अल्मोड़ा, देश में हिमांचल और जम्मू के बाद अब उत्तराखंड में भी केशर का उत्पादन हो सकेगा। जीबी पंत हिमालयी पर्यावरण के वैज्ञानिकों ने कारगिल के जंगसार से केशर का बीज एकत्र कर उसका रोपण संस्थान की क्यारियों में किया। इसके बाद अब केवल एक महीने बाद यहां केशर के फूल उग आए हैं।

संस्थान के वैज्ञानिक व नोडल अधिकारी डॉ. किरीट कुमार ने बताया कि मूल रूप दक्षिण यूरोप की यह प्रजाति इरिडेसी परिवार की है। जबकि इसे अग्निशिखा, कंकुमा व अरूणा नाम से भी जाना जाता है। वनस्पति विज्ञानी इसे क्रोकस सैक्टिस नाम से जानते हैं। उन्होंने बताया कि इस पुष्प के वर्तिक्राग भाग का व्यावसायिक प्रयोग किया जाता है। डॉ. कुमार ने बताया कि उत्तराखंड में केशर उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं और समुद्र सतह से एक हजार मीटर वाले क्षेत्र में इसे सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। केशर के उत्पादन के लिए उपोष्णीय व शुष्क शीतोष्ण जलवायु का होना अनिवार्य है। केशर उत्पादित करने वाली टीम के सदस्य जगदीश पांडे और कमल सिंह भंडारी ने बताया कि उन्होंने केशर की लहसुन के समान कंदों को क्यारियों में रोपित किया। इसके लिए ढलान वाली बलुई मिट्टी का प्रयोग किया। जिसके एक महीने के बाद ही संस्थान के क्यारियों में केशर के पौधे उग आए हैं। चीन और अफगानिस्तान देशों में केशर का उत्पादन काफी अधिक मात्रा में किया जाता है। वर्तमान में बाजार में एक किलो केशर का दाम एक लाख पच्चीस हजार रुपये तक है। प्रदेश में केशर उत्पादन की संभावनाएं मिली हैं। एक ओर जहां पर्वतीय क्षेत्रों में खेती से लोगों का मोह भंग हो रहा है। वहीं केशर उत्पादन से यहां के लोगों की आर्थिकी में सुधार किया जा सकता है। संस्थान की टीम का यह कार्य काफी सराहनीय है।