भारत की कम्युनिस्ट पार्ट जनविरोधी बजट, नागरिकता और नागरिक अधिकारों पर हो रहे हमलों के खिलाफ और देश व संविधान को बचाने के लिए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा चलाये जा रहे देशव्यापी अभियान के सिलसिले में माकपा की पोलिट ब्यूरो सदस्य और पूर्व सांसद बृंदा करात 17-18-19 फरवरी को रायपुर और कोरबा में रहेगी तथा जनसभाओं को संबोधित करेगी। यह जानकारी माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने दी। उन्होंने बताया कि 17 फरवरी की शाम 7 बजे वे रायपुर पहुंचेगी और रात्रि 9 बजे जयस्तंभ चौक में सीएए-एनपीआर-एनआरसी के खिलाफ संविधान बचाओ, देश बचाओ के नारे पर चल रहे शाहीन बाग आंदोलन में एक आमसभा को संबोधित करेंगी। 18 फरवरी को वे कोरबा में रहेंगी तथा शाम पांच बजे बांकीमोंगरा में पार्टी द्वारा आयोजित *संघर्ष सभा* को संबोधित करेगी। इस संघर्ष सभा में जिले के विभिन्न तबकों और समुदायों के लोग शामिल रहेंगे। इस आमसभा में पार्टी गरीबों से जबरन संपत्ति कर वसूलने के निगम के अभियान के खिलाफ किसी बड़े आंदोलन की घोषणा कर सकती है। इससे कोरबा नगर निगम में माकपा की दो महिला पार्षदों की जीत के बाद हो रही इस सभा का महत्व बढ़ गया है। इसके पूर्व वे *प्रेस से मिलिए* कार्यक्रम में दोपहर 1 बजे मीडिया से भी मुखातिब होंगी। वे 19 फरवरी की दोपहर को रायपुर से चेन्नई के लिए रवाना होंगी। उल्लेखनीय है कि 17 अक्टूबर 1947 को कोलकाता में जन्मी बृंदा भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन की एक प्रमुख महिला नेत्री और प्रखर वक्ता है। उन्हें भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सदस्य के तौर पर 11 अप्रैल 2005 को पश्चिम बंगाल से राज्यसभा के लिये चुना गया था। इसी वर्ष वह माकपा पोलित ब्यूरो में पहली महिला सदस्य के तौर पर चुनी गईं। वह भारत की जनवादी महिला समिति (एडवा) की 1993 से 2004 तक महासचिव भी रह चुकी हैं और अब उपाध्यक्ष पद पर हैं। उन्होंने 1984 के सिख दंगों पर बनी फिल्म *अमु* में मां की भूमिका भी निभाई है। उनकी लिखी *सर्वाइवल एंड इमांसीपेशन: नोट्स फ्राम इंडियन वूमन्स स्ट्रगल्स* नामक पुस्तक भारतीय महिलाओं से जुडे विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक मसलों की वामपंथी नजरिये से पडताल करने का प्रयास करती है।
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माकपा नेता पराते ने बताया कि एक ओर तो मोदी सरकार नागरिकता कानून में संशोधन करके संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों पर हमला कर रही है, वहीं दूसरी ओर इसके खिलाफ शांतिपूर्ण आंदोलन करने के नागरिक अधिकारों को बर्बरतापूर्वक कुचल रही है। तीसरा हमला देश की सार्वजनिक संपत्तियों को कार्पोरेटों के हवाले करके देश की आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था पर किया जा रहा है। इन नीतियों के चलते देश में सामाजिक-राजनैतिक तनाव बढ़ रहे हैं और आम जनता का जीवन स्तर गिर रहा है। आर्थिक असमानता इतनी बढ़ गई है कि देश में एक करोड़ अमीरों के पास उतना धन एकत्रित हो गया है, जितना देश के 85 करोड़ गरीबों के पास है। देश आर्थिक मंदी की चपेट में फंस गया है और बेरोजगारी, भूखमरी और गरीबी बड़ी तेजी से बढ़ रही है। किसानों की बढ़ती आत्महत्याओं के बाद अब व्यवसायी वर्ग भी आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहा है। यही मोदी का *न्यू इंडिया* है, जहां बहुसंख्यक आबादी रोजी-रोटी और जिंदा रहने की लड़ाई लड़ रही है। उन्होंने बताया कि इन नीतियों के खिलाफ एक व्यापक जनसंघर्ष विकसित करने की कोशिश माकपा कर रही है।