गढ़वाल की दक्षिणी सीमा पर बाहरी आक्रमणों को रोकने के लिए गढ़वाल के राजाओं ने रक्षणी सेना के वीरों को बसाया था उनकी प्रसिद्ध गढ़ी ताड़केश्वर के समीप रज्जा गढी थी इस क्षेत्र को आज रिखणीखाल के नाम से जाना जाता है। पर्वत क्षेणी में बोलदा (धवड़या) ताड़केश्वर महादेव का प्रसिद्ध मन्दिर है।……बोल्दां ताड़केश्वर महादेव – ताड़केश्वर महादेव की महता – ताड़ना (सजग देते हुंकार लगाते धैई लगाने वाला बोलन्दा ईश्वर था। यथा हूं….. गढ़वीरों अभी सो रहे हो, शत्रु गढ़ समीप आ गये हैं। इस तरह हुंकार भरी ताड़ना सुनकर रज्जा गढ़ी के वीर शत्रु पर टूट पड़ते और सदैव विजयी रहे।
ताड़ना- सचेत करना, हुंकार मार कर धैई लगाना, घबड़या- जाग्रत करना- बोलन्दा ताड़केश्वर महादेव……….. जिसकी स्थापना लगभग 11वीं- 12वीं ई0 में हो गई थी। प्रतीत होता है कि शिव महातम्की प्रतिष्ठा में ताड़केश्वर की स्थापना की गई होगी। उन्हीं सिद्धों ने ताड़केश्वर महादेव की मान्यता में सिर्फ इसके परिसर में ही देवदार के वृक्षों का वन उगाया। परिसर से बाहर चीड़, बुरांश, बाॅज आदि के वृक्षों का वन है ताड़केश्वर के मुख्य द्वार से ही देवदार के खड़े लम्बे वृक्षों से समस्त मन्दिर परिसर भरा पड़ा है। आने जाने का मार्ग भी सुन्दर बरसाती पानी से बचाते बसा है। प्रारम्भ में सीढ़ीयाॅ ऊँची बनी है जिसमें वृद्ध बच्चे-महिलाओं को कदम रखने में कष्ट होता है। ताड़केश्वर मन्दिर के दर्शनों की अच्छी भीड़ लगी रहती है। इसलिये आहिस्ते आहिस्ते जाते रहे। देवदारों की छाया में समस्त वातावरण शीतल शांत भक्ति भाव पूर्ण बना दिखता है। मन्दिर थोड़ा सा ऊँचा स्थल पर बना है यही मन्दिर परिसर में धर्मशाला, कुछ भवन नये बने है पानी का जल स्रोत्र से भरा कुण्ड भी है।
प्राचीन काल से ही यहां मन्दिरों के देवता अपने क्षेत्र के भक्तों की भी देखभाल स्वंय करते थे। केदारखण्ड में देवताओं की मूर्तियांे को मंत्रों से थरपा जाता रहा। वे सदैव जागृत रहते। ग्यारवीं ई0 में मुसलमानों के आक्रमण से बहुत बड़ा राजपूतों का संघ शाकम्बरी (सहारनपुर) के क्षेत्र में आकर गढवाल में शाकम्बरी की जोत लेकर चन्द्रवदनी सुरखण्डा- रेणुका- कुजाॅजापुरी के संघ रूप में बंट गये। सम्भवतः रिखणीखाल क्षेत्र में ताड़केश्वर कालोडांडा में गरीब नाथ के संरक्षण में कालेश्वर महादेव की स्थापना में उन सिद्धों ने महादेव का शांत, शीतल क्षेत्र की रचना में देवदार का सघन वन लगाने का ध्यान रखा। प्रकृति में यह ईश्वरी देन ही है कि देवदार की उत्पत्ति सिर्फ ताड़केश्वर परिसर में ही होती है।
अब पहले कुण्ड के पास हाथ धोलें फिर मन्दिर में ताड़केश्वर महादेव ठोऊ के दर्शन करते यहां पर काफी कुछ नही बना है। मंदिर पुराना रूप में ही दर्शनीय है। गर्भ गृह छोटा ही पूर्व जैसा है यहां पर ताड़केश्वर महादेव धवड़या (बोलन्दा) देवता था राजा मानशाह के समय से यहां पर सीमा सुरक्षा में रक्षणी सेना रहती थी उस रक्षणी सेना की प्रसिद्धि रज्जा गढी ताड़केश्वर के समीप गुडलखेत से 3 किमी0 ऊपर दांई पहाड़ी पर बनी है, मैं वहां जाने में असमर्थ था इसलिये अपने पुत्र से वहां जाकर फोटोग्राफस लाने को कहा। उसने बताया कि वहां लगभग 45 छोटे कमरों का गढ़ है। कुछ स्थान धुडसाल से लगते है रज्जा गढ़ी के कुछ नीचे किम्बोगांव में पानी का कुण्ड सा दिखता है मानशाह के समय में दिल्ली के बादशाह अकबर का शासन था। हरिद्वार के पास तपोवन क्षेत्र से सुगंधित चावल सदैव बद्रीनाथ के प्रसाद के लिये जाते थे। चम्पावत के राजा रुद्र चन्द्र ने हिमाचल के राजा से मिलकर बादशाह से तपोवन पर अधिकार करने की कोशिस की।
ताडकेश्वर महादेव मन्दिर के समीप रज्जागढी का भार सरदार भौं सिंह पर था। ताड़केश्वर महादेव ने धैई (आवाज)लगा कर रज्जागढी के सैनिक को जगाया और तपोवन पर मुसलमान हिमाचल का अधिकार की सूचना दी। तुरन्त भौं सिंह रक्षणी सेना को लेकर तपोवन गया वहां वीरता से शत्रुओं को मारा काटा भगा दिया और बद्रीनाथ का झण्डा गाड़ दिया। गढ़ तोंडू भौंसिंह तपोवन विजय करके वापिस आ रहा था कि तभी धोखे से हिमाचल के राजा और स्यूणा नाई ने वीर भौं सिंह को मार डाला और बद्रीनाथ का झण्डा और कैलापीर का नगाड़ा छीन कर सिरमौर ले गये।
ताड़केश्वर से नीचे नयार नदी के समीप भौं सिंह का वथेली गांव था जहां उसका पुत्र परमवीर लोदी दिखोला गांव की खेती बाड़ी देखता था, बोलन्दा ताड़केश्वर महादेव ने किलकारी हुकांर मारते लोदी रिखोला को भौंसिंह की वीरगति की सूचना दी। लोदी दिखोला श्रीनगर रज्जा के दरबार में गया ताड़केश्वर महादेव की धई की बात बताई राजा मान शाह ने तुरन्त लोदी रिखोला को राजसी खिलअत पहनाई और एक ताम्रपत्र पर पैनो और बदलपुर की जागीर देकर रज्जा गढ़ी का भार भी सौंपा। लोदी रिखोला ने ताड़केश्वर महादेव का स्मरण करके सिरमौर पर आक्रमण कर विजय प्राप्त कर ली। वहां इतनी वीरता दिखाई कि लोदी रिखोला के भय के कारण आज भी उस वीरभड़ की पूजा होती है इन्हीं दिनों बिजनौर की तरफ से आक्रमण होते रहते थे तब ताड़केश्वर का आशीर्वाद लेकर लोदी रिखोला ने उनके नजीबाबाद किले पर आक्रमण कर उसके द्वार उखाड़ कर रज्जागढ़ी ले आये। रज्जागढी में विश्राम के बाद अपने गांव बथेली जा रहे थे लोदी रिखोला के विरोधियों ने रास्ते में एक खडड बना कर पत्तों से ढक दिया बथेली जाते समय लोदी रिखोला घोड़े सहित गढढे में गिर गये। विषाक्त घावों से लोदी रिखोला की मृत्यु हो गई इनकी वीरता के प्रमाण से ताड़केश्वर की पूजा का पहला दस्तूर रिखोला जाति का था। भगवान सदैव रक्षा तो करता है परन्तु दुष्ट अन्याचारी भी अनिष्ट कारी चाल ही चलता रहता है।
केदारखण्ड में ग्यारहवीं ई0 में मुसलमानों से भयभीत होकर चौहान संध शाकम्बरी के स्थान केन्द्र से चौहान अनेक नामों से बंट गये। चौहान संघ की एक बड़ी शाखा तलवार घोड़ों को रखने वाले असिवाल अर्थात असवाल जाति संध के कहे जाने लगे उस समय उनका प्रभाव बढ़ गया था आधा गढ़वाल बराबर आधा आवास संघ था अपने धोकदारी प्रभाव से असवाल मदमस्त रहे 15 वीं ई0 में मालवा के तीर्थयात्री अजयपाल ने केदार भूमि के गढ़ों को जीत कर गढ़वाल राज्य बना दिया। असवाल संघ देखता ही रह गया। इसी वैमनयस्ता के कारण असवाल संघ पंवार राज्य के साथ विघटनकारी कार्य करते रहते थे। गढ़वाल के इस दक्षिणी भाग पर विजनौर की तरफ से मुसलमानों के आक्रमण चलते ही रहते थे। उनकी रोकथाम के लिये गढ़वाल के राजा की रक्षणी सेना और रज्जा गढ़ी बना रखी थी। मुसलमान जैसे ही आक्रमण करने लगते तभी ताड़केश्वर महादेव रज्जा गढ़ी के वीरों के धैई (सचेत) लगा कर बता देता था कि शत्रु कहां तक पहुंच गया है तब रज्जागढ़ी की रक्षणी सेना तुरन्त उन पर टूट पड़ती थी। मुसलमान सेना को मार काट कर भगा देते थे मुसलमान बार बार अनेक प्रयत्न करते परन्तु बोंलदा ताड़केश्वर महादेव रज्जा गढ़ी के गढ़ वीरों को पहले ही धैई लगा देता और विजय दिला देता। इस हार के कारण मुसलमानों को असवाल जाति के लोगों ने बता दिया कि तुम्हारें आक्रमण की सूचना रक्षणी सेना को उनका देवता ताड़केश्वर तुम्हारें जाने से पहले बता देता था। जिससे वे तुम पर ताड़केश्वर की शक्ति से आक्रमण करके हरा कर भगा देते थे।
असवाल संघ मुसलमानों से मिल गया असवाल जाति के लोंगों ने उन्हें बताया कि यदि ताड़केश्वर महादेव को भ्रष्ट कर दोंगे तो वह धैई नहीं लगायेगा। तब असवाल संघ ने मुसलमानों के सहयोग से कंदार के पत्तें में गरम गरम हलुवा कंदार के पुड़के में गरम तेल से ताड़केश्वर के मुंह पर लेप दिया। उस अनिष्टकारी कार्य से भगवान बोलंदा ताड़केश्वर की वाणी लुप्त हो गई। उन्होंने ताड़केश्वर की मूर्ति भी गिरा कर भूमि में लिटा दी तब ताड़केश्वर महादेव ने धैई तो नहीं लगा पाते परन्तु अभी भी मानव कल्याण में भक्तों को बुलावा देकर बुलाते रहते है। उनको आशीर्वाद देकर चमत्कार दिखाते रहते है। परन्तु मन्दिर परिसर में असवाल लोगों का जाना वर्जित है कंदार का पत्ता और तेल का दीपक जलाना भी वर्जित है।
उत्तराखण्ड वासी हिमालयन इन्सिटयूट जौली ग्रान्ट का अस्पताल के स्वामी राम जी के नाम को जानते ही होगें स्वामी राम जी अपने बड़े भाई लखपती घस्माना जी के साथ जयहरीखाल (लैन्सडौन में रहते थे मैं यह बात तब की कह रहा हूं जब शुद्ध सोना भी हम दुकान के लिये बंसल व्यापारी से 15 रू0 तोला खरीदते थे तब मंहत जी के बड़े भाई लखपती धस्माना जी की डरबी की सात लाख रुपये की लाटरी निकली थी इनका मूल गांव भी ताड़केश्वर के समीप ही है लखपती घस्माना जी ने अपने बोलंदा देवता के मन्दिर का पुर्नजीर्णोद्धार में निर्माण शुरु करना प्रारम्भ किया तब मूर्ति को सही रखने का प्रसाय किया प्राचीन मूर्ति टस से मस नहीं हुई उसी तरह लेटी ही पड़ी रही तब मन्दिर को उसी के ऊपर ही बना दिया गया सम्भवताः देवता के सम्मान में एक छोटा सा छेद छोड़ा है। वर्तमान मन्दिर वैसा ही है जैसा मैंने सन 1961 में देखा था यह अच्छी बात है कि उस पर छेड़ छाड़ नहीं हुआ। मन्दिर के भगवान की पूजा दर्शन करना सभी धर्म जाति का समान अधिकार है परन्तु भगवान की चौकि स्पर्श करना वर्जित है दूर से ही अर्पित करना श्रेष्कर है मन्दिर का गर्भ वैसा ही छोटा है शायद स्थानीय लोगों पण्डितों को ध्यान ज्ञान नहीं कि यह स्थान बोलदा धवड़या देवता की मान्यता का है इसमें मन्दिर की परिखा के अन्दर पण्डित के अलावा किसी भी भक्त को देवस्थान को स्पर्श करना वर्जित है दोनों द्वारों पर भक्तों का प्रसाद फल धूप बत्ती मनोकामना रुपी धन रखने पंडित द्वारा चढ़ाने पर प्रसाद देने की बात रखी जाती है धवड़या देवता ताड़केश्वर की महिमा का चमत्कार से भक्तों को आशीर्वाद मिलेगा मन्दिर समिति से सलाह है कि भगवान के सम्मुख तेल का दीपक न जलाये फिर भक्त जन धूप बत्ती तो लाते ही हैं उसे ही जलाकर पूजा कराये वर्जना का ध्यान रखना ही सबका उददेश्य होना चाहिय कभी ताड़केश्वर देवता शायद कभी बोलने लगे। पूजा के बाद भक्त यात्रा में थक जाते है तब देवदार के वृक्षों के नीचे बैठकर यात्रा की थकान मिटाते मंदिर के दर्शन पाकर विश्राम करते साथ में लाई रोटी खाते हैं। तब परिसर के अंसख्य देवदार के वृक्षों को नीचे तने से उसके शीर्ष तक देखते गर्दन उठाते उठाते देखते है देवदार का पेड जन्म लेते ही सीधा खड़ा होते ही आसमान को छूने की होड़ लगाने लगे हैं उनकी टहनियां भी पंख फैलाये आसमान में उड़ने को उतावली हो रखी है नजर घुमा कर उन्हें देखिये ताकि आपको लगेगा ये देवदार के वृक्ष कितने स्वस्थ तने के बल पर आसमान की दूरी नापने जा रहे है उन्हें देख आनन्द की अनुभूति मिलती है ताड़केश्वर के परिसर से बाहर आते ही सीढ़ीयां ऊँची होने से चढ़ने में फिर भगवान ताड़केश्वर याद आते है।
डा0 रणवीर सिंह चौहान
कोटद्वार गढ़वाल