ताली-थाली-शंख-के-बाद-अब-बारी-है-गाल-बजाने-की.jpg March 27, 2020 10 KB 301 by 167 pixels Edit Image Delete Permanently Alt Text Describe the purpose of the image(opens in a new tab). Leave empty if the image is purely decorative.Title ताली-थाली-शंख के बाद अब बारी है गाल बजाने की! Caption Description Copy Link https://jansamvadonline.com/wp-content/uploads/2020/03/ताली-थाली-शंख-के-बाद-अब-बारी-है-गाल-बजाने-की.jpg Selected media actions

संजय पारतेप्रधानमंत्री मोदी द्वारा देश को 21 दिन के लिए लॉक डाउन करने की घोषणा के बाद अब स्पष्ट है कि कोरोना वायरस का हमला भारत में सामुदायिक संक्रमण (कम्युनिटी ट्रांसमिशन) के तीसरे चरण में प्रवेश कर गया है। इस चरण में यह वायरस मनुष्य द्वारा मनुष्य से ही नहीं फैलता, बल्कि मानव समाज पर हवा और सतह से भी वार करने लगता है। अतः संक्रमण के स्रोत का पता लगाना मुश्किल हो जाता है। भारत जैसे देश में, जहां विकसित देशों की तुलना में उन्नत स्वास्थ्य सुविधाओं तक आम जनता की पहुंच नहीं के बराबर है और जहां निजीकरण के चलते स्वास्थ्य सुविधाओं का खचड़ा बैठ गया है और जिसके सीधे प्रमाण इस तथ्य से जाहिर होते हैं कि चिकित्सकों सहित हमारे तमाम स्वास्थ्य कर्मी अति-आवश्यक मास्क, दस्तानों, बॉडी कवर और सैनिटाइजर की कमी से जूझ रहे हैं और संदिग्ध मरीजों को भी जांच के लिए भटकना पड़ रहा है, इस हमले की बहुत बड़ी कीमत देश और आम जनता को चुकानी पड़ेगी।

इस वायरस ने पिछले तीन महीनों की अवधि में दुनिया के (भारत को छोड़कर) 5.2 लाख लोगों को संक्रमित किया है और वास्तव में तो लगभग 23000 लोग मारे भी गए हैं। इन देशों की कुल आबादी लगभग 220 करोड़ हैं। तब भारत के लिए यह कीमत कितनी होगी?

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मई तक भारत में 10 लाख से ज्यादा लोगों के संक्रमित होने और 30,000 से ज्यादा लोगों के मारे जाने की आशंका व्यक्त की है। *द प्रिंट* ने सॉफ्टवेयर उद्यमी मयंक छाबड़ा के विश्लेषण को सामने रखा है कि सामुदायिक संक्रमण के चरण में पहुंचने पर अज्ञात मामलों की संख्या 8 गुना से ज्यादा हो सकती है और मई अंत तक संक्रमण के 50 लाख से ज्यादा मामले और 1.7 लाख मौतें हो सकती हैं।

हमारे देश में कोरोना प्रभावित मरीजों की संख्या हर 5 दिन में दुगनी हो रही है और मई अंत तक इस रफ्तार से 40 लाख से ज्यादा लोग संक्रमण का शिकार होंगे और वर्तमान वैश्विक मृत्यु दर 4.4% को ही गणना में लें, तो लगभग दो लाख मौतों की आशंका है। यदि लॉक डाउन के जरिए संक्रमण के 60% मामलों को भी थाम लिया जाए, तो भी 14 अप्रैल तक 3600 लोगों के और मई अंत तक 4 लाख लोगों के संक्रमित होने व 16 हजार से ज्यादा की मौत होने की आशंका तो है ही।

यह सभी आकलन कितने गलत साबित होंगे, यह इस बात पर निर्भर करता है कि राज्य सरकारों के साथ मिलकर हमारी केंद्र सरकार इस भयावह स्थिति का कितनी कुशलता, संवेदनशीलता व राजनैतिक इच्छा शक्ति के साथ मुकाबला करती है; आम जनता की सेहत को बनाये रखने के लिए लॉक डाउन सहित और क्या प्रभावी कदम उठाती है और कितने कम समय में हमारे स्वास्थ्य सेवाओं को इसका मुकाबला करने के लिए तैयार कर पाती है। लेकिन इन पहलुओं पर एक निराशाजनक तस्वीर ही सामने आती है।

प्रधानमंत्री मोदी का भाषण इस बीमारी से लड़ने के लिए लोगों को *घरों में कैद रहने* जैसे चिकित्सा उपायों पर अमल करने का ही संदेश देता है। लेकिन उन्होंने यह तक बताना ठीक नहीं समझा कि इस बीमारी से लड़ने के लिए सरकार ने अब तक क्या तैयारियां की है और आगे क्या योजना है? इस महामारी से निपटने के लिए वे राज्यों का सहयोग तो चाहते हैं, लेकिन उस केरल सरकार का जिक्र तक करना उचित नहीं समझते, जिसने अपने संसाधनों के बल पर राज्य के 3.5 करोड़ नागरिकों की मदद के लिए 20000 करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज की घोषणा करके पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा है। शायद ऐसा इसलिए कि वह पूरे देश के लिए केवल 15000 करोड़ रुपये स्वास्थ्य क्षेत्र को आबंटित कर रहे हैं और यह हमारे आवश्यकता के मद्देनजर नितांत अपर्याप्त है। जहां तक आम जनता को सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा देने का सवाल है, वह तो *ठन ठन गोपाल* था।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा कथित रूप से 1.75 लाख करोड़ रुपये का जो आर्थिक पैकेज घोषित किया गया है, वह भी कारगर साबित नहीं होने वाला है। पूर्व में किसान सम्मान निधि के लाभान्वितों की संख्या 14.5 करोड़ बताई जाती रही है, लेकिन इस पैकेज में इसका लाभ केवल 8.6 करोड़ किसानों को ही दिया जा रहा है। इसी प्रकार इस पैकेज में 80 करोड़ नागरिकों को मुफ्त अनाज वितरण का लाभ देने का दावा किया गया है, जबकि वर्तमान में जारी सार्वजनिक वितरण प्रणाली से इतने लोग जुड़े ही नहीं है। अतः 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन का लाभ देने की घोषणा केवल जुमलेबाजी ही है। इसी तरह यह परिकल्पना कर ली गई है कि मनरेगा की दैनिक मजदूरी 20 रुपये बढ़ाने से सभी हितग्राही परिवारों को 2000 रुपये की मदद हो जाएगी; जबकि वास्तविकता यह है कि पूरे देश में केवल 4% परिवारों को ही 100 दिनों का काम मिलता है और प्रति परिवार औसत काम के दिनों की संख्या केवल 30-35 ही है। किसान सम्मान निधि की राशि भी बजट का ही हिस्सा है, जिसे आर्थिक पैकेज के साथ पेश किया गया है।

दिसंबर में ही इस वैश्विक प्रकोप की सच्चाई सामने आ चुकी थी। हमारे देश में भी पहला मामला जनवरी अंत तक आ चुका था। इस चेतावनी के मद्देनजर यह जरूरी था कि हमारे देश की स्वास्थ्य सुविधा को आसन्न संकट के लिए तैयार किया जाता। लेकिन स्वास्थ्य के क्षेत्र में तैयारियां सिफर रही और स्वास्थ्य कर्मियों व जनता के लिए आवश्यक जीवन रक्षक मास्क, दस्तानों और जांच-किटों तक को जुटाने के बजाय 24 मार्च तक इन सामग्रियों का बड़े पैमाने पर निर्यात ही किया जाता रहा। आज हम इन सब मेडिकल सामग्रियों के अभाव से गुजर रहे हैं। यह अभाव हमारे चिकित्सकों की जान को भी जोखिम में डाल रहा है, जिन्हें अपने मरीजों का इलाज करना है। यह अभाव कितना जबरदस्त है, इसे हरियाणा की डॉक्टर कामना कक्कड़ के शब्दों में समझा जा सकता है, जो लिखती हैं कि — “N-95 मास्क व दस्ताने आज जाए, तो कृपया उन्हें मेरी कब्र पर भेज देना। ताली व थाली भी बजा देना वहां।”

इस समय देश को रोज 50000 बॉडी कवर चाहिए। लेकिन मई अंत तक ही हमें 7.5 लाख बॉडी कवर व 1.6 करोड़ मास्क मिल पाएंगे। जब डॉक्टरों का यह हाल है, तो समझ लीजिए मरीजों का क्या होने वाला है? आने वाले दिनों में अस्पताल ही संक्रमण के अड्डों में तब्दील होने जा रहे हैं। इस समय देश में केवल एक लाख आईसीयू बेड और 4000 वेंटीलेटर हैं। यदि यह प्रकोप इसी रफ्तार से फैलता रहा, तो अप्रैल अंत या मई मध्य तक अस्पतालों में मरीजों को बिस्तर तक नसीब नहीं होगा। इस स्थिति से थोड़ा राहत पाने का एक उपाय यह हो सकता है कि निजी अस्पतालों को इस प्रकोप के खत्म होने तक सरकार अपने हाथ में ले लें, लेकिन ऐसा करने से वह रही। स्वास्थ्य सेवा का निजीकरण करना ही आखिर उसकी नीति रही है।

क्या इस बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने की प्राथमिकता कभी मोदी सरकार की रही है? यदि रहती, तो देश के खजाने का पैसा मूर्तियों पर लगाने के बजाय अस्पतालों के निर्माण में खर्च किया जाता।

इस महामारी का हमला भी ऐसे समय पर हुआ है, जबकि देश मंदी से गुजर रहा है और पिछले एक माह से तो आर्थिक गतिविधियां अस्त-व्यस्त है। देश की 85% आबादी अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़ी है, जिनके परिवारों की औसत मासिक आय 10000 रुपये से भी कम है। यह तबका रोज कमा कर अपने खाने का जुगाड़ करता है। लाखों लोग सड़कों पर सोते हैं। इन्हें 21 दिनों तक बिना कोई राहत दिए और उनकी आजीविका के प्रति संवेदनशील हुए बिना सोशल डिस्टेंसिंग के मकसद को पूरा नहीं किया जा सकता। *पीरियाडिक लेबर फोर्स सर्वे* के अनुसार देश के 35 करोड़ मजदूर स्वरोजगार या अस्थायी लेबर और अनियमित वेतन भोगी कर्मचारी हैं। उनकी आजीविका की एकदम जरूरी आवश्यकता को पूरा करने के लिए जन धन खातों व अन्य उपायों से 10000 रुपये ही अगले दो माह के लिए अग्रिम दिए जाए, तो 3 लाख करोड रुपयों की जरूरत होगी जो कि हमारी जीडीपी का 1.5% होगा।

करोना से लड़ने का हम जो मॉडल अपना रहे हैं, वह इटली मॉडल है, जो लोगों को घरों में कैद करने पर बल देता है। इटली में यह बुरी तरह असफल हुआ है और हमारे देश में यह कहां तक सफल होगा, अभी कुछ कहा नहीं जा सकता।

दूसरा मॉडल दक्षिण कोरिया का है, जिसने देश को लॉक डाउन करने से बजाए प्रत्येक नागरिक का टेस्ट करने और संक्रमित लोगों को बेहतर उपचार देने में लगाया। 5 करोड़ की आबादी वाला यह देश कोरोना के हमले से सबसे कम प्रभावित हुआ है। वहां संक्रमित लोगों की संख्या मात्र 0.02% है तथा मौतों की संख्या 1.33% है।

लेकिन इस मॉडल को अपनाने के लिए ना तो हमारी स्वास्थ्य सेवा सक्षम है और न ही सरकार में राजनीतिक इच्छा शक्ति। इसके लिए हमें कम से कम रोजाना 2 लाख लोगों का टेस्ट करना पड़ेगा, जबकि इस समय हमारे देश में केवल 1.5 लाख जांच-किटें ही उपलब्ध हैं। लेकिन जब तक हम इन जीवनरक्षक चिकित्सा सामग्रियों का जुगाड़ करेंगे, तब तक काफी देर हो चुकी होगी और हजारों नागरिकों की जान जा चुकी होगी।

आलेख : संजय पराते

##www.jansamvadonline.com/in-context/after-clap-plate-conch-now-is-the-turn-to-play-cheek/

After the announcement by Prime Minister Modi to lock the country for 21 days, it is now clear that the corona virus attack has entered the third phase of community transmission in India. In this phase, this virus is not only spread from man to man, but also starts attacking human society from air and surface. Therefore, it becomes difficult to determine the source of infection.In a country like India, where the general public has no access to advanced healthcare facilities compared to developed countries, and where privatization has led to the loss of health facilities, the direct evidence of which is evident from the fact that all our doctors, including doctors Health workers are struggling with a lack of much-needed masks, gloves, body covers and sanitizers and suspected patients also have to wander for investigation Is, the attack of huge price the country and the general public will pay.The virus has infected 5.2 lakh people of the world (excluding India) in the last three months and in fact around 23000 people have also died. The total population of these countries is about 220 crores. How much will this cost to India then?The World Health Organization has expressed the possibility of more than 1 million people being infected and over 30,000 killed in India by May.The Print * has put forward the analysis of software entrepreneur Mayank Chhabra that when the community is at the stage of infection, the number of unknown cases could be more than 8 times and by May end more than 5 million cases of infection and 1.7 lakh deaths. Huh.In our country, the number of corona affected patients is doubling every 5 days and by the end of May more than 4 million people will be infected at this pace and take the current global mortality rate to 4.4%,So there is a possibility of about two lakh deaths. Even if 60% of the infection cases are stopped through lock down, there is a possibility of 3600 people getting infected by April 14 and 4 lakh people by the end of May and more than 16 thousand deaths.How wrong all these assessments will prove to be depends on how efficiently, sensitively and politically, our central government copes with this state of affairs with state governments;What more effective steps, including lock-down, are being taken to maintain the health of the general public, and in how little time we can get our health services ready to counter it. But a disappointing picture comes out on these aspects.Prime Minister Modi’s speech gives a message to people to implement medical measures like * being imprisoned in homes * to fight this disease. But he did not think it right to tell what preparations the government has made so far to fight this disease.And what is the plan next? They want the cooperation of the states to deal with this epidemic, but do not think it appropriate to even mention the Kerala government, which has announced the economic package of 20000 crore rupees to help the 3.5 crore citizens of the state on the strength of their resources. The attention of the entire country has been drawn. Perhaps this is because he is allocating only Rs 15,000 crore to the health sector for the entire country and this is absolutely insufficient in view of our requirement.As far as providing socio-economic security to the general public is concerned, he was * less than Gopal *.The economic package of Rs 1.75 lakh crore announced by Finance Minister Nirmala Sitharaman, is also not going to prove effective. In the past, the number of beneficiaries of Kisan Samman Nidhi has been stated to be 14.5 crore, but in this package only 8.6 crore farmers are being benefited. Similarly, in this package 80 crore citizens have been given the benefit of free grain distribution,While not many people are connected to the currently released public distribution system. Therefore, the announcement of giving benefit of free ration to 80 crore people is only jumlebaazi. Similarly, it has been envisaged that increasing the daily wages of MNREGA by Rs 20 will help all the beneficiary families by Rs 2000; Whereas the reality is that only 4% of the households in the country get 100 days of work and the average working days per household is only 30-35.The amount of Kisan Samman Nidhi is also part of the budget, which has been presented with the economic package.The truth of this global outbreak was revealed only in December. In our country too, the first case had come till the end of January. In view of this warning, it was necessary that our country’s health facility be prepared for the impending crisis. But in the field of health, the preparations remained These materials continued to be exported on a large scale till March 24, instead of raising the necessary life-saving masks, gloves and check-kits for health workers and the public. Today we are going through the lack of all these medical supplies. This absence is also putting the lives of our physicians, who have to treat their patients. How tremendous this lack is, it can be understood in the words of Dr. #Kamna_Kakkar of Haryana, who writes that If the N-95 mask and gloves go today, please send them to my grave. Clap and plate also to be played there. “At this time the country needs 50000 body cover daily. But by the end of May, we will be able to get 7.5 lakh body covers and 16 million masks. When doctors are in this condition, then understand what is going to happen to the patients? In the coming days, the hospital itself is going to be transformed into the bases of infection. At present, there are only one lakh ICU beds and 4000 ventilators in the country.If this outbreak continues at the same pace, then patients will not have any luck in bed till the end of April or mid-May. One way to get some relief from this situation may be that the government should take over private hospitals till the outbreak, but it did so. Privatization of healthcare has been its policy.Has the #Modi government ever prioritized to improve this poor health system?If lived, the money of the country’s treasury would have been spent in the construction of hospitals instead of putting it on idols.The attack of this epidemic has also taken place at a time when the country is going through a recession and for the last one month economic activities have been disrupted. 85% of the country’s population is from the informal sector, whose average monthly income of families is less than Rs 10,000. This section earns its food daily. Millions of people sleep on the streets.The purpose of social distancing cannot be met without giving them any relief for 21 days and without being sensitive to their livelihood. According to the * Periodic Labor Force Survey *, 35 crore workers in the country are self-employed or temporary labor and irregular wage earners. To meet their urgent need of livelihood, only Rs 10,000 from Jan Dhan accounts and other measures, if advance is given for the next two months, then Rs 3 lakh crores will be required which will be 1.5% of our GDP.The model we are adopting to fight #corona is the Italian model, which emphasizes imprisoning people at home. It has failed miserably in Italy and how far it will succeed in our country, nothing can be said right now.The second model is from South Korea, which instead of locking the country down, tested each citizen and put better treatment to the infected.This country, with a population of 5 crore, has been the least affected by Corona’s attack. The number of people infected there is only 0.02% and the number of deaths is 1.33%.But neither our healthcare nor the political will in the government is able to adopt this model. For this, we have to test at least 2 lakh people daily, while at present only 1.5 lakh test kits are available in our country.But by the time we collect these life-saving medical supplies, it will be too late and thousands of civilians will have lost their lives.