अंततः वो घड़ी आ ही गई जिसका सभी को बेसब्री से इंतजार था। अखिल गढ़वाल सभा के इतिहास में पहली बार मतपत्रों के माध्यम से चुनाव होने जा रहा है।
वैसे तो सभा के चुनाव प्रत्येक 3 साल बाद हुआ करते हैं मगर अभी तक उसमें हाथ उठा कर सहमति लेने की परंपरा चली आ रही थी और 1100 लोगों की संस्था का चुनाव मात्र  80-100 लोगों के बीच सम्पन्न हो जाता था ।
  पिछले 2 चुनाव में कुछ सदस्यों को यह बात महसूस होने लगी थी की इतनी बड़ी संस्था का निर्णय मात्र 80-100 सदस्य कैसे ले लेते हैं और बाकी सदस्य क्यों तटस्थ रह जाते है  चुनाव की पूरी प्रक्रिया  मात्र 4-5  घंटों में सम्पन्न हो जाती थी और  जब तक अन्य सदस्यों को कुछ समझ में आता, पूरी प्रक्रिया निपट चुकी होती थी। अब आपके पास  सिवाय हाथ मलने या विरोध दर्ज करने के अलावा कोई भी रास्ता नहीं होता और संस्था चूंकि सामाजिक है तो व्यक्तिगत विरोध का कोई मतलब नहीं रह जाता इसलिए विरोध “प्रक्रिया” का करना था और वो हुआ भी , जिसकी परिणीति ये चुनाव हैं।
    खैर जैसे भी सही अब लोकतान्त्रिक तरीके से मतपत्रों  से चुनाव होने जा रहा है और सालों से चली आ रही एक परंपरा का समापन ।  
   अब मानुष स्वाभाव है कि जब भी कोई कार्य पहली बार करता है तो कठिनाई महसूस करता है जिस कारण उसमें बुराई ढूढ़ने लगता है लेकिन उस प्रक्रिया के दीर्घकालीन  फायदों को जानबूझ कर वो नजरअंदाज कर देता है ।
  अब साब ! जब सिक्का है तो दो पहलु भी होने लाजमी हैं जब तक चला तो “मेरा” नहीं तो “खोटा”… ये बदलाव वाला चुनाव भी कुछ इसी ही परिस्थिति में गुजर गया ।
सामान्यतः चुनाव में कोई भी व्यक्ति अपने उपलब्धियों व् भावी सोच को सामने रख कर उन मुद्दों पर आपसे समर्थन मांगता है मगर इस बार समर्थन का मुद्दा सिर्फ ये रह गया कि “किसने कितने सदस्य बनाये “।
गोया वो कोई सदस्य ना बना कर उस व्यक्ति का जर-खरीद गुलाम हो गया उसकी अपनी कोई सोच कोई विवेक नहीं रह गया। अब दुर्भाग्य देखिये कि जिन लोगों ने आज तक एक बार भी गढ़वाल सभा की शक्ल न देखी हो वह लोग भी इसके भविष्य को तय करेगें 
लेकिन अच्छी बात यह भी है कि ये कल आखरी बार होगा। चुनाव में जितने भी सदस्य वोट डालने आएंगे आएंगे कल के बाद उन्हें भी पता होगा कि “गढ़वाल सभा भवन” कहाँ पर है ?  
एक दूसरा मुद्दा देखिये -“वो तो फलां जगह नोकरी करता है संस्था को समय कैसे देगा” शायद ये कहते हुए वह ये भूल जाते  है कि भाई तुमने भी तो नोकरी पर रहते हुए सभा के कई महत्वपूर्ण पदों पर जिम्मेदारी का निर्वहन किया है फिर दूसरे पर ऊँगली क्यों ? ध्यान रखो गढ़वाल सभा एक फुलवारी की तरह है जिसमें कई रंगों के फूल हैं सबका अपना रंग ,महत्व और अपनी महक है । सोच कर देखो कि क्या सिर्फ एक प्रकार के फूलों / रंग की फुलवारी में किसी प्रकार की रोचकता रह पायेगी।
ये चुनाव कुछ कुछ पुरातन और नए प्रयोगों के बीच होने जा रहा है जहाँ नये विचार सभा को स्वाबलंबी बनाने के लिए उसके स्वरुप को ढालने को तत्पर हैं तो दूसरे इसके पुरातन स्वरूप में रखते हुए ही  कुछ बदलाव के पक्षधर हैं।
  खैर अब जब चुनाव करना ही है तो सभा के सभी सदस्यों को समझ बूझ कर उन पदाधिकारियों का चयन करना चाहिए जो अपने कार्यकाल में सभा को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकें।