके कारण तपोवन में टनल के अंदर फंसे लोगों को जिंदा निकालने की संभावना निरंतर क्षीण होती गयी. बैराज साइट पर मलबा हटाने का जो काम पहले दिन से किया जाना था,वह चौदहवें दिन जा कर किया गया,जिसके चलते लापता लोगों के परिजनों को हताश हो कर वापस लौटना पड़ा. उत्तराखंड सरकार और प्रशासन का पूरा ध्यान बचाव अभियान को कुशलता पूर्वक संचालित करने के बजाय हैडलाइन मैनेजमेंट पर रहा.
2.एनटीपीसी द्वारा बनाई जा रही जलविद्युत परियोजाना में किसी तरह के कोई सुरक्षा इंतजाम नहीं थे. साइरन या पूर्व चेतावनी के लिए कोई अन्य व्यवस्था अस्तित्व में नहीं थी. सुरंग के भीतर भी कोई सुरक्षा इंतजाम नहीं थे. इसके लिए एनटीपीसी के विरुद्ध गैरइरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए. इससे संबन्धित पत्र भाकपा(माले) द्वारा थाना जोशीमठ को रजिस्टर्ड डाक द्वारा भेजा गया है.
3.उत्तराखंड सरकार एवं केंद्र सरकार की ओर से आपदा में प्राण गँवाने वालों को दी जा रही राहत राशि अपर्याप्त है. 2013 की आपदा में 7 लाख रुपया मुआवजा दिया गया और 2021 में 6 लाख रुपया मुआवजा दिया जा रहा है. यह आपदा में अपनों को खोने वालों के साथ भद्दा मज़ाक है. इसके अलावा तपोवन विष्णुगाड़ और ऋषिगंगा में हताहतों के आश्रितों को अलग-अलग किस्म का मुआवजा मिलेगा. एक ही आपदा के शिकार लोगों को दो तरह का मुआवजा कतई अस्वीकार्य है. समान रूप से अपनों को खोने वालों के आश्रितों को 50 लाख रुपये मुआवजा एवं एक आश्रित को स्थायी व नियमित रोजगार दिया जाये.
4.इस आपदा में जिस तरह के हालात पैदा हुए,उससे स्पष्ट है कि सरकार,प्रशासन और परियोजना निर्माताओं ने 2013 की भीषण आपदा से कोई सबक नहीं सीखा है. इसीलिए आपदा से निपटने की कोई पूर्व तैयारी नहीं थी और आपदा के बाद भी सभी किंकर्तव्यविमूढ़ अवस्था में थे. भविष्य में ऐसी आपदाओं से निपटने के व्यापक इंतजाम किए जाएँ.
5.जोशीमठ में घटित त्रासदी ने आपदाओं के दौरान जलविद्युत परियोजनाओं की भूमिका को पुनः सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है. यह सिद्ध हुआ कि इन परियोजनाओं में किए जा रहे भारी निर्माण को कितना ही सुरक्षित क्यूं न बताया जाये पर आपदा के समय ये आपदा की विभीषिका को तीव्र करने का काम करते हैं. इसलिए विनाशकारी विकास के इस मॉडल की समीक्षा के लिए उच्च स्तरीय कमेटी बने और ऊर्जा निर्माण के वैकल्पिक और सुरक्षित उपाय तलाशे जाएँ.
प्रेसवार्ता में भाकपा(माले) राज्य कमेटी के सदस्य अतुल सती व गढ़वाल सचिव इन्द्रेश मैखुरी ने सयुंक्त रूप से शामिल थे।
अभिव्यक्ति की आजादी के बाद सूचना की रोशनी गुल करने की सरकारी साजिश