सावन का महीना भगवान भोलेनाथ का महीना है। शास्त्रों के अनुसार इस पूरे महीने भगवान शिव पृथ्वी पर रहते हैं। इसलिए हर शिवलिंग में शिव का वास माना जाता है। लेकिन जो महत्व सावन में नीलकंड महादेव के दर्शन और जलाभिषेक का है अद्भुत और अनुपम है।

राणों के अनुसार सागर मंथन के समय जब सागर से सृष्टि का अंत करने वाला कालकूट विष हलाहल निकलने लगा तब सभी देवी देवता भगवान भोलेनाथ से रक्षा की प्रार्थना करने लगे।भगवान शिव ने अपनी अंजुली में विष को समेट लिया और पी लिया। विष पीने से भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया इसके बाद से शिव जी नीलकंठ कहलाने लगे।

ऐसी मान्यता है कि जहां पर भोलेनाथ ने विष पीया था वह स्थान ऋषिकेष से करीब 50 किलोमीटर दूर पर्वत पर स्थित। विष पीने से शिव जी यहां अचेत हो गए थे।

ब्रह्मा जी के कहने पर देवताओं ने जड़ी बूटियों के साथ भगवन शिव का यहां जलाभिषेक किया इसके बाद शिव जी की चेतना लौटी। इस घटना के प्रतीक स्वरूप एक शिवलिंग यहां प्रकट हुआ जो नीलकंठ महादेव के नाम से जाना जाता है।

चूंकि भगवान शिव का पहली बार जलाभिषेक नीलकंठ तीर्थ में हुआ था। इसके बाद से ही शिव का जलाभिषेक करने की परंपरा शुरू हुई। इसलिए इस शिवलिंग का जलाभिषेक बड़ा ही पुण्यदायी माना जाता है।

जिस महीने में शिव जी ने विष पीया और उनका जलाभिषेक देवताओं ने किया वह सावन का महीना था। इसलिए सावन में नीलकंठ महादेव का जलाभिषेक उत्तम माना जाता है।