देहरादून, प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के स्थानीय सेवाकेन्द्र सुभाषनगर में आयोजित रविवारीय सत्संग में राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी मन्जू बहन ने जनसमूह के समक्ष मनन चिंतन करने के लिए प्रश्न रखा कि क्या अविनाशी शांति विश्व में हो सकती है ? सर्व आत्माआंे में निःस्वार्थ सच्चा स्नेह हो सकता है ? ईश्वर की संतान, दाता के बच्चे और माँग रहे हैं, एक घड़ी के लिए, थोड़े समय के लिए शान्ति दे दो। परमपिता परमात्मा के उत्तराधिकारी बच्चे भिखारी बन शांति और स्नेह के लिए भटक रहे हैं । भटकते-भटकते कई बच्चे दिलशिकस्त बन गए हैं। 

कलियुग अंत और सतयुग आदि के बीच के समय (पुरूषोेत्तम संगमयुग) में भगवान बच्चों को यही खुशखबरी बताने के लिए आये हैं कि तुम ही मेरे बच्चे कल शान्ति और सुखमय दुनिया के मालिक थे। सर्व आत्मायें सच्चे स्नेह के सू़त्र में बँधी हुई थीं। शांति और प्रेम तो आपके जीवन की विशेषता थी। प्यार का संसार, सुख का संसार, जीवनमुक्त संसार जिसकी सब आश रखते हैं, उसी संसार के कल आप मालिक थे। आज भगवान वह संसार बना रहे हैं और कल फिर उसी संसार के आप मालिक होंगे। जहाँ दुःख अशान्ति का नाम निशान नहीं, अप्राप्ति नहीं। अप्राप्ति ही अशांति का कारण है और अप्राप्ति का कारण है अपवित्रता। पतित पावन शिव बाबा सभी पतित आत्माआंे को पावन बनाने के लिए ही आये हैं। अपने सर्व सम्बन्ध शिव बाबा से जोड़कर, उनसे राजयोग द्वारा आत्मा पावन बन सकती है। मन के संकल्पों को शुद्ध बनाने से पवित्रता आ जायेगी जिससे आत्मायें प्राप्ति स्वरूप ?बन जायेंगी और जीवन में शान्ति और सुख होगा।