आज,हिमालय दिवस है, सारे मित्र हिमालय के लिए दुआ और प्रार्थना कर रहे हैं, उसके लिए करुण पुकार और गुहार लगा रहे हैं ? वैसे तो हिमालय को देश की जीवन रेखा कहा जाता है, जलनिगम की भाषा में बोलें तो ये देश का पानी का लाईन है ?
और नदियों में पानी नहीं आया तो ऐसा नहीं कि हम नगर-पालिका / निगम को फोन लगाके पूछें कि, भाई नदियों में पानी क्यों नहीं आ रहा है या पानी का प्रेशर कम क्यों है ,एकदम बारीकी धार है  ?
वैसे तो केजरीवाल अब काफी सुधर गया है पर  पहले की बात होती तो वो सीधा बोल देता कि, “ इसमें मोदीजी का हाथ है या उनकी कोई चाल है ” ? पर पिछले कुछ दशक दिनों से मैं देख रहा हूँ कि , वो आजकल सुधर गया है ? या तो वो राहुल गाँधी की तरह डर गया है या फिर क्या पता अंदर ही अंदर कोई सेटिंग हो गया हो ? आजकल न उसके मुख में में एल.जी है और न ख्वाबों –खयालों में दिल्ली पुलिस ?
उत्तराखंड राज्य बनने से काफी पहले से ही हम गढ़वालियों, कुमाउनियों, कश्मीरियों ,नेपालियों ,आसामियों,अरुणाचल को हिमालय से काफी प्रेम रहा है ? हमारी बेसिक या जूनियर कक्षा की किताबों में तो हिमालय पर एक दो बड़ी अच्छी कवितायें  थी, एक तो संस्कृत में “ अस्युतरो दिशा देवात्मनामम हिमालयो नाम नगाधिराज —-” थी और दूसरी “ यह है ,भारत का शुभ्र मुकुट ,यह है भारत का उच्च भाल, सामने अटल जो खड़ा हुआ हिमगिरी विशाल, गिरिवर विशाल ?
अब कोई अटल को अटल बिहारी वाजपेई से जोड़ के देखे तो मै क्या करूँ ? हम तो अपने को हिमपुत्र कहकर “ हिमवंत देश मेरो — गढ़वाल छ प्यारो ” , ऐसा गीत भी गा चुके हैं ? हमारा सुंदरलाल बहुगुणाजी ने तो पर्यावरण बचाने के नाम पर हिमालय को बचाने की काफी कोशिशें भी की हैं ?
हमने 1962 में  भले ही आधा हिमालय चीन को दे दिया हो फिर भी हिमालय के प्रति हमारा स्नेह ,प्रेम ,लगाव और हमारी चिंता कम नहीं हुई ?पता नहीं हमारे कितने वीर सिपाही और सैनिक इसी हिमालय के चरणों में नतमस्तक होकर शीश गवां चुके है और आज भी ये सिलसिला जारी है ?
हिमालय दरसल एक सिक्के की तरह है, जिसका Head हिंदुस्तान की तरफ है तो  Tail नेपाल और चीन की तरफ है ? अपनी तरफ के गढ़वाल के भाग को हम देवभूमि और तपोभूमि , ऋषियों और संतों की भूमि कहते हैं ? हिमवान और माँ नंदादेवी की कहानी और आस्था, गढ़वाल और कुमाऊँ = पूरे उत्तराखंड से जुडी है ? बाबा भोलेनाथ तो केदारनाथ से ही अलोप हुए थे, वो भी पांडवों के देखते –देखते ?
खैर ये सब तो बड़ी लंबी कहानी है, आजकल हिमालय को लेकर जो हमारी सबसे बड़ी चिंता है वो इसके ग्लेशियरों और पानी को लेकर है और मुझे अपने सैनिकों और सियाचिन को लेकर है, जो बर्फ को ही बिछाकर –ओढ़कर सोते हैं ?  जहाँ के माइनस 40 और 50 डिग्री तापमान में पहले खून का पानी  हो जाता है और फिर  पानी  रगों में बर्फ बनकर जम जाता है ? जी हाँ ऐसे ही बनते हैं सचमुच के  मिस्टर कूल ?
ग्लेशियर, सुनते हैं बड़ी तेजी से पिघल भी रहे हैं और पीछे खिसक भी रहे हैं ? इस समस्या और नदियों को लेकर जलनिगम, नगर- निगम और म्यूनिसप्लेटी का कहना है कि, “ भाई, हम पानी की टंकी या पाईप –लाईन तो रिपेयर कर सकते है पर भाई ग्लेशियरों का ईलाज हमारे वश का नहीं है ? तुम ऐसा करो कि, उत्तराखंड के मंत्रियों और उनकी पत्नियों की एक टीम बनाकर आल्पस  या रॉकी और एंडीज पर्वत श्रंखलाओं के ग्लेशियरों का अध्ययन करने विदेश भेजदो ? और वैसे भी ग्लेशियर 2019 के अप्रेल –मई तक पिघलने वाले नहीं फ़िलहाल भाइयों और बहनों ,तुम मोदीजी और अगले लोकसभा चुनाव पर सारा ध्यान केंद्रित करो .
मै भी सोचता हूँ कि, वाकई अगर मोदीजी 2019 में  सचमुच झोला उठाकर चल दिए तो फिर मै हिमालय और ग्लेशियर को बचाकर क्या करूँगा ? किसके लिए बचाऊँ उनको ?  बाद में राहुल गाँधी , मुलायम, ममता या माया दी के लिए ? वो तो खुश होकर गाने लगेंगी —- “ चल ,चल, चल मेरे हाथी, चल ले चल —–खींचके ”?
मेरा आशय वैसे देश की अवमानना करना नहीं है बल्कि मेरा ईशारा उसकी अर्थव्यवस्था की तरफ है ? क्योंकि बाद में वो भी यही रोना रोएंगी की खजाना खाली है ? और ये आदत सभी राजनेताओं की होती है ? हो सकता है कि, भले ही किसी ने पैसा न खाया हो, घोटाला न किया हो पर अपने प्रचार ,विज्ञापन, विदेशी दौरों और अच्छी योजनाओं – परियोजनाओं पर बहुत जादा खर्च कर दिया हो ? दोस्तों का कर्ज माफ़ कर दिया हो या ईरान का तेल का कर्ज चुका दिया हो ?
और क्या पता इसी चक्कर में खजाना खाली हो गया हो ? मोदीजी की   पार्टी के लोग सोचते हैं अगर 2019 में मोदीजी जीत के न आए तो धरम भी रसातल में चला जाएगा और देश भी खतरे में पड़ जाएगा ? फिर मोगल आजाएगा या राहुल गाँधी आ जाएगा, हालाँकि ये बात भी खाते में 15 लाख और राम मंदिर की तरह अविश्वसनीय ही लगती है फिर भी डर तो डर है ?
वो कह रहे हैं कि “ नोटा ”  की बात करनेवाले कांग्रेसी हैं नहीं तो उनके एजेंट है  ? वो पूछ रहे हैं कि , मोदीजी का विकल्प क्या है ? कहाँ मोदी और कहाँ राहुल गाँधी ? उनसे कई गुना बेहतर तो नीतेश कुमार थे पर क्या करें वो लालु का साथ छोड़कर फिर भाजपा में चले गए, गंगा नहा लिए और पुन: पवित्र हो गए ? ईधर नितेश अपना डी.एन.ए. ठीक कराकर बीजेपी में आए और उधर लालू प्रसाद यादव जेल चले गए और वहां जाकर बीमार हो गए  ?
और अब उन्हें ये डर सता रहा कि, राहुल बाबा कहीं उनको देखने जेल न पहुँच जाएं ? पता नहीं किसने सोशियल मीडिया में ये अफवाह फैला दिया है कि, राहुल भैया जिस बीमार को देखने जाते हैं वो फिर xyz हो जाता है ? कुछ लोग तो बाकायदा  जयललिता, करुणानिधि और अटलजी का उदाहरण  भी देते हैं ? अच्छा है कि , राहुल गाँधी आजकल कैलाश –मानसरोवर की यात्रा पर गए हुए हैं ? एक- दो दोस्त तो ये भी कह रहे हैं कि , वो चीन के द्वारा उनके नाना के जमाने में हड़पी गई हमारी  जमीन वापस लेने गए हैं ?
                                                                             
खैर पिछली बार तो वो घर –घर मोदी, हर –हर मोदी का नारा और राम नाम का सहारा लेकर उपर आ गए थे  पर इस बार नोटबंदी, पेट्रोल –डीजल, एस.सी /एस.टी एक्ट को लेकर वो भी थोड़ा डरे हुए हैं ? उनको गाँधीजी से ये शिकायत थी कि, उन्होंने भगत सिंह का केस नहीं लड़ा ? भाई ऐसे ही नहीं लड़ा होगा, जैसे अटलजी ने आडवाणीजी का केस नहीं लड़ा ?
और अटलजी का सरकार भी इतना अच्छा काम किया कि, लोग फिर से मनमोहनजी के शरण में चला गया ? पागल जनता का भरोसा नहीं कि, फिर से कब क्या कर बैठे ? देश का भी वाट लगादे और धरम का भी ? वो ये बोल रहे हैं कि, “ हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकालके ——”.
अभी तुमने थोड़ा ढील दिया और मोगल और कांग्रेस फिर से आ गया तो फिर मत कहना ?इसलिए मुझे हिमालय से जादा मोदीजी का चिंता है ? एक तो त्रिवेंद्रजी का मार्कशीट भी बहुत अच्छा नहीं है ? दूसरा मेरी ये समझ में भी नहीं आया कि, भारत क्या भारत माँ का बेटा है या कोई ऐसा                                           
दरवाजा है कि, जिसे जब चाहो खुला करदो या बंद करदो और जब रोहिंग्या और बांग्लादेसी घुस रहा था  तो ,तब बंद क्यों नहीं किया ? फ़िलहाल तो कल का देखते हैं ?