आज 25 जुलाई को अमर शहीद श्रीदेवसुमन जी का बलिदान दिवस मनाया जाता है आखिर क्यूं इस दिन और अमर शहीद श्रीेदेव सुमन जी को विशेष माना जाता है पढिये इस लेख में –
श्रीदेव सुमन का जन्म उत्तराखंड राज्य के टिहरी गढ़वाल के चंबा के जौल गांव में 25 मई, 1915 को हुआ था। उनके पिता का नाम पं.हरीराम बडोनी तथा माता का नाम तारा देवी था। पिता वैद्य का कार्य करते थे। जब सुमन 3 वर्ष के थे, तभी उनके पिता का देहांत हो गया। पिता के इस आकस्मिक देहवासन से परिवार का सारा भार माता तारा देवी पर आ गया।
श्रीदेव सुमन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के ही स्कूल से हासिल की और सन 1929 ई0 में टिहरी मिडिल स्कूल से हिन्दी की माध्यमिक शिक्षा हासिल की। उच्च माध्यमिक शिक्षा के लिए वह देहरादून चले गये। वहां उन्होने लगभग डेढ़ वर्ष तक सनातनधर्म स्कूल में अध्ययन किया। इसी दौरान वे सन् 1930 के नमकसत्याग्रह आन्दोलन में कूद पड़े ओर उन्हे 14 दिन जेल में रखा गया और फिर कम उम्र बालक समझ कर उन्हें छोड़ दिया गया। इसके बाद स्कूल अध्यापन के साथ-साथ पंजाब युनिवर्सिटी व हिन्दी साहित्य सम्मेलन की परीक्षाओं की तैयारी करते रहे। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय की रत्न भूषण और प्रभाकर तथा हिन्दी साहित्य सम्मेलन की विशारद् और साहित्य रत्न परीक्षाएं पास कर की और इस प्रकार हिन्दी साहित्य अध्ययन के अपने लक्ष्य को प्राप्त किया। तत्पश्चात दिल्ली में जाकर अध्ययन व अध्यापन कार्य के साथ-साथ सुमन साहित्य (उनके कविताओं का संग्रह) में भी व्यस्त रहते थे।
सुमन ने 17 जून 1937 को ‘‘सुमन सौरभ’’ नामक 32 पेजों का यह संग्रह प्रकाशित किया। वे हिन्दू, धर्मराज, राष्ट्रमत, कर्मभूमि जैसे हिन्दी व अंग्रेजी के पत्रों के सम्पादन से जुड़े रहे। वे ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ के भी सक्रिय कार्यकर्ता थे। उन्होंने गढ़ देश सेवा संघ, हिमालय सेवा संघ, हिमालय प्रांतीय देशी राज्य प्रजा परिषद, हिमालय राष्ट्रीय शिक्षा परिषद आदि संस्थाओं के स्थापना की।
1938 में विनय लक्ष्मी से विवाह के कुछ समय बाद ही श्रीनगर गढ़वाल में आयोजित एक सम्मेलन में नेहरू जी की उपस्थिति में उन्होंने बहुत प्रभावी भाषण दिया। इससे स्वतंत्रता सेनानियों के प्रिय बनने के साथ ही उनका नाम शासन की काली सूची में भी आ गया। 1939 में सामन्ती अत्याचारों के विरुद्ध ‘टिहरी राज्य प्रजा मंडल’ की स्थापना हुई और सुमन जी को इसका अध्यक्ष बनाया गया। इसके लिए वे वर्धा में गांधी जी से भी मिले। 1942 के ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में वे 15 दिन जेल में रहे। 21 फरवरी, 1944 को उन पर राजद्रोह का मुकदमा भी लगाया गया।
जीवन का अंतिम दिनों में
शासन ने बौखलाकर उन्हें काल कोठरी में डालकर भारी हथकड़ी व बेड़ियों में कस दिया। राजनीतिक बन्दी होने के बाद भी उन पर अमानवीय अत्याचार किये गये। उन्हें जानबूझ कर खराब खाना दिया जाता था। बार-बार कहने पर भी कोई सुनवाई न होती देख 3 मई, 1944 से उन्होंने आमरण अनशन प्रारम्भ कर दिया। शासन ने अनशन तुड़वाने का बहुत प्रयास कियाय पर वे अडिग रहे और 84 दिन बाद 25 जुलाई, 1944 को जेल में ही उन्होंने शरीर त्याग दिया। जेलकर्मियों ने रात में ही उनका शव एक कंबल में लपेट कर भागीरथी और भिलंगना नदी के संगम स्थल पर फेंक दिया।
सुमन जी के बलिदान का अर्घ्य पाकर टिहरी राज्य में आंदोलन और तेज हो गया। 1 अगस्त, 1949 को टिहरी राज्य का भारतीय गणराज्य में विलय हुआ। तब से प्रतिवर्ष 25 जुलाई को सुमन जी के स्मृति में ‘सुमन दिवस’ मनाया जाता है। अब पुराना टिहरी शहर, जेल और काल कोठरी तो बांध में डूब गयी है, लेकिन नई टिहरी की जेल में वह हथकड़ी व बेड़ियां सुरक्षित हैं। हजारों लोग वहां जाकर उनके दर्शन कर उस अमर बलिदानी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।