ये हैं श्री गब्बर सिंह राणा ! …राणाजी रुद्वप्रयाग जिले के कालीमठ गाँव के निवासी हैं। जैसे आप सभी जानते हैं कि श्रीकालीमठ माँ भगवती का सिद्धपीठ है। और यही कर्मभूमि है राणाजी की। प्रातःकाल जब पूजारी माँ भगवती की पूजा के लिये मंदिर प्रांगण में पहुंचते हैं. राणाजी भी एक छोला लेकर मंदिर में पहुंच जाते हैं। जिससे वो बलिप्रथा रोकने के लिये स्वलिखित पर्चा तीर्थयात्रियों को देतें हैं।
राणाजी बताते हैं कि कालीमठ में पहले बलिप्रथा का प्रचलन था। जिसमें भैंसें एवं बकरियों दोनों की बलि सामिल थी और मंदिर में चक्र बनाकर निरीह पशुओं को मारा जाता था। जिससे मंदिर प्रांगण में चारों तरफ खून फैला रहता था और मख्खियों द्बारा संक्रमित बिमारी फैलना का खतरा बना रहता था।जिससे राणाजी काफी क्षुब्ध थे। उन्होंने फिर इस प्रथा को रोकने का संकल्प लिया।
सर्वप्रथम विरोध उन्हें अपने ही घर से झेलना पड़ा। लोगों ने तर्क दिया कि देवी बलि लेती है। राणाजी का कहना था बलि देवी नहीं मनुष्य लेता हैं।अगर बलि के बकरे का माँस प्रसाद है तो भेसैं के माँस का क्यों नहीं। क्यों नहीं भैंस की सिरी और फट्टी पंडित ले जाते हैं। इसप्रकार उन्होंने अपने उद्देश्य की शुरुआत की । बाद में बत्रीबाबा जैसें महापुरुषों के सहयोग से बलिप्रथा कालीमठ में बंद हुई।
बाद में राणाजी इस जनजागरण के कार्य के लिये अन्य धार्मिक स्थलों पर भी गये। जिसमें मुन्डेश्वर, बुंखाल एवं कांडा सामिल है. और बुंखाल में तो किसी कट्टरपंथी ने उनका पैर भी तोड़ दिया। परन्तु वे अपने मिशन से  पीछे नहीं हटे। आज भी उसी तत्परता से लगे हुऐ हैं।
ऐसे पशुप्रेमी एवं समाजसुधारक राणाजी को शुभकामनाएं देता हूँ और माँ से प्रार्थना करता हूँ कि स्वस्थ , संपन्न एवं प्रसन्न रहें।