कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के प्रदेश अध्यक्ष अमर परवानी,कार्यकारी अध्यक्ष मंगेलाल मालू, विक्रम सिंहदेव, महामंत्री जितेंद्र दोषी, कार्यकारी महामंत्री परमानंद जैन, कोषाध्यक्ष अजय अग्रवाल ने बताया की व्हाट्सप्प की नई निजता नीति के खिलाफ एक बार दोबारा हल्ला बोलते हुए कॉन्फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने आज फिर केंद्रीय आई टी मंत्री रवि शंकर प्रसाद को भेजे एक पत्र में व्हाट्सएप, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर आरोप लगाते हुए कि यह निजता के गंभीर उल्लंघन और भारत के 40 करोड़ से अधिक उपयोगकर्ताओं के विश्वास को खंडित करने का बड़ा अपराध और इसलिए इन पर कार्रवाई तुरंत जरूरी है । कैट ने कहा की कैट की शिकायतों के जवाब में व्हाट्सअप ने मीडिया में विज्ञापन देकर इस मामले पर सफाई देने की कोशिह की है जो निहायत ही आधारहीन है और जिसमें कैट द्वारा उठाये गए तथ्यों के विषय में कुछ नहीं कहा गया है, इससे साफ जाहिर होता है की दाल में कुछ काला अवश्य है।

कैट ने आज केंद्रीय मंत्री श्री रवि शंकर प्रसाद से मांग की है की सबसे पहले केंद्र सरकार व्हाट्सप्प को नई नीति को 8 फरवरी से लागू न करने का निर्देश दे एवं उसके बाद देश में इन तीनों सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की तत्काल गहन तकनीकी ऑडिट कराये। क्योंकि इन तीनों सोशल मीडिया प्लेटफार्म का स्वामित्व एक कम्पनी के पास है इस दृष्टि से यह देखा जाना जरूरी है की इन तीनों के बीच किस प्रकार डाटा अब तक साझा किया गया है और उसका क्या उपयोग हुआ है। कैट ने यह भी मांग की है की अब तक इन्होने जो डाटा देश के नागरिकों से लिया है वो भारत में ही सुरक्षित है या फिर किसी अन्य देश में चला गया है, यह भी जांच में देखा जाए। डाटा पूरे देश की सुरक्षा, गोपनीयता, स्वतंत्रता और अखंडता से किसी भी प्रकार का समझौता स्वीकार नहीं किया जा सकता।

कैट के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अमर पारवानी ने इस मुद्दे पर व्हाट्सअप की कड़ी आलोचना करते हुए कहा की देश के लोगों के अधिक से अधिक डेटा प्राप्त करने की मंशा में, व्हाट्सएप 8 फरवरी से अपनी नई गोपनीयता नीति लॉन्च करने के लिए तैयार है और उपयोगकर्ताओं की जबरन सहमति प्राप्त कर रहा है जो असंवैधानिक है, कानून का उल्लंघन है और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है।

केंद्रीय आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद को 10 जनवरी को अपना पहला शिकायत पत्र भेजने के बाद, आज दोबारा अपने पत्र में श्री प्रसाद से कहा है की व्हाट्सएप देश के नागरिको के मौलिक अधिकारों ला खुला अतिक्रमण कर रहा है। “अपनी नई उपयोगकर्ता नीति को अपडेट करके, व्हाट्सएप ने न केवल किसी व्यक्ति की निजता के अधिकार के बुनियादी सिद्धांतों को चुनौती दी है, बल्कि इसने प्रत्येक नागरिक को बेईमान डिजिटल कंपनियों की झूठी, बेईमानी और चकाचैंध से भरी दुनिया का आदी बना दिया है जिसके कारण लोगों की निजी जिंदगी में भी व्हाट्सअप बड़े पैमाने पर घुस गया है।व्हाट्सएप की प्रस्तावित नई नीति स्वतंत्रता एवं जीवन के मौलिक अधिकार के साथ-साथ व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर भी एक बड़ा कुठाराघात है।

उपाध्यक्ष पारवानी ने कहा कि यह एक अजीबोगरीब स्थिति है, जहां भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रही विदेशी कंपनियां अर्थव्यवस्था से जुड़े हर क्षेत्र में हर सूरत में भारत के लोगों का डेटा प्राप्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। यह स्पष्ट है की यह कंपनियां भारत में कोई धर्मादा करने केलिए नहीं बल्कि उस डेटा को दूसरे देश में स्थानांतरित करके बड़ा धन कमाने की कुटिल नीति पर काम कर रही हैं। न केवल सोशल मीडिया के क्षेत्र में बल्कि ई-कॉमर्स व्यापार में भी यही कुछ हो रहा है और इस विषय पर सरकार की कोई स्पष्ट नीति के न होने तथा कोई भी रेगुलेटरी अथॉरिटी के अभाव में,इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत के कानूनों को चकमा देना आसान लगता है। कैट के झंडे के नीचे देश भर के कारोबारी समुदाय ने किसी भी कीमत पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के इस भयावह खेल को नाकाम करने के लिए अपने आपको तैयार कर लिया है और अगर जरूरत पड़ी तो इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मनमाने रवैय्ये एवं नीतियों के खिलाफ कैट न्यायालय जाने में भी पीछे नहीं हटेगा। या तो यह कंपनियां देश के कानूनों का अक्षरशः पालन करेंगी या फिर इन्हे भारत छोड़ कर जाना होगा।
श्री पारवानी ने कहा की जब व्हाट्सएप को वर्ष 2009 में लॉन्च किया गया था, तो उन्होंने गोपनीयता के अपने उच्च मानकों की कसम खाई थी और यह कहकर आश्वासन दिया था कि ष्सबसे पहले, हम ये समझ ले कि हमने न किया है और न ही कभी आपकी व्यक्तिगत जानकारी किसी को बेचेंगेष् श्री पारवानी ने सवाल करते हुए कहा अब उस उच्च मानक और नैतिक आधार का क्या हुआ? लोगों का विश्वास हासिल करने के बाद वे सब कुछ भूल गए हैं और दिन के भर उजाले में लाखों उपयोगकर्ताओं द्वारा उन पर किये गए विश्वास का खुलेआम हनन कर रहे हैं। यह एक तरह से लोगों के विश्वास पर डकैती है।
श्री पारवानी ने बताया की इसी विवादास्पद नीति को जारी रखने के लिए यूरोपीय संघ में अपने प्रयास में विफल होने के बाद फेसबुक ने अब भारत को एक नया लक्ष्य बनाया है। वर्ष 2017 में इसी नीति के लिए फेसबुक को यूरोपीय संघ के एंटी-ट्रस्ट अथॉरिटी के गुस्से का सामना करना पड़ा था, जिसने न केवल फेसबुक पर प्रतिबंध लगा दिया था, बल्कि फेसबुक पर 110 मिलियन यूरो डॉलर का जुर्माना भी लगाया था जिससे यह स्पष्ट होता है ये बहुराष्ट्रीय कंपनियां देश की संप्रभु संपत्ति के शोषण के लिए आदतन अपराधी हैं जहां वे कानूनी या अवैध तरीकों से व्यावसायिक गतिविधियों का संचालन कर रही हैं। लेकिन भारत में इन कंपनियों का यह खतरनाक खेल किसी भी हालत में चलने नहीं दिया जाएगा।

अगर आप भी चला रहें है व्हाट्सएप तो हो जाइए सावधान !

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