देहरादून, सरकारी आश्वासनों का झुनझुना बजाते-बजाते जब हाथ दुखने लगे, तब जाकर अहसास हुआ कि ये तो पुराने जुमले बाज हैं ,भावनाओं से खेलना-भड़काना इनकी पुरानी आदत है। खैर बेरोजगार हैं तो क्या हुआ ? अभी युवा है, खून में गर्मी और जोश बरक़रार है, साथ ही गलतियों से पार पाना भी आता है सो जुट गए, अगली लड़ाई की तैयारी में।
    सरकारी सिस्टम की बेरुखी के चलते “उत्तराखंड बेरोजगार संघ” ने आखिरकार सरकार के खिलाफ जंग का ऐलान कर ही दिया । अपनी जायज मांगों पर कोई भी उचित कार्यवाही न होती देख, उनके सब्र का पैमाना छलक ही गया।आखिर उनकी मांगे थी ही क्या ? आउटसोर्सिंग के माध्य्म से भर्ती बंद करने की जो कि नोकरी से ज्यादा सरकारी ठेकेदारी लगती है।
भर्ती प्रक्रिया का वार्षिक कलेंडर जारी करने की तो भाई! इसमें गलत क्या है ? वन विभाग में फारेस्ट गार्ड के  1218 पदों पर या ग्रुप सी के पदों पर शीघ्र भर्ती , प्रवक्ता के पदों पर साक्षाक्तार बंद करने जैसी सामान्य मांगे भी अगर सरकार पूरी नहीं कर पा रही है तो इसका होना ही बेकार है ।
परसों से सत्र शुरू हो रहा है और कल संघ ने विधान सभा की तरफ  महारैली की घोषणा तो कर दी है मगर , अब कल बेरोजगार-युवाओं की संख्या ही आगे के आंदोलन की दिशा और दशा तय करेगी ।