अब प्रधानमंत्री जैसे ही कोई ऐतिहासिक घोषणा करते हैं तो डर लगने लगता है। प्रधानमंत्री ने नोटबन्दी को ऐतिहासिक कदम बताया, देश की आर्थिकी आज भी उसके सदमे से उबर नहीं पाई फिर GST को ऐतिहासिक बताया , देशभर का व्यापारी आज तक परेशान हैं।स्वयं सरकार भी GST को लेकर अब भी भ्रमित है। हाल ही में प्रधानमंत्री ने कोरोना को लेकर ताली-थाली बजाने का ऐतिहासिक पराक्रम और 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा की थी।नतीजतन आज हम दुनिया भर के सबसे प्रभावित देशों में दूसरे पायदान पर हैं।परसों प्रधानमंत्री ने कृषि विधेयकों को ऐतिहासिक बताया था और आज राज्यसभा में कुछ ऐतिहासिक विद्रूप घट गया।

आज राज्यसभा में सभापति के आसन पर चढ़ जाने, रूल बुक फाड़ने और माइक तोड़ने की जो घटना हुई, वह न केवल निन्दनीय है अपितु चिंतनीय भी है ।माइक तोड़ने और कुर्सियां उछालने का पराक्रम माननीयों ने उत्तर प्रदेश की विधानसभा से प्रारम्भ किया था।वहाँ यह घटना घटी तो बहुत आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि उत्तर प्रदेश की विधानसभा में बाहुबली और अपराधी भरे होते थे , वहीं मंत्रिमंडल भी इस तरह के अपराधियों से अछूता नहीं रहता मगर देश की संसद के उच्च सदन में यह घटा तो न केवल चिन्ता अपितु देश और लोकतंत्र किस दिशा में जा रहा है, इस पर भी सवाल उठते हैं।

कृषि बिल पर चर्चा हो रही थी . सरकार चाहती थी कि जल्द से जल्द यह बिल पास हो जाएं. वहीं दूसरी तरफ विपक्षी पार्टियों का कहना था जब पूरे देश में किसान सड़कों पर है और उनका मानना है कि बिल किसान विरोधी हैं.तो इस पर मत विभाजन कर लिया जाए। इस पर कृषि मंत्री ने विधेयक पर जवाब देना शुरू कर दिया. इससे असंतुष्ट कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के सांसद वेल में पहुंच गए. कांग्रेस सांसद गुलाम नबी आजाद का कहना है कि राज्यसभा का समय ना बढ़ाते हुए जाए मंत्री का जवाब कल होना चाहिए क्योंकि अधिकतर सदस्यों की यही इच्छा है.मगर सरकार विधेयकों को आज ही पास करवाना चाहती है. कृषि बिलों को लेकर चल रही असहमति बीच, कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर कॉरपोरेट्स का समर्थन करने का आरोप लगाते हुए देशव्यापी आंदोलन करने की बात कही

 

यहां केवल सदस्य गण ही दोषी हों, ऐसा नही है बल्कि उप -सभापति का आचरण भी सवालों के घेरे में है। आखिर मत विभाजन की मांग क्यों ठुकराई गई ?खासतौर पर उस स्थिति में जबकि इन विधेयक का विरोध करने किसान सड़कों पर आ चुका है जिसे सरकार लाठी के जरिये समझाने में लगी है।

जहाँ मंत्रिमंडल के एक सदस्य का इस्तीफा हो चुका है न केवल कांग्रेस, बल्कि केंद्र में भाजपा की सहयोगी रही अकाली दल से लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े भारतीय किसान संघ भी बिलों की आलोचना कर रहे हों तो ऐसे में किसके फ़ायदे के लिए “ध्वनिमत” से विधेयक पारित करवाए गए?

हरिवंश जी लंबे समय तक स्वर्गीय चंद्रशेखर जी के सहयोगी रहे हैं, समाजवादी रहे हैं। एक पत्रकार के तौर पर भी उनकी अच्छी प्रतिष्ठा रही है। क्या चंद्रशेखर जी ने अब समाजवाद के सारे आदर्श त्याग दिये गए हैं ?

क्या संसदीय आचरण और पीठ की गरिमा अब बीते दिनों की बात हो गई ? क्या सत्ता-नशीं होने का अहंकार सिर चढ़ गया ?

इस तरह के कई प्रश्न हैं जो अब उठेंगे ।

साभार – क्रांति कुमार

 

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