मुम्बई देश की आर्थिक राजधानी होने के साथ ही हर अजीज का सपना भी है । यहां धारावी जैसे दुनिया का सबसे बड़ी झोपड़पट्टी है ,तो कुछ दूरी पर ही भारत के सबसे बडे़ अमीर अम्बानी का बहुमंजिला आधुनिक इमारत है जो दुनिया की सबसे सुदृढ़ सुरक्षा के साथ खडी़ है, जहाँ पंछी भी पर नहीं मार सकता है। हो भी क्यों ना आज देश के चन्द पूंजीपतियों, अडानी,अम्बानी तथा मोदी सरकार का खुल्लमखुल्ला गठबन्धन जो है ।जो लोग 2014 में सबका साथ – सबका विकास के नारे के साथ सत्ता में आये थे ,उनकी अब जनता के दुखदर्द के प्रति कोई जबाबदेही नहीं बची। जिनका पूरा कुनबा स्वदेशी तथा आत्मनिर्भरता का राग अलापते हुए बढ़ा हुआ आज वह,अब वह देश के बडे़ बडे़ कारपोरेटों की गोदी में जाकर बैठ गये। उन्हें देश का सब कुछ इनके हवाले करने की जल्दबाजी है ।
2014 से पहले जो मंहगाई,बेरोज़गारी के खिलाफ सड़कों नारेबाजी करते थे, जिनका नारा था – बहुत हुई मंहगाई की मार,अबकी बार मोदी सरकार, सत्ता में आते ही वह सब कुछ भूल कर अपने-अपने कुनबे की आमदनी कई गुना करने में लगे हुये हैं ।
आज पैट्रोल -डीजल सौ रूपये तथा गैस सिलैंडर 800 रूपये पार । इस पर भी बडी़ ही बेशर्मी से मंहगाई बढ़ाने के पक्ष में अपना कुतर्क देने में लगे हुये हैं ।अपने जनविरोधी शासन को बचाने के लिये येन-केन प्रकारेण सारी संवैधानिक संस्थाओं को ध्वस्त करने में लगे हुए हैं।
जो संसद में पहली बार चुनकर वहां जमीन में लोट पोट होते रहे हैं उन्ही को संसदीय व्यवस्था कचोटने लगी है। वे जल्द से जल्द इस व्यवस्था को समाप्त कर एक व्यक्ति का राज लाने के लिए उतावले हैं ताकि जबाबदेही का सामना ना करना पड़े ।
छात्र शिक्षा का अधिकार मांगता है तो वह देशद्रोही हो जाता है ।मज़दूर काम का अधिकार मांगता है तो वह कामचोर कहा जाता है । इस बीच उन्होंने लाकडाउन की आड़ में काम के घण्टे 8 की जगह 12 कर दिये दिहाड़ी आधी तथा किसानों को कारपोरेट के हवाले करने के लिये तीन कानूनों की व्यवस्था कर दी।आज अगर किसान अपने हकों की लड़ाई लड़ रहे हैं तो वे खालिस्तानी के तमगे से नवाजे़ जाते हैं । देश के अल्पसंख्यक समुदाय व उनके लिये न्याय की लडा़ई लड़ने वालों को उनके चैलेचपाटे पाकिस्तान जाने की सलाह दे डालते हैं ।जबकि ऐ ही बिना बुलाये बिरयानी खाने पाकिस्तान चले जाते हैं ,आज वे अपनी सत्ता बचाऐ रखने के लिए कभी हिन्दुत्व का नारा तो कभी राष्ट्रवाद तो कभी पाकिस्तान तथा चीन का डर दिखाते हैं। इस सबके पीछे सोची समझी नीति का हिस्सा है ।किसी जमाने में हिटलर व अन्य यूरोप के तानाशाह भी ऐसा ही किया करते रहे किन्तु वक्त ने उन्हें बख्शा नहीं। इतिहास गवाह है कि जनता को कुछ दिन भ्रमित रखकर अपना उल्लू सीधा तो किया जा सकता है किन्तु एक ना एक दिन जनता को जबाब देना ही पडे़गा ।
धारावी जैसे हजा़रों हजा़र झौपड़पट्ट न केवल मुम्बई में बल्कि जहाँ हमारे देश के कर्ताधर्ता बैठते हैं उनकी नाक के नीचे देखे जा सकते हैं जहां लोग स्वच्छ आबो हवा से भी मरहूम हैं । दूसरी ओर पारले हिल जैसे अनेक क्षेत्र हैं जहाँ हमारी सरकार बहुत चिन्तित रहती है।यही सवाल बनकर हम सबके सामने है कि आजा़दी के 70 दशक के बाद भी इतनी खाई हमारे देश में क्यों है ? जिस मेहनतकशवर्ग के बिना इतनी खूबसूरत दुनिया सम्भव नहीं आखिर वह नारकीय जीवन जीने के लिऐ क्यों विवश है?क्यों नही सोचता है कि चन्द मुठ्ठीभर लोग देश के 99 प्रतिशत संसाधनों पर कब्जा जमाऐ बैठे हैं ,वहीं आवादी का बडा़ हिस्सा बुनियादी जरूरतों से न केवल मरहूम है बल्कि उसकी मेहनत की खुलेआम लूट हो रही है । वह अपने को ठगा महसूस कर रहा है ।
साभार :- अनन्त आकाश