एमडीडीए में सूचनाधिकारी तय न होने पर आयोग ने सचिव पर डाली जिम्मेदारी
देहरादून, 30 मई: नगर निगम के कान खीचने के बाद सूचना आयोग ने अब एमडीडीए के सचिव को आयोग कि फटकार का सामना करना पड़ा। आयोग का यह आदेश उन सभी वरिष्ठ अधिकारी कर्मचारियों के लिए नजीर के सामान हैं जो सूचना के अधिकार को मजाक समझते हुए अपनी जिम्मेदारीयों से बचते फिरते हैं।
इस ताजातरीन मामले में खुड़बुड़ा निवासी हरजिंदर सिंह ने एमडीडीए से घंटाघर स्थित पार्किंग व राजपुर रोड पर स्मार्ट स्ट्रीट पार्किंग के बारे में सूचना मांगी थी। एमडीडीए द्वारा सूचना देने की जगह जवाब दिया गया कि संबंधित पार्किंग से उनका कोई संबंध नहीं है। शहर के दो पार्किंग स्थलों और संबंधित लोक सूचनाधिकारियों पर स्थिति स्पष्ट न करने पर सूचना आयोग ने एमडीडीए सचिव को ही लपेटे में ले लिया। उन्हें लोक सूचना अधिकारी मानते हुए कार्रवाई की चेतावनी भी जारी कर दी गई।
सूचनाधिकारी पर उठाए सवाल राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने टिप्पणी में कहा कि एमडीडीए में सूचनाधिकारियों की फौज है और यहां सूचना देने की जगह अधिकारी एक दूसरे पर जिम्मेदारी टालते दिखते हैं। इस तरह की व्यस्था में सुधार कर पुख्ता व्यव्यस्था बनाने के पूर्व के निर्देश पर भी अमल न होने की बात आयोग ने कही। आयुक्त भट्ट ने कहा कि एमडीडीए सचिव आयोग के आदेश की अवहेलना कर रहे हैं। इस प्रकरण में भी सचिव को अनुरोध पत्र के दौरान के लोक सूचनाधिकारियों को स्पष्ट कर उन्हें नोटिस तामील कराने को कहा गया था। जिसका पालन करना सचिव ने उचित नहीं समझा रखा अपना पक्ष जब यह मामला सूचना आयोग पहुंचा तो कई गंभीर बातें पता चलीं। प्रकरण में सुनवाई करते हुए राज्य सूचना आयुक्त ने पाया कि संबंधित सूचना किस अनुभाग या लोक सूचना अधिकारी के दायरे में आती है, इस पर भी तस्वीर साफ नहीं की गई, हालांकि, आयोग के समक्ष अनु सचिव एकता अरोड़ा ने लोक सूचना अधिकारी के रूप में पक्ष रखा। इसी दौरान यह जानकारी भी निकल आई कि दोनों पार्किंग एमडीडीए की विशिष्ट भूमिका है. पार्किंग शुल्क का 30 प्रतिशत हिस्सा राजस्व के रूप में एमडीडीए को भी प्राप्त होता है। आयोग ने सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 5(5) के अंतर्गत सचिव को लोक सूचना अधिकारी मानते हुए पक्षकार बनाया। साथ ही इस धारा को स्पष्ट करते हुए कहा कि यदि विभाग के किसी वरिष्ठ अधिकारी से सूचना के संदर्भ में सहयोग या अपेक्षा की मांग की जाती है तो वह वरिष्ठ अधिकारी सूचना मांगने से लेकर प्राप्ति के समय तक लोक सूचनाधिकारी माना जाएगा।
पिरान कलियर: दरगाह प्रबंधन ने खुद को माना “खुदा”
एक अन्य मामले में सुनवाई करते हुए राज्य सूचना आयुक्त योगेश भटट ने उत्तराखंड वक्फ बोर्ड को पिरान कलियर दरगाह से जुड़ी सूचनाएं सूचना के अधिकार (RTI Act) के तहत देने को कहते हुए बोर्ड को आड़े हाथों लिए। इस मामले में हरिद्वार निवासी दानिश सिद्दीकी ने 2021-22 और 2022-23 में पिरान कलियर दरगाह में हुई नीलामी और ठेकों का विवरण मांगा था। लेकिन, दरगाह प्रबंधन ने खुद को खुदा मानते हुए अपने को सूचना के अधिकार ऐक्ट से ही बाहर मानते हुए सूचनाएं नहीं दीं। इस बात से खफ़ा दानिश ने वक्फ बोर्ड के सीईओ के पास प्रथम अपील की और इसके बाद वे सूचना आयोग चले गए। यहां राज्य सूचना आयुक्त योगेश भटट ने इस बात पर नाराजगी जताते हुए सभी सूचनाएं 30 जून तक देने के आदेश पारित कर दिए।
यह भी पढ़ें कि क्यों बने सूचना आयुक्त और एमडीडीए सचिव बने मुख्य अतिथि
पत्रकारिता दिवस: उत्तरांचल प्रेस क्लब ने पत्रकारिता दिवस पर 07 पत्रकारों को किया सम्मानित।