रुद्रप्रयाग नगर पालिका अध्यक्ष पद के लिए राष्ट्रीय पार्टियों के कार्यकर्ताओं में सिंबल लेने की होड़ सी मची रही। जहां अध्यक्ष पद के सिंबल लेने के लिए कार्यकर्ताओं ने डेरा देहरादून में ही जमा लिया था और जब तक सिंबल नहीं मिला तब तक लड़ाई लड़ते रहे और आखिरकार एक कार्यकर्ता को टिकट मिलने के बाद अन्य कार्यकर्ताओं को मायूस होकर लौटना पड़ा। मायूस कार्यकर्ताओं में कुछ ने चुनाव में ताल ठोकी हुई है तो कुछ कार्यकर्ता पार्टी प्रत्याशी के पक्ष में वोट की अपील कर रहे हैं। ऐसे में जनता के मन में यही सवाल बना हुआ है कि आखिर जब अध्यक्ष पद पर सिंबल की होड़ सी लगी रही तो सभासद पद पर क्यों कार्यकर्ता सिंबल लेने को तैयार नहीं हैं। जानकारों की माने तो सभासद के चुनाव में जहां वोटर अपने बीच के व्यक्ति को चुनकर भेजती है, वहीं सिंबल पर लड़ने वालों को हार का सामना करना पड़ता है। जिस कारण राष्ट्रीय पार्टियों के सिंबल से चुनाव लड़ने से कार्यकर्ता डरे रहे, लेकिन इनसे इतर कुछ कार्यकर्ता ऐसे भी हैं जो सिंबल से चुनाव लड़ रहे हैं। उन्हें यकीन है कि जनता उनकी छवि से प्रभावित होकर सिंबल पर वोट देगी, लेकिन यह तो भविष्य ही तय करेगा। रुद्रप्रयाग नगर पालिका के अन्तर्गत सात वार्ड हैं, जिनमें वार्ड एक तिलणी, दो अपर बाजार, तीन बेला-खुरड़, चार बेलणी, पांच सच्चिदानंद नगर, छः हितडांग व गुलाबराय शामिल हैं। पहले पालिका के भीतर नौ वार्ड थे, मगर अब 2011 की जनगणना के बाद वार्डों की संख्या घटाई गई है। सभासद पद पर भाजपा से पांच कार्यकर्ता सिंबल लेकर चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि कांग्रेस से एक कार्यकर्ता ने ही सिंबल से चुनाव लड़ने की हिम्मत दिखाई है। वार्ड एक से भाजपा से अमरा देवी को सिंबल दिया गया है, जबकि कांग्रेस कार्यकर्ती श्रीमती संगीता ने सिंबल नहीं लिया है। वे निर्दलीय ही चुनाव लड़ रही हैं। वार्ड दो से भाजपा ने किसी भी कार्यकर्ता को मैदान में नहीं उतारा है। कांग्रेस कार्यकर्ता मुबारिक हुसैन व अंकुर खन्ना वार्ड दो से चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में पार्टी के समक्ष किसी ने भी सिंबल से चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर नहीं की और दोनों ही कार्यकर्ता निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। वार्ड तीन से उमा मेवाल भाजपा से सभासद पद की प्रत्याशी हैं। कांग्रेस कार्यकर्ता विनीता देवी बिना सिंबल के चुनाव लड़ रही हैं। वार्ड चार से भाजपा युवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष सुरेन्द्र रावत सिंबल से चुनाव लड़ रहे हैं, वहीं कांग्रेस कार्यकर्ता पंकज बुटोला ही एकमात्र ऐसे कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने सिंबल से चुनाव लड़ने का फैसला लिया है। वार्ड पांच से भाजपा कार्यकर्ता दीपांशु भट्ट व लक्ष्मण बिष्ट चुनाव मैदान में हैं। दोनों में से किसी ने भी सिंबल नहीं लिया है। वहीं कांग्रेस युवा जिलाध्यक्ष संतोष रावत बिना सिंबल के चुनाव मैदान में उतरे हैं। वार्ड छः से अरविंद सेमवाल भाजपा के सिंबल से चुनाव मैदान में हैं तो कांग्रेस का कोई भी कार्यकर्ता वार्ड से नहीं उठा है। सात वार्ड से पार्वती देवी को भाजपा ने सिंबल देकर चुनाव मैदान में उतार है तो कांग्रेस की सतेश्वरी गोस्वामी बिना सिंबल के चुनाव मैदान में हैं। जानकारों की माने तो सभासद पद पर सिंबल से चुनाव लड़ने से कार्यकर्ताओं को हार का डर बना रहता है। ऐसे में वे सिंबल लेने से कतरा जाते हैं। इस बार भी राष्ट्रीय पार्टियों के कार्यकर्ताओं ने सभासद पद पर चुनाव लड़ने के लिए सिंबल लेने से मना किया है। कुछ ही कार्यकर्ता ऐसे हैं, जिन्हें विश्वास है कि वे सिंबल से चुनाव लड़कर जीत हासिल कर सकते हैं।
निकाय चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए राष्ट्रीय पार्टियों के कार्यकर्ताओं में सिंबल लेने की होड़ सी मची थी, मगर सभासद पद से चुनाव लड़ने वाले कार्यकर्ता सिंबल लेने से कतरा गये। जनता के मन में यही सवाल बना है कि आखिर सभासद पद के लिए कार्यकर्ताओं ने सिंबल क्यों नहीं लिया। वहीं जानकार इसके पीछे हार का कारण बता रहे हैं।