सन 1990 में DAV(PG) से अपने रानीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले रविंद्र जुगरान 1994 में जब यह पर पर्वतीय भूभाग करवट बदल रहा था तो उस समय इनका योगदान कभी नहीं भुलाया जा सकता ! ओबीसी आरक्षण से शुरु होकर किस तरह से वह आंदोलन पृथक राज्य में बदला…. इसमें जुगारण जी का अहम योगदान रहा है ,चाहे छात्र संघर्ष समिति हो या उत्तराखंड राज्य की मांग, उनका योगदान हर जगह रहा है कुछ एक घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो आंदोलन में उनका योगदान अविस्मरणीय रहा है उनका वह आक्रमक स्वभाव उस समय के भ्रष्ट कर्मचारी व अधिकारियों को आज भी याद होगा ! सन 1998 लोकसभा चुनाव में संघर्ष समिति द्वारा दिया गया नारा…
राज्य् नहीं तो चुनाव नहीं…….
उनके लिए बेहद कटु अनुभव वाला रहा इस चुनाव के बाद कि उनकी सेकंड लाइन उनसे दूर हो गई और धीरे-धीरे वह आंदोलन की राह में अकेले पड़ते चले गए आज भी अधिकांश लोगों का यह मानना रहा है उत्तराखंड जैसे छोटे राज्यों को रविंद्र जुगरान जैसे ईमानदार नेता की जरूरत है । लेकिन धनबल और बाहुबल के बीच सिमट चुकी आज की राजनीति मैं वह अलग-थलग पड़ गये । राज्य गठन के 16 साल बाद भी उनकी प्रासंगिकता आज भी कायम है…..
आज की तारीख में जब कोई भी व्यक्ति बिना चरण वंदना के राजनीत में खड़ा नहीँ हो सकता ऐसे में वो अपने आप में एक मिसाल भी हैं,उनका एकला चलो रे वाला स्वभाव ही उनका सबसे बड़ा दुश्मन साबित हुआ।
वह अपने आप में आंदोलन की पूरी किताब थे मगर राष्ट्रीय दलों ने उनको सिर्फ एक पन्ने में समेट दिया । आज भी मेरा यह व्यक्तिगत तौर पर मानना है इस राज्य को अगर तीसरा विकल्प बनाना है तो उसमें जुगराण जैसे तेजतर्रार व आक्रमक नेता की जरूरत पड़ेगी । ऐसे व्यक्तित्व को देव की ओर से सत सत प्रणाम. इनके लिए कुछ पंक्तियां समर्पित कर रहा हूं. पसंद आए तो अपने विचार जरुर दे …
धन्यवाद आपका मित्र देव नौटियाल
पाना है जो मुकाम वो अभी बाकि है,
अभी तो आये है जमी पर,
आसमां की उड़ान अभी बाकि है.
अभी तो सुना है सिर्फ लोगो ने यह नाम,
इस नाम की पहचान बनाना अभी बाकि है.
………..जय भारत जय उत्तराखंड