अखिल गढ़वाल सभा के निवर्तमान महासचिव रामेन्द्र कोटनाला द्वारा अपने कार्यकाल के पूर्ण होने पर एक धन्यवाद बैठक का आयोजन किया। बैठक में उन्होंने अपनी खट्टी मिट्ठी यादों को साझा करते हुए कई रोचक प्रसंग सुनाये। उन्होंने सभा के सभी सदस्यों का सहयोग करने के लिये सभी सदस्यों का दिल से आभार व्यक्त किया , विशेष रूप से सभा के निवर्तमान अध्यक्ष रोशन धस्माना  को सभा का एक समर्पित सिपाही बताते हुऐ  कहा कि पिछले लगभग 30 सालों से वे लगातार सभा के विभिन्न पदों में रह कर व अध्यक्ष तक का, उनका सफ़र बेजोड़ है, इसलिये उनके साथ काम करने का अनुभव भी अपने आप में बहुत ही खास है । 

सभा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रहे  गढ़ कवि एवं साहित्यकार मदन ढुकलान ने अपने कार्यकाल में किये गए कार्यो को बताते हुए कहा कि उन्हें लगता है कि अभी भी बहुत से क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ गढ़वाल सभा को शुरुआत करने की आवश्यकता है जिसके लिए उन्होंने नये विचार, नई सोच व् पहाड़ के दर्द को भीतर से समझने वाले तथा उसके समाधान के लिए जुनूनी लोगों को आगे लाना बेहद जरूरी बताया। उन्होंने कहा कि आज जहाँ संकल्प खेतवाल जैसे युवा जो  देश और दुनिया में पहाड़ की बोली भाषा काे आगे बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं या फिर पलायन व बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर काम कर रहे सचिन थपलियाल जैसे युवाओं को संस्था से जोड़ कर एक नई दिशा देने की जरुरत पर जोर दिया।
सभा की कनिष्ठ उपाध्यक्ष सुलोचना भट्ट ने भी मदन ढुकलान की बात का समर्थन करते हुए कहा कि अब हम जितने भी वरिष्ठ साथी हैं, हमारा कर्तव्य है कि भविष्य की जरूरतों को देखते -समझते हुए  हम सभी को नये व ऊर्जावान चेहरों को तलाश कर उन्हें सभा के उद्देश्यों व् विचारों से जोड़ कर, पीछे रह कर निर्देशित किया जाये । उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात से बहुत पीड़ा होती थी कि सालों से गढ़वाल सभा के कार्यकर्मो में निस्वार्थ भाव से योगदान दे रहे आंदोलनकारी मंच से जुड़े  प्रदीप कुकरेती , राम लाल खंडूड़ी , जगमोहन नेगी, मोहन रावत,राकेश नॉटियाल,सुरेश नेगी, आशीष उनियाल,धर्मपाल रावत और भी ऐसे चेहरे जिनका नाम भी वह नहीं जानती आदि को उतराखण्ड महोत्सव में जी जान से मेहनत करते हुए देखा है मगर दुर्भाग्य कि किसी ने भी, कभी यह प्रयास नहीं किया कि इन लोगों को सभा से जोड़ कर ठाकुर वीर सिंह के विचारों को आगे बढ़ाया जाए ।
उन्होंने सभी वरिष्ठ साथियों को चेतावनी देते हुए आह्वान किया कि देखने में आ रहा है कि अब यहाँ सिर्फ अपने रिश्तेदारों , पड़ोसियों या जानकारों के सदस्यता फार्म भर कर खुद को मजबूत करने की परिपाटी चल पड़ी है जो सभा के भविष्य के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकती है। इसे रोका जाना चाहिए। ।
सभा के लेखा परीक्षक रहे कुलानंद घनशाला ने कहा उन्हें लगता है कि गढ़वाल सभा को अब एक बड़े बदलाव की आवश्यकता ही जिसमें सभी अनुभवी साथियों को अपने अनुभव नई पीढ़ी को स्थान्तरित करने का समय आ गया है साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा न हो कि “रिफॉर्म” के चक्कर में किसी ऐसे व्यक्ति का मनोनयन हाे जाये कि गढ़वाल सभा की गौरवशाली परम्परा ही नष्ट हो जाये।इसलिए सभी प्रमुख पदों पर मनोनीत करने से पहले हम सभी सदस्यों को उक्त प्रत्याशी का इतिहास जानना व उसके उद्देश्यों को भली भांति जानना समझना भी बहुत जरुरी है। उन्होंने सुझाव दिया किया कि सभा के सभी वरिष्ठ सदस्यों की बैठक कर उन लोगों के सुझाव भी लिए जायें ।
सभा की महिला सचिव श्रीमती  निर्मला बिष्ट ने बताया  कि आगामी 21 नवंबर को नई कार्यकारणी का चयन होना है जिसमें इस वर्ष से मतपत्र द्वारा मताधिकार का प्रयोग किया जाना है । उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि हम सभी पर्वतीय मूल के लोग हैं और सब एक हैं तो  क्या हम सभी लोग विचार विमर्श कर आपसी सहमति के आधार पर , सभी पदों पर निर्विरोध प्रत्याशी का चयन कर एक मिसाल कायम नहीं कर सकते ?  जिसका कि सभी उपस्थित सदस्यों ने स्वागत करते हुए यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी लेने को कहा।
सभा के वरिष्ठ सदस्य श्री लोक मणि जखवाल ने सभी निवर्तमान सदस्यों को उनके सफल कार्यकाल की बधाई देते हुए सभी की भावनाओं का सम्मान करते हुए, सभा के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने की दिशा पर जोर दिया। उन्होंने इस बात पर अफ़सोस जताया कि कहने को तो हम अखिल गढ़वाल सभा हैं मगर इतने सालों के बाद भी सभा देहरादून से बाहर नहीं निकल पायी ।उन्होंने भी सदस्यों के “रिफार्म” का स्वागत किया ।
  सभा के अन्य वरिष्ठतम सदस्य “श्री धीरज सिंह नेगी ने अपने अनुभवों को साझा करते हुऐ कहा कि अब ऐसा लगने लगा है कि सभा अपने निर्माण के उद्देश्यों से भटकती जा रही है। त्याग और बलिदान का अभाव है जो कि हम जैसे लोगों की संस्थाओं के लिए बेहद गंभीर बात है । मठाधीशी और अहम जैसा व्यवहार  ही अधिक नजर आता है । समझ में नहीं आता कि क्या ये वही सभा है जिसका निर्माण बिशंभर दत्त चन्दाेला, ठाकुर बीर सिंह आदि समर्पित लाेगाें ने किया था ।अब तो कई बार ये आभास होता है कि यह सामाजिक सभा कम और राजनैतिक सभा अधिक है। आज सभा, पर्वतीय समाज के सामाजिक , साहित्यिक एवं साहित्यिक सरोकारों का संरक्षण  करते करते मात्र  कुछ चेहरों तक सिमट कर  रह गई जो किसी भी जीवित संस्था के लिए विचारणीय प्रश्न है। उन्होंने कर्नल अजय कोठियाल, जयदीप सकलानी आदि का उदाहरण देते हुए कहा कि सभा में उन जैसी कई नामचीन व पहाड़ के लिए निस्वार्थ भाव से समर्पित कई हस्तियों हैं मगर हम कभी भी उनकी सोच व अनुभवों का लाभ नहीं ले पाये। 
   बैठक में वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमति रजनी कुकरेती, शिव कुमार पैन्यूली, नीलम ढोंडियाल, योगेश भट्ट, सुनील बंगारी, समीर मुंडेपी, भूपेंद्र कठैत, उदयवीर पंवार,गिरीश सुन्द्रियाल, मोहन भंडारी, नवीन चन्द्र आदि ने भी अपने विचार रखे ।