18 फरवरी के दैनिक हिंदुस्तान में छपी दो खबरों पर अनायास ही नजर पड़ी
पहली खबर थी कि अमेरिका के कैलिफोर्निया में एक अमेरिकी युवक ने सिख धर्मगुरु से मारपीट की और उनके मुंह पर गर्म कॉफी फेंकी.दूसरा संपादकीय पेज पर खबर थी कि कनाडा ने प्रवासियों के लिए अपने द्वार खोले.
पहली खबर थी कि अमेरिका के कैलिफोर्निया में एक अमेरिकी युवक ने सिख धर्मगुरु से मारपीट की और उनके मुंह पर गर्म कॉफी फेंकी.दूसरा संपादकीय पेज पर खबर थी कि कनाडा ने प्रवासियों के लिए अपने द्वार खोले.
इस समय हमारा देश जिस हालत से गुजर रहा है, उसके बीच में दोनों खबरें समीचीन हैं. पुलवामा के हमले के आतंकी हमले के बाद देश के गुस्से को युद्धोन्माद और घृणा में तब्दील करने की कोशिशें चरम पर हैं. ऐसे में कैलिफोर्निया वाला मामला बरबस ही ध्यान आकर्षित करता है.सिख धर्मगुरु पर हमले के लिए वहां की पुलिस ने जॉन क्रेन नाम के व्यक्ति को गिरफ्तार किया.पुलिस के अनुसार जॉन ने हमले की बात स्वीकार कर ली.हमले की बात स्वीकार करने के साथ ही जॉन ने अपराध करने के कारण के तौर पर जो बात बताई, वह गौरतलब है. जॉन ने कहा कि उसे मुसलमानों से घृणा है, उसे लगा कि जो उसे दिखा,वह मुसलमान है, इसलिए उसने हमला कर दिया.
यह मान लेना बड़ी गजब की चीज है. जॉन ने मान लिया कि सिक्ख नहीं मुसलमान है. हमारे देश में कुछ लोग मान ले रहे हैं कि सब कश्मीरी देश के दुश्मन हैं. साथ ही वे यह भी मान ले रहे हैं, कश्मीरियों पर हमला करना,उनका काम है.यह बात उनकी समझ से परे है कि यदि कोई अपराध करे तो उसे सजा देने के लिए पुलिस, न्याय और कानून का तंत्र है. यह कोई पहली बार नहीं है कि इस देश में कुछ लोग ऐसा मान ले रहे हैं. अनगिनत बार ऐसा हुआ कि एक खास तरह की राजनीति को खाद-पानी देने के लिए ऐसे लोग तैयार किये जाते हैं, जिनका घृणा से लबरेज मानस,शत्रु मान कर,उसी पर हमलावर होता है, जिस पर हमला करना सबसे आसान हो और प्रतिरोध की संभावना शून्य हो.ऐसे एक मान लेने का उदाहरण 1984 भी है, जब इंदिरा गांधी की हत्या के बाद मान लिया गया कि सब सिख आतंकवादी हैं और उन्हें लूटना,उनकी हत्या करना भी आवश्यक कर्म मान लिया गया.ऐसी घृणास्पद बातों को मान लेने की प्रवृत्ति किसी सभ्य समाज या देश की प्रवृत्ति नहीं है. यह बीमार मानसिकता है. परपीड़न से जिन्हें सुख हासिल होता हो,वे स्वस्थ तो कतई नहीं कहे जा सकते.इस बीमारी पर रोक नहीं लगेगी तो इसकी चपेट में वे भी आएंगे,जो आज इसके मूक या मुखर समर्थक हैं.
सभ्य समाज या देश कैसे होना चाहिए, यह कनाडा के उदाहरण से समझ में आता है. कनाडा के प्रवासी मामलों के मंत्री अहमद हुसैन ने वहाँ की संसद को बताया कि उनका देश 2021 तक 10,80000 (दस लाख अस्सी हजार) प्रवासियों को आमंत्रित करना चाहता है. रोचक यह है कि अहमद हुसैन खुद एक सोमाली शरणार्थी के रूप में कनाडा आये थे.उनके अतिरिक्त कनाडा के मंत्रिमंडल में अन्य प्रवासी भी हैं, जिनमें 4 भारतीय भी शामिल हैं. दुनिया में जहां प्रवासियों और शरणार्थियों के खिलाफ घृणा अभियान एक आम परिघटना बनती जा रही है, उनके बीच कनाडा भी है, जो बांहे पसार कर प्रवासियों और शरणार्थियों का स्वागत कर रहा है.प्रवासियों के प्रति खुल दिल वाली नीतियों के चलते ही कनाडा सर्वाधिक बहुलतावादी देश बनने की ओर अग्रसर है. अखबार की रिपोर्ट के अनुसार बहुलता वाले समाजों में जिस तरह के तनाव की आशंका अक्सर होती है,वे तनाव और पूर्वाग्रह कनाडा में नदारद हैं और वहां शान्ति भी भंग नहीं हुई है.
भारत भी विविधताओं वाला देश है. हम ऐसे मोड़ पर खड़े हैं, जहां तय करना है कि जॉन क्रेन और उसके भारतीय मानस बंधुओं जैसे मानसिक बीमारों वाला रास्ता अपना कर, परपीड़न से सुख हासिल करने वाले कुंठित समाज में हम खुद को पतित कर लेंगे या फिर कनाडा जैसे उदार रास्ता अपना कर सभ्यता और प्रगति के रास्ते पर आगे बढ़ेंगे.
-इन्द्रेश मैखुरी
यह मान लेना बड़ी गजब की चीज है. जॉन ने मान लिया कि सिक्ख नहीं मुसलमान है. हमारे देश में कुछ लोग मान ले रहे हैं कि सब कश्मीरी देश के दुश्मन हैं. साथ ही वे यह भी मान ले रहे हैं, कश्मीरियों पर हमला करना,उनका काम है.यह बात उनकी समझ से परे है कि यदि कोई अपराध करे तो उसे सजा देने के लिए पुलिस, न्याय और कानून का तंत्र है. यह कोई पहली बार नहीं है कि इस देश में कुछ लोग ऐसा मान ले रहे हैं. अनगिनत बार ऐसा हुआ कि एक खास तरह की राजनीति को खाद-पानी देने के लिए ऐसे लोग तैयार किये जाते हैं, जिनका घृणा से लबरेज मानस,शत्रु मान कर,उसी पर हमलावर होता है, जिस पर हमला करना सबसे आसान हो और प्रतिरोध की संभावना शून्य हो.ऐसे एक मान लेने का उदाहरण 1984 भी है, जब इंदिरा गांधी की हत्या के बाद मान लिया गया कि सब सिख आतंकवादी हैं और उन्हें लूटना,उनकी हत्या करना भी आवश्यक कर्म मान लिया गया.ऐसी घृणास्पद बातों को मान लेने की प्रवृत्ति किसी सभ्य समाज या देश की प्रवृत्ति नहीं है. यह बीमार मानसिकता है. परपीड़न से जिन्हें सुख हासिल होता हो,वे स्वस्थ तो कतई नहीं कहे जा सकते.इस बीमारी पर रोक नहीं लगेगी तो इसकी चपेट में वे भी आएंगे,जो आज इसके मूक या मुखर समर्थक हैं.
सभ्य समाज या देश कैसे होना चाहिए, यह कनाडा के उदाहरण से समझ में आता है. कनाडा के प्रवासी मामलों के मंत्री अहमद हुसैन ने वहाँ की संसद को बताया कि उनका देश 2021 तक 10,80000 (दस लाख अस्सी हजार) प्रवासियों को आमंत्रित करना चाहता है. रोचक यह है कि अहमद हुसैन खुद एक सोमाली शरणार्थी के रूप में कनाडा आये थे.उनके अतिरिक्त कनाडा के मंत्रिमंडल में अन्य प्रवासी भी हैं, जिनमें 4 भारतीय भी शामिल हैं. दुनिया में जहां प्रवासियों और शरणार्थियों के खिलाफ घृणा अभियान एक आम परिघटना बनती जा रही है, उनके बीच कनाडा भी है, जो बांहे पसार कर प्रवासियों और शरणार्थियों का स्वागत कर रहा है.प्रवासियों के प्रति खुल दिल वाली नीतियों के चलते ही कनाडा सर्वाधिक बहुलतावादी देश बनने की ओर अग्रसर है. अखबार की रिपोर्ट के अनुसार बहुलता वाले समाजों में जिस तरह के तनाव की आशंका अक्सर होती है,वे तनाव और पूर्वाग्रह कनाडा में नदारद हैं और वहां शान्ति भी भंग नहीं हुई है.
भारत भी विविधताओं वाला देश है. हम ऐसे मोड़ पर खड़े हैं, जहां तय करना है कि जॉन क्रेन और उसके भारतीय मानस बंधुओं जैसे मानसिक बीमारों वाला रास्ता अपना कर, परपीड़न से सुख हासिल करने वाले कुंठित समाज में हम खुद को पतित कर लेंगे या फिर कनाडा जैसे उदार रास्ता अपना कर सभ्यता और प्रगति के रास्ते पर आगे बढ़ेंगे.
-इन्द्रेश मैखुरी