देहरादून, 2 दिसम्बर: हरिद्वार ग्रामीण से विधायिका अनुपमा रावत ने आज विधानसभा में एक प्रेस वार्ता कर विधानसभा सत्र के दौरान सरकार द्वारा की जा रही अनियमितताओं पर रोष प्रकट किया। उन्होंने राज्य सरकार द्वारा सदन को मात्र 2 दिन में समेट कर जनता से जुड़े मुद्दों से मुंह मोड़ने का आरोप लगाते हुए कहा कि सत्र का सबसे महत्वपूर्ण दिन सोमवार होता है जिसमें मुख्यमंत्री के विभागों से जुड़े मुद्दे होते है। आज की तारीख में मु0 म0 के पास 30 के लगभग अति महत्वपूर्ण विभाग है, जिससे जुड़े सवाल उन्ही को देने होते हैं। मगर सरकार कई वर्षों से सोमवार को सत्र ही नहीं चला रही । इस बार उनके 8 प्रश्न लगे थे जो अन्नुतरित रह गए जिसमें सबसे महत्वपूर्ण था कि राज्य में चल रहे उद्योगों में कार्यरत 70% स्थानीय निवासियों के आरक्षण की वास्तविक स्थिति पूछी गई थी ।
इसी प्रकार उन्होंने बताया कि परंपरा के अनुसार कोई भी प्राइवेट मेंबर बिल शुक्रवार के दिन ही पेश किया जा सकता है और वह पिछले सत्र से लेकर इस सत्र तक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों व उनके आश्रितों को राजकीय सेवा में आरक्षण विधेयक 2022 प्रस्तुत करने का प्रयास कर रही है, मगर सरकार जान-बूझकर शुक्रवार तक चलने नहीं दे रही है।
अनुपमा रावत ने कहा कि माननीय उच्च न्यायालय द्वारा मार्च 2018 व दिसंबर 2018 के आदेशानुसार इस कोटे से नौकरी कर रहे लगभग 1400 आंदोलनकारियों की नौकरी पर निलंबन की तलवार लटक रही है किंतु सरकार आंख मूंदे बैठ कर किसी अनहोनी का इन्तजार कर रही है ।
उन्होंने सरकार की नियत पर सवाल उठाते हुए कहा2018 में उच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद सरकार को इस फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में जाकर इन लोगों बचाव करना चाहिए था किंतु वह भी नहीं कर पाई।
कांग्रेस की हरीश रावत सरकार अन्य 2015 में इन लोगों के बचाव में एक बिल महामहिम राज्यपाल की स्वीकृति के लिए राज भवन में भेजा था जो कि 7 साल बाद विगत नवंबर माह में लौटाया गया। अगर सरकार की मंशा सही होती तो इसी सत्र में वह इसी बिल में संशोधन करके या नोटिफिकेशन के माध्यम से मामले को हल कर सकती थी।
अंत में उन्होंने महिला आरक्षण बिल के पास होने की ख़ुशी जाहिर करते हुए कहा की सरकार को बिल पास करने से पहले कम से कम इसमें एक सार्थक बहस करवा लेते तो उसकी कमियों को मिल बैठकर दूर किया जा सकता था मगर इसमें भी चर्चा न होने मलाल उन्हें सदैव रहेगा।।