पिछले विधानसभा चुनाव के वक्त से जिस ‘डबल इंजन’ सरकार का ‘ढोल’ पीटा जा रहा है, त्रिवेंद्र सरकार के तीसरे बजट में उसकी ‘पोल’ खुल चुकी है । आज उत्तराखंड में ‘डबल इंजन’ की सरकार ‘पाई-पाई’ के लिए मोहताज है ।
सरकार भारी भरकम बजट पेश कर तस्वीर को कितना ही रंगीन दिखाने की कोशिश क्यों न करे, लेकिन हकीकत छिपाये नहीं छिप पा रही है । सरकार के बजट की किताब में दर्ज रंगीन आंकड़े ‘स्याह’ हकीकत भी बयां कर रहे हैं ।सरकार बजट का आकार बड़ा जरूर रखती है मगर खर्च के लिए उतनी रकम जुटा नहीं पाती । राज्य को नयी कर प्रणाली जीएसटी से सालाना सैकड़ों करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है, तो दूसरी ओर केंद्रीय करों में भी राज्य को अपेक्षित हिस्सेदारी नहीं मिल रही है । राज्य की अपनी आय के साधन संसाधन भी कमजोर पड़ते जा रहे हैं और केंद्र सरकार भी सहायता और अनुदान में ‘तंगदिल’ बनी हुई है ।
बीते दो साल के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो सरकार अपने संसाधनों और केंद्र की मदद से बामुश्किल 30 हजार करोड़ रुपये भी नहीं जुटा पा रही है । हालात बेहद नाजुक हैं । सरकार जैसे-तैसे कर्ज के सहारे राजकाज चला रही है । इस पर भी सरकार ने सबकुछ जानते हुए आश्चर्यजनक रूप से इस बार 48 हजार करोड़ रुपये से ऊपर का सरप्लस बजट पेश किया है । केंद्र के हाल अब छिपे नहीं हैं और सरकार के पास कोई दूसरी बैसाखी भी नहीं है । ऐसे में सरकार इतने बड़े बजट से कैसे पार पाएगी, यह एक यक्ष प्रश्न बना हुआ है ।
दो साल पहले बड़ा फक्र किया जा रहा था कि राज्य में ‘डबल इंजन’ की सरकार है । डबल इंजन के नाम पर चुनाव भी लड़ा गया और बंपर जीत भी हासिल हुई । हाल ही में सरकार ने सदन में बजट का जो दस्तावेज पेश किया है, उसमें साफ है कि ‘डबल इंजन’ ‘फेल’ साबित हुआ है । डबल इंजन के ‘ढोल’ की यह ‘पोल’ वर्ष 2017-18 के वास्तविक आंकड़ों में खुल चुकी है । याद कीजिये कितनी उम्मीदें थीं केंद्र से, जब त्रिवेंद सरकार ने तकरीबन 40 हजार करोड़ रुपये का अपना पहला सालाना बजट पेश किया था ।
त्रिवेंद्र सरकार को मालूम था कि राज्य के संसाधन बेहद सीमित हैं, लेकिन उसे केंद्र पर पूरा भरोसा था । सरकार को उम्मीद थी कि 40 हजार करोड़ रुपये में से लगभग 32 हजार करोड़ रुपया राजस्व से जुट जाएगा । राजस्व से मतलब राज्य के अपने कर राजस्व, कर से अलग राजस्व, केंद्रीय करों में राज्य के हिस्से और केंद्रीय सहायता एवं अनुदान से है । बाकी आठ हजार करोड़ रुपये की व्यवस्था कर्ज के जरिये हासिल किये जाने की योजना थी ।
त्रिवेंद्र सरकार का यह अनुमान उस वक्त गलत साबित हुआ, अनुमान के मुताबिक राजस्व नहीं जुटा । अधिकारिक आंकड़े हैं कि लगभग 32 हजार करोड़ रुपये के अनुमान के सापेक्ष राज्य सरकार की राजस्व प्राप्तियां सिर्फ 27 हजार करोड़ रुपये के करीब की रहीं । यह नुकसान एक ओर जीएसटी के कारण तो दूसरी ओर केंद्र सरकार के हाथ खड़े करने से हुआ ।
राज्य सरकार खुद के राजस्व अनुमान में भी पच्चीस फीसदी अधिक पीछे रही । अभी तक सरकार ने यह भी सार्वजनिक नहीं किया था कि जीएसटी से राज्य को कितना नुकसान हुआ है । बजट दस्तावेज में यह भी खुलासा हो गया कि जीएसटी से उत्तराखंड को बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है । आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2017-18 में राज्य को तीन हजार करोड़ रुपये के खुद के राजस्व का नुकसान अकेले जीएसटी से ही हुआ ।
आश्चर्यजनक तो यह रहा कि केंद्र ने इस नुकसान की पर्याप्त भरपाई भी नहीं की । उधर राज्य को दूसरा झटका तब लगा जब केंद्रीय सहायता और अनुदान में तो उम्मीद से कम बजट मिला और केंद्रीय करों में हिस्सेदारी भी अनुमान से कम मिली । गौर करने लायक यह है कि राज्य को कुल मिलाकर तकरीबन पांच हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ, लेकिन सरकार को इसका कोई मलाल नहीं हुआ । सरकार खर्च चलाने के लिए चुपचाप कर्ज पर कर्ज लेती गयी । अनुमानित कर्ज 8 हजार करोड़ रुपये से बढ़कर हकीकत में 13 हजार करोड़ रुपये के पार जा पहुंचा । इस साल सरकार ने 13342 करोड़ 62 लाख रुपये का बड़ा कर्ज लिया। कर्ज लेने में ‘हाथ’ खोल चुकी सरकार ने खुलकर खर्च करते हुए ‘कर्ज लेकर घी पीने’ की कहावत को चरितार्थ किया ।
अनुमानित आंकड़े के पार जाकर सरकार ने उस साल 43 हजार करोड़ रुपये के आसपास खर्च किया । सरकारी खजाने से बड़े-बड़े जलसे किये गए, विदेश यात्राएं हुई, मेले-रेले आयोजित हुए, विधायक निधि बढ़ा दी गयी, मंत्रियों से लेकर संतरियों तक की सुविधाएं और वेतन भत्ते बढ़ाए गए । इतना ही नहीं, बड़े नेताओं की आवाभगत और प्रचार पर भी सरकारी खजाने से मोटी रकम लुटायी गयी ।चौंकाने वाली बात यह है कि त्रिवेंद्र सरकार ने अपने पहले बजट से कोई सबक नहीं लिया ।
एक कड़वे अनुभव के बावजूद राज्य सरकार ने वर्ष 2018-19 के लिए 45 हजार 500 करोड़ रुपये से अधिक का अनुमानित बजट तैयार किया । बजट अनुमान के मुताबिक लगभग 35 हजार करोड़ रुपये राजस्व से जुटाए जाने थे तो बाकी 10 हजार करोड़ रुपये कर्ज से जुटाने की योजना बनायी गयी । अभी वास्तविक आंकड़े नहीं आए हैं, मगर यह स्पष्ट हो चुका है कि इस साल भी केंद्र से उत्तराखंड को अपेक्षित मदद नहीं मिल पायी है । ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि सरकार जैसा अनुमान लेकर चल रही थी उस तरह से न केंद्रीय सहायता प्राप्त हुई और न ही केंद्रीय करों में हिस्सेदारी मिली है। राज्य की अपनी आमदनी में भी कोई खास इजाफा नहीं हो पाया । अभी तक जो धुंधली तस्वीर सामने आ रही है उसके हिसाब से तो सरकार को अपेक्षित कर्ज भी नहीं मिल पाया है ।
जो सरकार बीते साल लगभग साढ़े तेरह हजार करोड़ रुपये का कर्ज उठा चुकी थी, वह इस साल कर्ज से साढ़े आठ हजार करोड़ रुपये भी नहीं जुटा पायी ।जो आंकड़े अभी तक आए हैं उनके मुताबिक प्राप्तियां कम होने के चलते इस बार खर्च के आंकड़ों में गिरावट दर्ज हुई है । प्राथमिक आंकड़ों के मुताबिक अनुमानित बजट से लगभग दो हजार करोड़ रुपया कम खर्च हुआ है, जबकि संभावना यह है कि यह आंकड़ा 43 हजार 460 करोड़ रुपये से भी नीचे जाएगा । सरकार इसे मितव्ययता कह सकती है जबकि यह मितव्ययता नहीं मजबूरी है । हाल यह है कि ठेकेदारों का भुगतान नहीं हो रहा है, विकास व निर्माण कार्य ठप हैं, तमाम योजनाओं में बजट नहीं है, 108 जैसी आपातकालीन सेवा आए दिन बंद हो जा रही है, विभिन्न परियोजनाओं में काम करने वालों को महीनों से वेतन के लाले पड़े हैं ।
लगता है सरकार को या तो हालात की गंभीरता का अंदाजा नहीं है या उसे इसकी कोई फिक्र ही नहीं है । सरकार आंकड़ों की बाजीगरी कर इसकी असलियत छिपाने की कोशिश जरूर करती है लेकिन सच्चाई यह है कि जब जब आमदनी और खर्च के बीच का फासला बढ़ता है तो उसकी कीमत आम आदमी और उसके हिस्से के विकास को ही चुकानी होती है । वैसे भी जब सौ रुपए में 56 रुपए वेतन भत्तों और ब्याज जैसे अनिवार्य खर्च के लिए हों तो सरकार के पास कटौती के विकल्प सीमित रह जाते हैं ।
चलिये अब एक नजर हालिया बजट पर। सरकार ने इस बार 48 हजार 663 करोड़ 90 लाख रुपये का बजट तैयार किया है । यह बजट दो साल पहले के वास्तविक खर्च से लगभग 6 हजार करोड़ रुपए अधिक है । सरकार का अनुमान है कि राजस्व प्राप्ति यानी राज्य के अपने राजस्व और केंद्र से मिलने वाली सहायता से लगभग 39 हजार करोड़ रुपया जुट जाएगा । बाकी लगभग साढ़े नौ हजार करोड़ रुपया इस बार भी कर्ज उठाकर काम चला लिया जाएगा ।
सरकार के आंकड़ों से बड़ा विरोधाभास है । दो साल पहले राज्य की राजस्व से आमदनी जब मात्र 27 हजार करोड़ रुपये थी तो अचानक दो साल में 12 हजार करोड़ रुपये राजस्व कैसे बढ़ सकता है ? राज्य ने न तो अपने कोई संसाधन बढ़ाए हैं, न कोई नया स्रोत ही खुला है । जाहिर है सरकार केंद्र से जरूरत से ज्यादा उम्मीद पाल रही है । बहरहाल जिस सरप्लस बजट पर सरकार खुद को शाबासी दे रही है उसकी हकीकत भी सामने आ जाएगी, बस दो साल इंतजार करना होगा ।
योगेश भट वरिष्ठ पत्रकार ,उत्तराखंड