नैनीताल,पहाड़ की बेनाप भूमि पर किसानों को मालिकाना हक मिलेगा। हाईकोर्ट ने 1985 में जारी शासनादेश के अनुसार पर्वतीय क्षेत्र की गैर जमींदारी वाली वर्ग-चार श्रेणी की भूमि को गवर्नमेंट ग्रांट एक्ट 1895 के अधीन पट्टा देकर मालिकाना हक प्रदान करने के आदेश पारित किए हैं। यह शासनादेश 80 के दशक में अविभाजित उत्तर प्रदेश में सीएम रहे एनडी तिवारी के दौर में जारी किया गया था।
कोर्ट ने मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव राजस्व तथा हर जिले के डीएम को आदेश का अनुपालन करते हुए भूमिधरी अधिकार देने को कहा है। साथ ही पूछा है कि इस शासनादेश के अनुसार अब तक क्या कार्रवाई की गई है। इस शासनादेश से पहाड़ के करीब 54 हजार किसान लाभान्वित होंगे। ओखलकांडा के टांडा निवासी किसान रघुवर दत्त ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की। जिसमें उन्होंने कहा कि तीन अक्टूबर 2015 को शासनादेश जारी कर शक्तिफार्म में बंगाली विस्थापितों को मालिकाना हक दे दिया गया। 31 मार्च को वर्ग चार की भूमि पर अवैध कब्जों को नियमित करने का जबकि 20 नवंबर 2016 को वर्ग चार की भूमि के पट्टेधारकों को मालिकाना हक प्रदान करने का शासनादेश जारी कर दिया गया। 30 मई 2012 को कृषि प्रयोजन के लिए दी गई भूमि पर भी मालिकाना हक दिया गया था। याची के अधिवक्ता सुरेश भट्ट ने कोर्ट को बताया कि उत्तर प्रदेश जमींदारी अधिनियम-1956 से पहले 1872 से बेनाम भूमि पर काबिज पहाड़ के काश्तकारों को मालिकाना हक नहीं दिया गया, जबकि पहला हक उनका था। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने मामले को सुनने के बाद सरकार को पहाड़ के किसानों को बेनाप भूमि पर भूमिधरी अधिकार प्रदान करने का आदेश पारित किया। साथ ही कहा कि आवेदन मिलने के छह माह के भीतर आवेदक को भूमिधरी का अधिकार प्रदान किया जाए। इसके लिए जिलास्तर पर कमेटी बनाने के निर्देश मुख्य सचिव व प्रमुख सचिव राजस्व को दिए हैं। कोर्ट के फैसले से भूमिधरी अधिकार के लिए दशकों से संघर्षरत पर्वतीय किसानों को बड़ी राहत मिली है।