वरिष्ठ़ कवि सुधीर सक्सेना की लम्बी कविता अयोध्या चौदह खण्डों में विभक्त है । अधिक लम्बी नही है। मगर अपने अर्थगाम्भीर्य व कसी हुइ बुनावट के कारण बेहद पठ़नीय है ।अयोध्या हिन्दी कविता का एक जरूरी मुद्दा रहा है इस मुद्दे ने राजनीति , समाज , कविता , कानून और इतिहास सबको प्रभावित किया है । आजादी के पूर्व अयोध्या हिन्दु मुस्लिम सम्बन्धों पर गर्माहटों का कारण रहा तो आजादी के बाद तमाम राजनैतिक दल व नेताओं ने इस मुद्दे को अपने कैरियर से जोड़ा । कभी ताला लगा कभी ताला खुला कभी दंगा हुआ कभी शान्ति मार्च हुए कभी कर्फ्यू लगा तो कभी गोली चली ।कहने का आशय है कि अयोध्या कभी शान्त नही है वह घूमकेतु की तरह भारतीय राजनीति में चमकती रही है । 1992 के बाद तो भारतीय राजनीति में अयोध्या की केन्द्रिकता और बढ़ी और अयोध्या राजनैतिक हार जीत तथा जय पराजय का कारण बन गयी । अयोध्या को लेकर भारतीय संविधान की धाराओं और शब्दावलियों का पुनर्पाठ किया गया । अयोध्या के नाम पर संगठन बने और अयोध्या के नाम पर हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट और राष्टपति के दरवाजे तक तमाम विवादों के दरबाजे खुले और अभी तक खुले हैंं ।

हिन्दी कविता के इतिहास में भी अयोध्या काफ़ी लोकप्रिय रही । नरेश सक्सेना, विद्यानिवास मिश्रा , वीरेन डंगवाल , निर्मल वर्मा हरीशचन्द्र पाण्डेय तक जाने पहचाने लेखकों और कवियों ने अयोध्या पर अपना पक्ष रखा । लेकिन इस मुद्दे पर जो पहचान अनिल कुमार सिंह की कविता अयोध्या को मिली वह किसी को नही मिली । अनिल की इस कविता पर उन्हे भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार भी मिला । अनिल ने इस कविता में अयोध्या के इतिहास उसकी सांस्कृतिक पहचान तथा वहाँ की साझा संस्कृति पर बड़ी गम्भीरता के साथ बात की है । अयोध्या मेंं हिन्दू मुस्लिम एकता कभी नष्ट नही हुई दोनो ने अपने नगर की शान्तिप्रियता को आपसी सामन्जस्य द्वारा हमेशा बनाये रखा है ।

अयोध्या राम की नगरी है और राम की स्वीकृति इस देश में सभी धर्मों और जातियों में रही । सभी धर्मों के लोग राम को अपने अपने तरीके से मानते रहे हैं । राम की नगरी होने के कारण स्वाभाविक है यह स्थल आस्था और विश्वास और पर्यटन का केन्द्र रहेगा ।यही हुआ अयोध्या मे वहाँ के लोगो का मुख्य आजीविका आधार पर्यटन था। राम से जुडी वस्तुओं और उनके आसबाबों का निर्माण व बिक्रय था । इस व्यवसाय में हिन्दू मुस्लिम सभी की आजीविका चलती थी । लेकिन जब से अयोध्या मुद्दा बना वहाँ के लोगों का व्यवसाय नष्ट हो गया । अयोध्या अशान्त हो गयी अयोध्या की यह उथल पुथल देश के लिए घातक रही हमारा मुल्क और समाज दो वर्गों में विभक्त हुआ साझापन और गंगाजमुनी तहजीब की बात बीते दिन की बात हो गयी इस परिवर्तन ने कवियोंं और लेखकों को प्रभावित किया । कविता मेंं अयोध्या का जिक्र जब भी हुआ है साझा संस्कृति और अयोध्या के अतीत के गौरव के साथ हुआ । सभी कवियों ने राजनीति के उन तत्वों की आलोचना की जो अयोध्या मेंं अशान्ति के कारण थे । यही काम अनिल कुमार सिंह ने किया यही हरीशचन्द पाण्डेय ने अपनी अयोध्या कविता में किया है यही काम वरिष्ठ कथाकार दूधनाथ सिंह ने अपनी उपन्यास आखिरी कलाम में किया है । आखिरी कलाम अयोध्या के जीवन व वहाँ के लोगों की दिनचर्या पर तथा समाज में फैलती सडांध के कारणों पर उस दौर का शानदार उपन्यास है । दूधनाथ सिंह की उपन्यास आखिरी कलाम और अनिल कुमार सिंह की कविता अयोध्या के बाद मैं इस विषय पर सबसे सशक्त रचना सुधीर सक्सेना की लम्बी कविता अयोध्या को मानता हूँ ।

सुधीर सक्सेना एक तरफ़ दूधनाथ सिंह की तरह अयोध्या की संस्कृतिक तफ़सीलों और इतिहास को अपना तर्क बनाते हैं दूसरी तरफ़ अनिल कुमार की तरह अयोध्या की साझा संस्कृति और जीवनधर्मी बुनियाद को अपनी कविता का स्थापत्य बनाते है। अनिल कुमार सिंह की कविता बयानों में है वह अयोध्या को साम्प्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता के आइने में परखती है लेकिन सुधीर सक्सेना की इस कविता में अयोध्या का जीवन है वहाँ का स्थापत्य है वहाँ की प्रकृति है और वहाँ का इतिहास है और वहाँ का भूगोल है । अयोध्या अपनी समूची अस्मिता और पहचान के साथ है उसकी पहचान का कोई भी बिन्दु छूटा नही है अस्तु यह कह सकते हैं इस कविता का नायकत्व अयोध्या है ।सुधीर चौदह खण्डों की इस कविता में कहीं भी साम्प्रदायिकता का जिक्र नही करते है न कहीं राजनैतिक दलबन्दी का बयान देते हैं वह आदि से अन्त तक अयोध्या के व्यक्तित्व पर केन्द्रित रहते हैंं और व्यक्तित्व के निष्कर्षों द्वारा ही समय की कटुताओं, विपर्ययों व संघर्षों का संकेतन करते हैं ।इस मायने में यह कविता अयोध्या पर लिखी गयी अब तक की सबसे श्रेष्ठ कविता है । जो अयोध्या के बहाने हमारी सांस्कृतिक और एतिहासिक बुनियाद की हकीकत बयाँ करती है और इस संस्कृति पर आसन्न खतरों से आगाह करती हैं।

सुधीर सक्सेना की अयोध्या मानवीय कृति नही है मगर मानव की प्रतिकृति जरूर है । अयोध्या एक स्थल है और स्थल पर कवि ने व्यक्तित्व का आरोपण किया है । इस कविता को पढ़ते वक्त अयोध्या मनुष्य की विशाल आशाओं आकांक्षाओं सपनों और भावों का विस्तीर्ण प्रकाश पुंज नजर आती है जहाँ अयोध्या की प्रकृति मनोहारी सौन्दर्य तथा मानवीयता क्षण प्रतिक्षण पाठक आत्मसात करता चला जाता है । सुख दुख, हास रुदन, भय आश्चर्य, जिज्ञासा और उदासीनता को कविता के हर हर्फ़ में महसूसता है। सुधीर सक्सेना की यह खास शैली है कि वह कविता के भीतर परस्पर विरोधी भावभूमि को सफलतापूर्वक रखने मे पारंगत हैं । विरोधी भावभूमि को एकसाथ रखना एक रचनात्मक जोखिम है लेकिन सुधीर इस जोखिम को बार बार उठाते हैं कविता के आरम्भ में ही सरयू नदी की महिमा का गान करते हुए फूलों के संग उदासी की चर्चा एक ऐसा ही रचनात्मक जोखिम है जो मनोहारी नयनाभिराम नदी के सौन्दर्य में भी समय की विसंगति का संकेत कर देते हैं —

सरयू में फूलों के साथ साथ
लहरों पर उतराती है उदासी

फूल नदी का सौन्दर्य है मगर उदासी का होना इस सौन्दर्य की भीतरी तहों में छिपे दुख और पीड़ा का बोध है । सरोकारों की अत्यांतिकता किसी भी कवि को केवल सौन्दर्य पर नही केन्द्रित करती वह सौन्दर्य का हेतु भी अपने सरोकारोंं के अनुरुप तय करता है । जैसे अयोध्या में मन्दिरों की अधिकता है अयोध्या मे प्राचीन स्थापत्य के हजारों मन्दिर है और उनकी अपनी परम्पराएँ हैं जिनका निर्वहन वहाँ की जनता कर रही है । अयोध्या के रहवासियों की परम्पराएँ उनके घरों को भी मन्दिर बना रही है अयोध्या में घर और मन्दिर को एकमेव कर देना इस बात का साक्ष्य है कि अयोध्या अपने वास्तविक स्वरूप में एक घर है और यहाँ के निवासियों में परस्पर पारिवारिक आत्मीयता है । घर और मन्दिर की एकरूपता पर वह लिखते हैंं —

अयोध्या में विभाजन नही है
घरों और मन्दिरों के बीच
सदियों से अयोध्या में यूँ एकमेक हैं । घर
और मन्दिर

अयोध्या का वह पक्ष जो हमारी भारतीयता की पहचान है तथा इस मुल्क की परम्परा है और हमारी समाजिक राजनैतिक शुचिता व गौरव का कारण है कवि ने बेहद भावुक और चिन्तनपूर्ण मुद्रा में उस पहचान से रूबरू कराते हैं कभी अयोध्या की नदी तो कभी वहाँ का इतिहास तो कभी मन्दिर तो कभी राम और रामायण के प्रसंगों को भी कविता में तर्क बनाकर प्रस्तुत करते है ।अयोध्या का आशय है वह जमीन जहाँ कभी युद्ध नही हुआ जिस जमीन मे युद्ध नही होता वही अयोध्या है। राम ने अयोध्या में कभी युद्ध नही किया ।उन्होने अयोध्या मे अपने धनुष का संधान कभी नही किया है । अर्थात जिस जमीन को राम की महिमा से जोड़कर राजनीति की जा रही है तमाम हिंसक गतिविधियाँ की जा रही हैं जिस राम का नाम लेकर जनता में भय और डर का माहौल बनाया जा रहा है उस राम ने भी कभी अयोध्या में अपनी शक्ति का प्रयोग नही किया उसने भी अयोध्या को शान्ति की नगरी बनाये रखा है ।

अयोध्या में राम जी ने कभी चाप नही चढ़ाया
नौबत नही आई कभी शर संधान की अयोध्या में

मगर आज अयोध्या राम की अयोध्या नही रही वह शान्ति और समृद्धि और आस्थाओं की नगरी नही रही अब वहाँ हर रोज शर संधान होते हैं । शिकार होते हैं । यह कवि की मूल चिन्ता है । सुधीर सक्सेना की इस कविता में कथात्मक शिल्प बेजोड़ है मै अयोध्या की बुनावट को कथात्मक शिल्प ही कहूँगा वह इसलिए कि यह प्रविधि कहानियोंं और उपन्यासों में ही पाई जाती है । एक अयोध्या वह है जिसे कवि दिखाना चाहता है वह अतीत की अयोध्या तथा अयोध्या का अतीत लेकर चलता है तथा दूसरी तरफ़ वह अयोध्या जो आज है वह अयोध्या भी सांकेतिक रूप से चलती रहती है । अतीत की अयोध्या वर्तमान की अयोध्या के बीच का द्वन्द पूरी कविता में साथ साथ चलता है । यही कारण है कवि परस्पर विरोधी भावों का समन्जस्य भी सफलता पूर्वक कर लेता है । यह प्रविधि लम्बी कविताओं में नही होती है । मगर सुधीर सक्सेना सांस्कृतिक चेतना और वैश्विकताबोध को एकमात्र कवि हैंं अपनी इसी विशेषता के कारण वह अपनी समस्त लम्बी कविताओंं में इस प्रविधि का प्रयोग किया है । यही प्रयोग उन्हे अपने समकालीनों से अलग कतार में खड़ा कर देता है ।

अयोध्या पर कविता हो और हिन्दू मुस्लिम सम्बन्धों पर बात न हो यह नही हो सकता है अयोध्या इन दोनो के बीच विवाद का कारण रही है । कवि का कहना है कि अयोध्या भले ही बाकी मुल्क में विवाद का कारण हो मगर अयोध्या में विवाद नही है । राम के नाम पर हिन्दू और मुस्लिम दोनो की आजीविका चलती है राम दोनो की आस्था का प्रतीक हैं । अयोध्या का एक पक्ष यह भी है । जब अयोध्या को लेकर विश्व में साम्प्रदायिक युद्ध , धर्मयुद्ध का संकट मडरा रहा है तब अयोध्या में …

अयोध्या में फूल खिलते हैं
माला गूँथते हैं अब्दुल्ला और खुदाबख़्श
अयोध्या में विचरते हैं खडाऊँ
खडाऊँ बनाते हैं फ़जलू और रफ़ीक

अर्थात जो फूलों की माला मन्दिरों मे राम को चढ़ाई जाती है वह माला अब्दुल्ला और खुदाबख़्श बनाते हैं। अयोध्या मे यती और साधू रहते हैंं साधू सन्यासी खडाऊ पहनते हैं वह खडाऊँ रफीक और फजलू बनाते हैं । अर्थात अयोध्या मे सभी राम के नाम पर आजीविका चलाते हैं । सब राम के हैं और सभी मिलकर अयोध्या का चरित्र रचते हैं । यह वास्तविक अयोध्या है । आज इसी अयोध्या की जरूरत है ।लेकिन इस देश के महात्वाकांक्षी और सत्ता लोलुप लोगोंं ने अयोध्या को नष्ट कर दिया है अयोध्या की पहचान ही नही नष्ट हुई बल्कि यहाँ की जमीनी मौलिकता भी नष्ट की जा रही है । राममन्दिर के नाम पर अयोध्या को बाहरी पत्थरों से पाट दिया गया है इन पत्थरों का अयोध्या के इतिहास और भूगोल और समाजशास्त्र से कुछ भी लेना देना नही है ।कवि ने इस कविता मे पत्थरों की कथा लिखकर हमारे समाज की फिकरापरस्त ताकतों को ही अयोध्या की संस्कृति को खत्म करने का आरोप लगाया है । कविता का यह खण्ड अयोध्या कविता को ऐतिहासिक सांस्कृतिक तर्क का शानदार उदाहरण बना देता है। कविता का यही खण्ड सिद्ध कर देता है कि अयोध्या पर भले ही सैकडों कवितायें हैं मगर सांस्कृतिक आत्मीयता की यह अकेली कविता है । जो अयोध्या की असलियत बताती है और असलियत को बचाती भी है ।

पत्थरों के ढेर हैं अयोध्या में
ढेर सारे तराशे हुए पत्थरों के ढेर
दिल का तो सवाल ही नही
इतिहास भी नही धड़कता इन पाहनों में
बिजबिजाती हैं इन प्रस्तरों में
लिप्सा ,महात्वाकांक्षाएँ

सुधीर सक्सेना की यह कविता अपने विन्यास और गठ़न मे जितनी सबल है उतनी ही अपनी ही अपनी स्थापना में भी । अयोध्या पर कविता लिखते समय हमारी हिन्दी के कवियों की विशेषता है कि वह सीधे बयानों में उतर आते हैं । और अयोध्या पर राजनैतिक शब्दावलियोंं अखबारी खबरोंं टीवी डिबेट के शब्द व प्रसंग रखकर बेहद शुष्क कविता लिख मारते हैं । सुधीर सक्सेना ने ऐतिहासिक सांस्कृतिक प्राकतिक तथा अयोध्या की पौराणिक और सामाजिक छवि को लेकर आज की छवि को जिस तरह अपदस्थ किया है यह पहली बार हुआ है । अयोध्या पर इस नजरिए का काव्य अभी तक आया ही नही है । यह काम छोटी कविता से नही हो सकता था क्योंकी इतिहास और संस्कृति छोटी कविता का विषय नही है । बड़ी कविता ही इस विषय को साध सकती है । अस्तु अयोध्या पर एक पृथक तर्क के साथ लम्बी कविता लिखकर सुधीर सक्सेना ने अयोध्या पर धडाधड़ लिखी जा रही कविताओं को एकसाथ खारिज कर दिया है।

उमाशंकर सिंह परमार