उत्तरकाशी, हर्षिल घाटी में सेब को लेकर एक बात खास है। यहां का सेब रसीला और मीठा है। जिसे लोग बेहद पसंद करते है, लेकिन सेब की पैकेजिंग और ब्रांडिंग को लेकर उद्यान विभाग ने कोई ठोस पहल नहीं की है।
सीमांत जनपद उत्तरकाशी में सेब का उत्पादन वर्षों से होता आ रहा है। 1960 के बाद सेब के उत्पादन में लोगों की रूचि बढ़ी। आज यह स्थिति है कि हर वर्ष 15 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है और यहां रॉयल डिलिस्स, रेड डिलिस्स सहित आठ किस्म हैं उन सभी किस्मों के सेब के बाग हैं।
15 जुलाई से लेकर 30 अक्टूबर तक सेब की तुड़वाई का कार्य चलता है। अच्छा उत्पादन व अच्छी किस्म के रसीने सेब होने के बाद भी यहां के सेब को अपनी पहचान नहीं मिली। देश के बड़े शहरों की मंडियों में यहां का सेब हिमाचल एपल लोगो की पेटियों में जा रहा है। यहां तक कि उत्तरकाशी के लोकल बाजारों में भी सेब हिमाचल की पेटियों में आ रहा है। किसानों को उत्तराखंड एपल की ब्रांडिंग वाली पर्याप्त पेटियां नहीं मिल पाने से वे अपने सेब को हिमाचल की पेटियों में बेचने को मजबूर हैं। मोरी, आराकोट, जखोल, नौगांव स्यूरी के सेब तो पूरी तरह से हिमाचल एप्पल लोगो वाली पेटियों में बेचे गए। धराली, सुक्की टॉप, बगोरी के सेब भी हिमाचल की पेटियों में ही बेचे जा रहे हैं। स्थानीय निवासी रमेश सिंह नेगी का कहना है कि उद्यान विभाग को उत्तराखंड एप्पल के लोगो वाली सेब की पेटियां एक जुलाई से पहले उपलब्ध करा देनी थी, जिससे काश्तकारों को हिमाचल के लोगो वाली पेटी खरीने के लिए मजबूर न होना पड़ता।