ऋषिकेश, नगर सहित आसपास क्षेत्रों में बढ़ते प्रदूषण की वजह से त्वचा रोगियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इसी का नतीजा है कि नगर के एसपीएस राजकीय चिकित्सालय में इन दिनों प्रतिदिन 40 से 50 मरीज त्वचा संबंधी शिकायत लेकर पहुंच रहे हैं। राजकीय चिकित्सालय में त्वचा रोग विभाग के डॉ. संतोष कुमार पंत ने बताया कि प्रतिदिन यहां 40 से 50 के बीच त्वचा रोग की शिकायतें लेकर आ रहे हैं। त्वचा रोगियों की आमद अचानक बढ़ने का कारण जलवायु परिवर्तन और वातावरण में प्रदूषण की मात्रा बढ़ना है।

उन्होंने बताया कि शरीर में जगह-जगह खुजली होना, लाल रंग के दाने होना, दाद होना इसका लक्षण है। इसके निवारण के लिए उन्होंने कहा कि हमेशा अपने आसपास साफ सफाई बनाये रखें और कपड़ों को धूप देते रहे। उन्होंने कहा कि ऐसे कोई भी लक्षण अगर किसी को भी हो, तो वह इसे नजरअंदाज न करें। अपने नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में जाकर चिकित्सक से परामर्श लें। ऋषिकेश में डीजल और पेट्रोल से चलने वाले सैकड़ों बूढ़े वाहन अब भी सड़कों पर दौड़ते हुए देखे जा सकते हैं। ऐसे वाहन नगर में प्रदूषण का बड़ा कारण बने हुए हैं। हैरानी की बात तो यह है कि ऐसे वाहनों को नियंत्रित करने के लिए परिवहन विभाग के पास कोई पॉलिसी ही नहीं है। हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की ओर से जारी रिपोर्ट पर सहायक संभागीय परिवहन अधिकारी डॉ. अनीता चमोला का कहना है कि अभी हमारे यहां अन्य राज्यों की तरह पुराने वाहनों को रिटायर करने की पॉलिसी नहीं है। केंद्र सरकार से कोई दिशा निर्देश जारी होते हैं तो अमल की कोशिश की जाएगी। नगर के बीचोंबीच गोविंदनगर में खाली पड़े भूखंड पर कूड़ा डंप होना भी प्रदूषण का बड़ा कारण है। यहां कूड़े में अक्सर लोग खुले में आग लगा देते हैं। इससे पर्यावरण को बहुत नुकसान तो होता ही है, साथ ही सांस संबंधी बीमारियां भी जन्म लेती है। फिलहाल इस मामले में कई बार चहलकदमी हुई मगर, यह मामला राजनीति की भेंट चढ़ गया। नरेंद्र नगर बाईपास मार्ग पर उत्तराखंड के चारों धामों को जोड़ने के लिए ऑल वेदर रोड का निर्माण हो रहा है। इसकी खुदाई से धूल के कण स्वास्थ्य में बुरा असर डाल रहे हैं। चिकित्सक प्रदूषण को अस्थमा, आंखों के रोग, त्वचा आदि की समस्याओं का कारण मान रहे हैं। हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने देश के 102 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों की सूची जारी की है। इनमें उत्तराखंड के दो नगर ऋषिकेश और काशीपुर भी शामिल हैं। मंत्रालय ने यहां की हवा को अगले पांच सालों के भीतर स्वच्छ बनाने के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम (एनसीएपी) में शामिल करने को मंजूरी दी है। मंत्रालय ने डब्ल्यूएचओ और अन्य एजेंसियों की 2011 से 2018 के बीच में आई कई रिपोर्ट को आधार बनाकर इन शहरों का चयन किया है। मंत्रालय ने आगाह किया है कि प्रदूषण के यही हालात रहे तो ऋषिकेश और काशीपुर में भी दिल्ली जैसी व्यवस्था लागू करनी पड़ेगी। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भवन निर्माण ढक कर हों, खुले में आग जलाने पर लगे रोक, पानी का छिड़काव, प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों की जांच और उन पर रोक, मशीनों से सड़कों की सफाई आदि उपायों पर अमल हो तो पर्यावरण को प्रदूषण से बचाया जा सकता है।