साभार : चारु तिवारी

हम उस दिन भवाली में थे। किसी काम के लिये स्टेट बैक में रुक गये थे। अगस्त का महीना था। किसी कार्यक्रम के सिलसिले में अल्मोड़ा जा रहे थे। प्रभात ध्यानी और पीसी तिवारी जी भी साथ थे। मेरे मोबाइल पर एक मैसेज आता है- ‘वकील पर ढाई लाख का जुर्माना। पुलिस की दबिश से बचने गायब हुआ करगेती।’ एक बार तो मैं चौक गया। बहुत गुस्सा आया भाई चन्द्रशेखर करगेती पर। पहला वाक्य यही निकला- ‘यार इसे भी चैन नहीं, फिर क्या कर दिया इसने। बताता भी तो नहीं।’ हम लोग बहुत परेशान हुये। कई जगह फोन किया। हल्द्वानी में दयाल और रुद्रपुर में हेम को फोन किया। उनके घर जाने को कहा। फिर वापसी में मैं भी घर गया। उनकी श्रीमती जी ने बताया कि पुलिस दो बार छापा मार चुकी है। चन्द्रशेखर पर आरोप था कि उन्होंने न्यायालय में गलत शपथ पत्र दिया है।

उन्होंने समाज कल्याण विभाग के एक अधिकारी “गीताराम नौटियाल” के बारे में गलत जानकारी दी है। करगेती पर इस अधिकारी ने एससी-एसटी एक्ट के तहत मुकदमा ठोका था। 2016 में इस पर जमानत हो गई थी केस की सुनवाई चल रही थी। अब उनकी गिरफ्तारी और न मिलने पर कुर्की का आदेश आ गया था। घर में बच्चे परेशान, बाहर दोस्त परेशान। करगेती ने दिल्ली जाकर सुप्रीम कोर्ट से इस मामले को रुकवाया। कुछ दिन बाद उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने राहत दे दी। कई मीडिया वालों ने इसे बहुत ही निगेटिव तरीके से लिखा। सोशल मीडिया पर भी कई सारी बातें इस तरह पेश की गई जैसे सारी फसाद की जड़ यही चन्द्रशेखर करगेती हो। समाज कल्याण विभाग में कार्यरत अधिकारी, मंत्री और यहां तक कि मुख्यमंत्री सरपरस्ती में चल रहे विभाग के घोटालों को वे पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर उठा रहे हैं। खैर, एक लंबा संघर्ष था चन्द्रशेखर का। इसमें उनकी सफलता और दोषियों का अभी जेल जाना शुरू ही हुआ है। घोटाले की परत-दर परत लोगों के सामने आ रही है। इस पूरे मामले में जो किरदार हैं अब एक-एक कर सामने आ रहे हैं। अभी और गहनता से यह जांच आगे बढ़ेगी तो वह बड़ी मछलियां भी फसेंगी, जो इस महाघोटाले में शामिल रही हैं, इसे शह देती रही हैं।

समाज कल्याण के करोड़ों के घोटाले पर चन्द्रशेखर करगेती के संघर्ष की गाथा अब समाचार और सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों के बीच है। इस पर अगर बात शुरू करूंगा तो समाप्त नहीं होगी। संक्षिप्त में इतना है कि एक लंबे डराने, धमकाने, प्रलोभन, राजनीतिक दबाव, साथियों द्वारा चन्द्रशेखर के ‘सिरफिरे’ होने की घोषणा के साथ एक ऐसा घोटाला सामने आया जो सरकारों की नीयत और उनके चरित्र को तार-तार करने को काफी है। मैं इस केस को बहुत नजदीक से जानता हूं। करगेती की जीवटता को भी। करगेती के साथ समय-समय पर इसे साझा भी करता रहा हूं। पिछले सालों से जब भी फोन पर बात होती इसी विषय के पहलुओं पर। करगेती हर दिन की हर रिपोर्ट और उसके आने वाले नतीजों पर बात करते। हालांकि मैंने उन्हें इस मामले में कभी हतोत्साहित नहीं किया, लेकिन कई बार लगता था कि अपना सबकुछ दांव पर लगाकर यह व्यक्ति ऐसी लड़ाई लड़ रहा है, जिसका शायद कोई अंत नहीं। जहां इतने बड़े मगरमच्छ और सत्ता में इतने बेशर्म लोग बैठे हों वहां पार पाना आसान नहीं। लेकिन यह सब बातें गलत साबित हुई।

करगेती की मुहिम, रवीन्द्र जुगरान की याचिका, एसआईटी प्रमुख मंजुनाथन की सक्रियता और हमारे दो पत्रकार साथी राकेश खंडूडी और संजय त्रिपाठी की लगातार चौकसी ने एक ऐसे लूट का पर्दाफास किया जो वर्षों से उन कमजोर वर्ग के लोगों के हकों पर डाका डाल रहे थे जिन पर उनकी पूरी राजनीति टिकी है। उत्तराखंड में समाज कल्याण का यह घोटाला सिर्फ कुछ अधिकारियों की करतूतों को लोगों के सामने लाने वाला नहीं है, बल्कि इससे यह भी साबित होता है कि हम जिन लोगों को अपना रहनुमा चुनते हैं वे भ्रष्टाचार में कितने दलदल तक धंसे हैं। जो राजनीतिक पार्टियां आपने को जनता का सबसे बड़ा हितैषी मानती हैं। जो राष्ट्रभक्ति के नारों के साथ सत्ता में जाती हैं, या जो आजादी के बाद अपने को इस देश की प्रगति का सबसे बड़ा ठेकेदार मानती है, उनकी सरपरस्ती में यह महाघोटाला हुआ। एक दिन, एक समय में नहीं, वर्षों से हो रहा था। इन अठारह सालों के उत्तराखंड में अलग-अलग पार्टियों की सरकारें आयीं।

उसमें हमने बड़े-बडे ‘विकास पुरुषों’, ‘गधेरुओं, ‘ईमानदारी के अवतारों’, ‘नोवेल की मांग’ करने वालों, ‘हाईकोर्ट के जजों’, ‘जमीन से जुड़ेे’ और अब ‘घोर राष्ट्रभतों’ को देखा। किसी माई के लाल की नजर इस महाघोटाले में नहीं गई। जब भी बात उठी ये सब उन्हीं भ्रष्ट अधिकारियों के साथ खड़े मिले

ऐसा नहीं है कि करगेती बहुत बड़े आदमी हैं। बहुत पैसे वाले हैं। पहुंच वाले हैं। उनके पास एक जीवटता है लड़ने की। सच के साथ खड़े होने की। उनके पास जो कुछ है वह भी इस पर लग गया। जितना हम लोग जानते हैं वह यह कि वह अपनी वकालत से ही अपना घर-परिवार चलाते हैं। एक सामाजिक कार्यकर्ता और आरटीआई एक्टिविस्ट के रूप में उन्होंने अलग पहचान बनाई है। सत्ता प्रतिष्ठानों से टकराकर उन्होंने पिछले कुछ सालों में बहुत महत्वपूर्ण मुठभेड की है। हर बदलाव के दौर में वह आंदोलन के साथ खड़े रहते हैं। ऐसे समय में जब प्रतिकार की धार कुंद हो रही है। लोगों ने अपने-अपने क्षेत्रों में आगे बढ़ने के शाॅर्टकट रास्तें अपना लिये हों, राजनीतिक शक्तियां युवाओं को भ्रमित नारों के साथ जनविरोधी धारा के साथ खड़ा होने का कुचक्र रच रही हों ऐसे समय में किसी एक मुद्दे को लेकर टकाराना कोई आसान काम नहीं है। पहाड़ में ही इन अठारह सालों में जो हालात राजनीतिक दलों ने बनाई है उस पर प्रतिरोध कर रहे लोगों को जिस तरह से चिन्हित किया जा रहा है, उससे लग रहा है कि जैसे अपने हकों के लिये बोलने वाले ही विकास विरोधी हैं। राज्य में आये नये भूमि कानून, आने वाला वन कानून-1927 का संशोधन, लगातार बंद होते सरकारी स्कूल, बंद होते पाॅलीटैक्नीक, पीपी मोड पर दिये जा रहे अस्पताल, विनाशकारी पंचेश्वर बांध, पहाड़ चढ़ता अपराध, तेजी से बिक रही जमीनें, घर-घर पहुंचाई जा रही शराब, बढ़ती बेरोजगारी, स्थाई राजधानी गैरसैंण जैसे ज्वलंत सवालों से जनता का ध्यान हटाने की जितनी साजिशें हो रही हैं, ऐसे समय में यदि समाज कल्याण जैसे घोटाले का पर्दाफास होता है तो निश्चित रूप से यह सूखे रेगिस्तान में किसी शीतल हवा के झोंके से कम नहीं। चन्द्रशेखर करगेती की जीवटता को सलाम! भले ही आगे रास्ता लंबा है और लड़ाइयां कठिन है , लेकिन फिर भी हम “लड़ेगे और जीतेंगे”

#छात्रवृति_घोटाला

इस घोटाले पर वरिष्ठ पत्रकार योगेश भट्ट की रिपोर्ट पदने के लिए यहाँ क्लिक करें ।