अघोरी ने चिता चढ़े शव को ज्युं ही छुआ, शव जोर से चिल्लाया तो अघोरी घबराकर पीछे हटा और शव ठठाके हंस पड़ा फिर बोला,
“ये क्रंदन सुन रहे हो अघोरी ?
ये तुम्हारी मातृभाषा हिन्दी है |
कितनी क्रुरता से इसे समाप्त किया जा रहा है
संस्कृत की तरह मृत प्रायः,
कभी सोचा संस्कृत क्युँ समाप्त हुई और दुर्भावना क्या थी समाप्त करने की ?
सबसे उन्नत धर्म की जडें काट दी गई संस्कृत समाप्त करके |
आप अपने वेद, पुराण, ऊपनिषद आदि मूल भाषा में पढोगे नहीं तो समझोगे कैसे ?
समझोगे नहीं तो मनन कैसे करोगे ?
मनन नही करोगे तो अनुकरण कैसे करोगे ?
ईसाईयों को अंग्रेजी आती है वो बाइबिल पढ लेते है, मुस्लिम को उर्दू आती है वो कुरान पढ लेते है | कितना बडा षडयंत्र और तुम समझ न पाए, धीरे धीरे तुम्हारी भाषा गई और फिर तुम्हारे संस्कार गए |
क्या इतना भयभीत हिन्दू समाज था कभी, जितना आज है ? वो पौरूष वो उच्च मापदंड, वो जीवन के प्रति विवेक सब समाप्त हो गए | अब हिन्दी मर रही है और तुम मौन हो |
निःशब्द नीरव निशा नग्न नृत्य कर रही है मौत का, संस्कृत से लेकर संस्कार की मृत्यु का और तुम मौन हो” |
अघोरी स्तब्ध होकर विचारने लगा, शव फिर ठंडा हो गया |
दूर कहीं मंदिर में हिन्दुओं कि अकर्मण्यता पर कोई श्लौक कंठस्थ कर रहा था,
बलवानप्यशक्तोऽसौ धनवानपि निर्धनः |
श्रुतवानपि मूर्खोऽसौ यो धर्मविमुखो जनः ||
अर्थात् :- जो व्यक्ति धर्म (कर्तव्य) से विमुख होता है वह (व्यक्ति) शक्तिशाली होते हुए भी निर्बल हैं, धनवान हो कर भी निर्धन तथा ज्ञानी हो कर भी मूर्ख होता है |
सभी आदरणीय जनों एवं मित्रों को हिंदी दिवस की शुभकामनाएं | ईश्वर करे आगामी हिंदी दिवस तक हमारे सभी अंग्रेजी चश्मे से संसार को देखने वाले हिंदी का मन से सम्मान करें | हिंदी दिवस के इस पावन पुनीत दिवस पर मन में यह संकल्प लीजिए कि आपमें हिंदी रहेगी हिंदी में आप रहेंगे और सम्पूर्ण विश्व को हिन्दीमय कर देंगे |
हिंदी कि पुरातन पहचान को नव जीवन देंगे |
जय हिंदी
” अज्ञात ”